Saturday, July 31, 2021

दिलों के वर - दिलवर जी

मुम्बई के एक हरमन प्यारे संत भुपिंदर सिंह चुघ 'दिलवर' जी कल अपने पार्थिव शरीर को त्याग कर इस नश्वर संसार से विदा हुए। 
एक प्रेमी भक्त ने - जिसने उनके जीवन को बहुत नज़दीक से देखा - अपने मन के भाव और संस्मरण इस लेख में व्यक्त किये हैं जो मन को छूने वाले हैं। ये संस्मरण न केवल महात्मा दिलवर जी के जीवन और उनके महान गुणों को दर्शाते हैं बल्कि सबके लिए प्रेरणा का स्तोत्र भी बन सकते हैं। 
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                                     दिलों के वर - दिलवर जी
                                  (By :अमित चव्हाण - मुम्बई)
                                           
मेरे लिए यदि भक्ति का गुरूसिखी का, निस्वार्थ प्रेम का सेवा का कोई व्यक्त रूप है तो वो दिलवर जी है।

उन्होंने पिछले कुछ वर्षों से मुझे साथ रखा, प्रेम दिया ,जैसे परिवार का एक सदस्य ही बना लिया और सिखाया की प्रेम कैसे निभाया जाता है, फिर वह प्रेम इष्ट के साथ हो, व्यक्ति के साथ हो,भक्ति के साथ हो या जिम्मेदारी के साथ हो।

उनका जीवन सादा था, सादे कपड़े पहनते, सादा खाना खाते। लेकिन गहरी बाते समझाते।
उनकी यह सादगी जीवन को प्रभावित ही नही प्रकाशित भी करती थी। भाषा पे प्रभुत्व था, हिंदी हो, अंग्रेजी हो, मराठी हो, पंजाबी हो, हर भाषा स्पष्ठ थी और भाव बहुत शुद्ध था।
सत्संग में पहुचते तो कार्नर में नीचे बैठकर सत्संग सुनने में आनंद मानते, सेवा के कारण जब अनेको बार उन्हें माइक पर बोलना पड़ता तो वो सेवा तो पूरी निभाते लेकिन अक्सर कहते कि माइक पर किसी और को भी मौका मिलना चाहिए और आये हुए संतो का स्वागत करने के लिए हो या अन्य किसी कारण के लिए खुद पीछे रहकर बुजुर्गों को सन्मान देते।

जब कोई काव्य करने बैठते तो ऐसे महसूस होता कि निरंकार प्रभु में से शब्दों का चुनाव कर रहे हो और अपने भाव को कलम पर उतार देते। आज ऐसे ही महसूस हो रहा है कि ईश्वर ने उनका जीवन गीत भी बहुत समय लेकर हर एक रस भरकर संसार को गिफ्ट दिया और समझाया, "जीना इसी का नाम है..."

उनके जीवन के कई प्रेरक संस्मरण दास के जीवन के साथ जुड़े हुए है जो मुझे दिलवर जी की शारीरिक अनुपस्थिति में भी उनके निरंतर साथ होने का एहसास दिलाते रहेंगे।

बात कुछ वर्ष पुरानी है, दिलवर जी और सरबजीत शौक जी के मार्गदर्शन में मुम्बई में किड्स डिवाइन प्रोग्राम की रेकॉर्डिंग चल रही थी, रेकॉर्डिंग देर रात तक चली और उसके बाद पता चला की दिलवर जी की कार कही दूर पार्क है, दास के आग्रह के बाद उन्होंने दास की बिनती स्वीकार की और उन्हें कार तक छोड़ने की सेवा प्रदान की, उन्हें कार के नजदीक लेकर जाने के बाद बस एक रस्ता क्रॉस करना था कि दिलवर जी ने कहां, यही रोक दो, दास ने गाड़ी रोक दी, फिर कहने लगे "आप रस्ता क्रॉस ना करो, खामखा दूर चक्कर काट के आपको वापस जाना पड़ेगा"
दास ने फिर आग्रह किया कि "दास सेवा पूरी करना चाहता है, please allow me to drop near car, please allow me to cross the road."
उन्होंने मना किया और गाड़ी से उतर भी गए, वह अपनी कार तक पहुचने ही वाले थे कि जोर से बारिश आयी और वह इतनी जोर की बारिश थी कि कुछ सेकण्ड में ही वो पूरे भीग गए और अपनी कार में बैठ गए।
थोडे समय बाद किसी जगह वह मेरे नजदीक आये और बड़े विनम्रतापूर्वक कहने लगे - "आप के मुख से आनेवाला शब्द निरंकार का था मैंने आपके वचन को नही माना, अगर मान लेता तो शायद भीगने से बच जाता।"
दास इन शब्दों के लायक नही था लेकिन मेरे जैसे कच्चे, बच्चे को भी वह इस दृष्टि से देखते स्नेह देते और यह कर्म करके समझाते  कि  'ब्रहमज्ञानी के मुख से निकलने वाला शब्द भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना गुरु का शब्द होता है।'

व्यवस्था की दृष्टि से अनेक नाजुक क्षणों का सामना करना पड़ता है, दास सेवा के कारण उनके साथ ही बैठता और कुछ संवेदनशील चर्चाओं के बीच मे अक्सर देखता कि वह दो मिनिट के लिए कही एकांत में उठकर चले जाते और वापस आने के बाद फिर से चर्चा प्रारम्भ करते और अचानक वार्ता का रूप ही बदल जाता। सामनेवाले व्यक्ति का मन तैश से संतोष में रूपांतरित हो जाता।

क्योंकि दास का दिलवर जी के साथ रिश्ता बहुत गहरा था, इसी लिए एक बार दास ने जिज्ञासा वश उन्हें हिम्मत करके पूछा कि आप वह बीच में उठकर चले गए और वापस आने के बाद अचानक चर्चा का रूप बदल गया, तो दिलवर जी मुझे समझाने लगे "जब मन मे कशमकश हो कोई रास्ता ना सूझे तो निरंकार प्रभु परमात्मा के साथ और गहरा संबंध जोड़ना चाहिए।  दास 2 मिनिट के लिए एकांत में प्रभु से सिमरन द्वारा प्रार्थना कर रहा था कि आप मुझे सही रास्ता प्रदान करो, मन में  स्थिरता बक्शो किआये हुए सज्जन को सही राय इस घट से प्राप्त हो सके।"

एक और संस्मरण ध्यान में आ रहा है, जब भी यह संस्मरण दास को ध्यान में आता है, रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 

बात दिसम्बर 2018 की है, मुम्बई का निरंकारी परिवार तैयार हो रहा था NYS मुम्बई के आयोजन के लिए, दास भी सुबह सुबह ग्राउंड की तरफ अपनी सेवा निभाने के लिए पहुंच ही रहा था कि दिलवर जी के बेटे अंकित जी और बहू संज्जना जी के एक्सीडेंट और निधन के बारे में पता चला। दास ने तुरंत ही दिलवर जी को फ़ोन किया - "अंकल जी आप कहा हो? मैं आ रहा हूँ आपके पास, बताओ आपजी कहां हो"

दिलवर जी की आवाज नरम थी लेकिन उनकी आवाज में पूर्ण विश्वास था, उन्होंने कहा "अमित जी, सद्गुरु है ना, निरंकार है ना, आप चिंता ना करो, जो भी हुआ है निरंकार की रजा में हुआ है, इसे स्वीकार करना है"

दास ने फिर आग्रह से दोहराया, "आप कहां हो, इस क्षण में आपके साथ रहना चाहता हूँ " और तत्परता से मुझे वह कहने लगे -

"नही अमित जी, आप NYS में जाओ, बच्चो ने काफी मेहनत की है, सद्गुरु ने आपकी वहां सेवा लगाई है, आप अपनी सेवा निभाओ"

और इसके बाद जो उन्होंने कहा उसे दास कभी नही भूल सकता - एक ऐसा क्षण जब उनका बेटा, बहु दोनों आकस्मिक गतप्राण हुए - उस क्षण वर्तमान, भविष्य दोनों अंधेरे में मालूम पड़ रहा है लेकिन उस हाल में भी वह सेवा के प्रति सजग थे, सब का ह्रदय निरंकार से जोड़े रखने में कितने तत्पर थे यह इस बात से पता चलता है, जो उन्होंने मुझे आगे कही, उन्होंने कहा -
" एक महात्मा शायद किसी कारण से दुःखी है, you make sure जब वह महात्मा NYS में आये तो कोई उन्हें रोके नही, उन्हें पूर्ण सम्मान के साथ निश्चित स्थान पर बिठाना, देखना कोई महात्मा मिशन से टूटना नही चाहिए"

जरा सोचिए - बेटे और बहु के आकस्मिक निधन की वार्ता को अभी एक घंटा भी नही हुआ और ऐसी स्थिति में भी मिशन का ध्यान, सत्संग के प्रति निष्ठा और एक एक महात्मा के ह्रदय को जानना और स्नेह देना -  ऐसे थे दिलवर जी।

और सबसे बड़ी शिक्षा यह भी है कि अपने जीवन की इतनी बड़ी परीक्षा की घड़ी में भी कभी यह नही देखा कि उन्होंने इस घटना की वजह से या अन्य किसी बात की वजह से कोई शिकायत की हो - कि यह निरंकार ने मेरे साथ क्यों किया - नही कभी भी नही - अपितु सद्गुरु ने जो उन्हें धाडस दिया, और कहा कि "दिलवर जी - समर्थ, सिदक इन दोनों बच्चों को साध संगत पालेगी, लाड़ प्यार देगी" 
इस बात का उन्होंने शुक्रिया किया और सेवा, सिमरण, सत्संग निरंतर उसी उत्साह के साथ जारी रखा।  इसका एक उदाहरण यह भी है कि इस घटना के तुरंत बाद ही, वह महाराष्ट्र संत समागम की सेवाओ में अत्यंत सक्रिय हो गए थे और यह गति उनकी शरीर की अस्वस्थता भी रोक नही पाई।

जब वह अस्पताल में दाखिल थे और ठीक से बोलने में भी असमर्थ थे, पूरे शरीर को मशीन संचालित कर रही थी ऐसी स्थिति में भी सेवा नही रुकनी चाहिए इस भाव के साथ लंबी सांस लेकर एक दो शब्द बोलते फिर रुकते फिर लंबी सांस भरते और एक दो शब्द बोलते ऐसे बोलकर अपनी नही अपितु मिशन की सेवा क्या करनी है समझाते।
अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी जब उनकी आवाज ने साथ छोड़ दिया तो मोबाइल में टाइप कर सेवा समझाते और यदि मोबाइल पर टाइप करना सम्भव ना हो तो पेपर पर लिख कर कौन सी चीजें विलंबित है, कैसे करनी है यह बात बताते।
सेवा के प्रति निष्ठा का मूर्तिमंत रुप थे दिलवर जी। 

विनम्रता उनके जीवन का एक बहुत बड़ा भाग थी - एक बार सेवा करते हुए, उन्होंने किसी बहन को स्पष्टता से सेवा कैसे करनी चाहिए यह समझाया, लेकिन किसी कारण उस बहन के ह्रदय को दुःख हुआ।  जैसे ही यह बात दिलवर जो को महसूस हुई उन्होंने यह नही देखा कि वह बहन उनसे आयु में छोटी है, अनुभव में छोटी है, कद में छोटी है। उन्हें यह तक नही देखा कि उसमें उनकी खुद की गलती भी कुछ नही है। बस उस बहन के ह्रदय को पीड़ा ना हो, इस लिए दिलवर जी उस बहन के चरणों मे सर रखकर झुक गए, उस से माफी मांगी। मन मे किसी प्रकार अहम भाव नही, केवल समर्पण कि मेरे किसी हावभाव के कारण किसी को भी चोट ना पहुंचे। वह विनम्रता के पुंज थे।

अभी कुछ दिन पहले जब उन को देखने के लिए दास परिवार सहित पहुँचा, उनकी शारीरिक स्थिति देखकर दास बहुत असहज हो गया, किंतु अपनी असहजता उनके सामने छुपाने के लिए दास झूठा झूठा हंसने की कोशिश कर रहा था, यह बात भी दिलवर जी शायद भांप गए होंगे लेकिन फिर भी दास की हंसी में मुस्कुराकर जवाब देते।
यह भी उनकी विशेषता थी कि किसी की गलती देखकर भी उसे किसी और के सामने प्रकट ना होने देना। किसी की गलती या झूठ पर पर्दा डालना। देखकर अनदेखा कर देना। यह उन्होंने अक्सर किया। मुझ से और सरबजीत जी से अक्सर वह लगभग सारी बातें सांझा करते लेकिन शायद ही ऐसी कोई बात उन्होंने साँझा की हो जिसमें किसी का दोष दीखता हो...और यह गुण अंत तक बना हुआ था।

किसी की बात को या भाव को correct करने का भी उनका ढंग अनोखा था जिस से किसी का दिल भी ना दुःखता और वो बात मानकर हँसी खुशी अपने आप मे सुधार करता...
तो बात उस दिन की चल रही है जब अंतिम दिनों में दास दिलवर जी को मिलने पहुंचा - दास ने उनको कहा, "देखो, जब सद्गुरु मुम्बई में आये तो चेम्बूर में आने से पूर्व वह आपको मिलने आये, देखो सद्गुरु आपसे कितना प्रेम करते है, स्नेह देते है, आप सद्गुरु के लाडले भक्त हो"
जैसे ही यह बात उन्होंने सुनी, ऐसे शारीरिक स्थिति में जब उनका हाथ भी फ्रैक्चर था  - शरीर बिल्कुल साथ नही दे रहा था फिर भी हाथ जोड़कर, गर्दन ना के स्वर में हिलाकर - जैसे विनम्रतापूर्वक कह रहे थे, 'नही - मैं इस स्तुति के काबिल नहीं '

दास को उन्होंने कभी भी अलग महसूस नही होने दिया 
हमेशा अपने साथ रखा, साथ बिठाया, साथ खिलाया, साथ बैठकर हाथ पकड़कर सिखाया।
52 वे संत समागम में खुले रूप में उन्होंने सद्गुरु के सामने एक प्रार्थना की थी - 'मैं जोनल इंचार्ज के रूप शायद फेल हो जाऊं, लेकिन गुरूसिखी में फेल ना हो जाऊं।'

आज जब उन्होंने अपनी जीवन यात्रा सम्प्पन की है तो यह महसूस होता है कि वह गुरूसिखी का जीवंत प्रमाण बने रहे हैं।

प्रेम और स्नेह से भरे दिलवर जी के साथ ऐसे कई संस्मरण है। जो लिखे नही जाएंगे, बोले नही जाएंगे पर याद बहुत आएंगे। 
और इस बात का खेद भी रहेगा कि मैं उनकी पूरी तरह कदर नही कर पाया - उनको योग्य आदर सन्मान नही दे पाया। लेकिन उन्होंने मुझे प्रेम देने में कोई कमी नहीं की।

Thank You Satguru Nirankar For Blessing Dilvar Ji In My Life❤️
Note - Thank You Respected Rajan Sachdeva ji For Inspiring Me Positively To Write On Him.
                                             "अमित चव्हाण "- मुम्बई 

8 comments:

  1. Thank you for this beautiful write up about respected Rev saint Dilvar Ji. Great great saint- full of simplicity, positivity, courage, surrenderance, Faith. May Nirankar give strength to the family ji 🙏🏻

    Thank you for sharing this with us. May I learn from his life and apply in my day to day life Ji and make our Satguru happy the way he led his life as Puran Gursikh 🙏🏻💐

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  2. Thank you for this beautiful write up about respected Rev saint Dilvar Ji. Great great saint- full of simplicity, positivity, courage, surrenderance, Faith. May Nirankar give strength to the family ji 🙏🏻

    Thank you for sharing this with us. May I learn from his life and apply in my day to day life Ji and make our Satguru happy the way he led his life as Puran Gursikh 🙏🏻💐

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  3. Every word written is carefully chosen and very touchy, it depicts the exemplary life that Dilvar Ji lived. Lengthy but worth reading every bit of this article.

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  4. If Mumbai is the mine of many diamonds of Nirankari mission, Rev Dil var ji Pappu ji was Kohinoor......We bow to him as I brought up looking at him and learned many things from my childhood may that be several rally, Kavi darbar or Guru vandana.....Shatashah Naman

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  5. Bachpan se hi Pappujise prerna li hai.unki satsang ane ki mahatta, sewako pahal dena, simran se es paramsatta se judna sikhaya.. sahanshilta ka udaharan dete samay hamesha kahte apni chamdi moti kiya karo... Bolnewale to bahot hai.. lekin sewa ko bakhubi nibhana hai. Kabhi sewa jyada bhi ayi ho to kahte bonas mila hai. Saduguru khush hota hai to sewa bakshta hai.muskarahat se sewa ke jajbe ko aur badhate. Dasi ne aksar dekha hai samagam ground ki, kavi darbar, sewadal rally aur anya kaii sewaye nibhane ke baujud bhi apne unit ki aur badhate, sewadal ke sath unke tent me sona pasand karte, sari sewaye samzate aur khud bhi karte fir chahe vo thali cleaning ki sewa ho, canteen ki ho aur koi anya. Hamare 207 unit aur Dadar ka Taj the pappuji. Pappuji ki ek muskan se hi sarehi apni duty puri lagan se nibhate. Yah bhi sach hai... Kuch bhi laga ki unse koi hurt hua hai... Turant zukkar namashkari karte aur mafi bhi mangte....unhe apne personal life ko bhi bakhubi nibhaya hai... Unke har ek khushi aur gami ke samay sewadal aur sadhsangat ko hamesha sharik karte.. kahte the Das ka parivar to aapji hi ho.. ek sitara kaho ya kaho kohinoor... Apji to jate jate bhi bikher gaye Noor hi noor..Dhan nirankar ji.

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  6. Sundar vyaktitva. Dilvar ji ka Chehra dekhte hi mere man ko sukh ka anubhav ho jata hai. 🙏

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  7. ऐसी महान विभूति के लिखित रूप में दर्शन करके हुमेकन भक्ति सीखने की इस कोशिश के लिए कोटि कोटि धन्यवाद।
    Thank you for sharing Amit ji and Rajan ji 🙏🏻

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