जी हां , ये वह शिक्षक हैं, जो समस्त मानव परिवार को नई दिशा देते हैं - और वह भी बिना किसी लालच अथवा अपेक्षा के - जो बिना किसी भेद भाव के सभी को अपना अर्जित किया हुआ अनमोल ज्ञान एवं विवेक प्रदान करते हैं ।
कहा जाता है कि किसी गुरु या मार्गदर्शक के बिना कोई भी व्यक्ति एक अंधे के समान होता है जो अपना मार्ग ढूंढ़ने में असमर्थ होता है।
वैसे तो माता और पिता एक बच्चे के लिए पहले गुरु होते हैं लेकिन उसके बाद गुरु ही उसके दूसरे माता या पिता बन जाते है।
शास्त्रों में एक अनूठी बात कही गई है - कि पंडित अथवा विद्वान दो बार जन्म लेता है - इसलिए उसे 'द्विज' कहा जाता है।
शास्त्रों में एक अनूठी बात कही गई है - कि पंडित अथवा विद्वान दो बार जन्म लेता है - इसलिए उसे 'द्विज' कहा जाता है।
उस का पहला जन्म माता की कोख से होता है -
और दूसरा, जब उसे एक पूर्ण गुरु मिलता है।
और दूसरा, जब उसे एक पूर्ण गुरु मिलता है।
गुरु को पिता एवं पवित्र शास्त्रों को माता गायत्री का रुप माना जाता है।
गुरु एक पिता के रुप में माँ गायत्री की सहायता से - अर्थात शास्त्रों के अनुसार शिष्य को ज्ञान प्रदान करता है।
गुरु पूर्णिमा का त्योहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार - आषाढ़ (जुलाई-अगस्त) के महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
पूर्णिमा - पूर्णता का प्रतीक है।
गुरु-पूर्णिमा इस विश्वास को भी दर्शाता है कि गुरु पूर्ण - अर्थात परिपूर्ण है।
अगर गुरु के लिए मन में संदेह हो तो कुछ सीखा नहीं जा सकता।
अतः यह स्पष्ट है कि सीखने के लिए हमें गुरु या शिक्षक पर विश्वास होना चाहिए।
इसीलिए हम एक ऐसे गुरु को खोजने का प्रयास करते हैं, जिसे उस विषय का पूर्ण ज्ञान हो।
अगर गुरु के लिए मन में संदेह हो तो कुछ सीखा नहीं जा सकता।
अतः यह स्पष्ट है कि सीखने के लिए हमें गुरु या शिक्षक पर विश्वास होना चाहिए।
इसीलिए हम एक ऐसे गुरु को खोजने का प्रयास करते हैं, जिसे उस विषय का पूर्ण ज्ञान हो।
जब ऐसा गुरु मिल जाए तो शिष्य को चाहिए कि वह विश्वास, श्रद्धा एवं तन्मयता के साथ ज्ञान अर्जन करने का प्रयत्न करे।
गुरु पूर्णिमा केवल गुरु के प्रति शिष्य की कृतज्ञता का प्रतीक नहीं - यह इस विश्वास की भी पुष्टि है कि गुरु पूर्ण है।
इस विषय पर गहराईसे सोचते हुए मेरे मन में एक विचार आया।
एक शिक्षक ने अपने युवा छात्र से पूछा:
"जॉनी। तुम्हारी उम्र क्या है ?
इस विषय पर गहराईसे सोचते हुए मेरे मन में एक विचार आया।
एक शिक्षक ने अपने युवा छात्र से पूछा:
"जॉनी। तुम्हारी उम्र क्या है ?
जॉनी ने कहा - "छह साल"
और आपके पिता की उम्र ?
जॉनी - " वो भी छह साल के हैं।
शिक्षक ने आश्चर्य से पूछा - "लेकिन वो कैसे संभव है?"
जॉनी ने हँसते हुए जवाब दिया - "क्योंकि जब मैं पैदा हुआ तभी तो वह पिता बने थे।"
कोई व्यक्ति तब तक पिता नहीं होता जब तक कि उसका कोई बच्चा न हो।
वह तभी पिता बनता है जब उसकी संतान पैदा होती है।
इसी तरह, जब कोई शिष्य पूर्णता प्राप्त करता है, तो गुरु भी पूर्ण गुरु कहलाता है।
इसलिए गुरु के प्रति कृतज्ञता का अर्थ केवल गुरु की स्तुति गाना और उसे धन्यवाद और उपहार देना ही नहीं है।
कोई व्यक्ति तब तक पिता नहीं होता जब तक कि उसका कोई बच्चा न हो।
वह तभी पिता बनता है जब उसकी संतान पैदा होती है।
इसी तरह, जब कोई शिष्य पूर्णता प्राप्त करता है, तो गुरु भी पूर्ण गुरु कहलाता है।
इसलिए गुरु के प्रति कृतज्ञता का अर्थ केवल गुरु की स्तुति गाना और उसे धन्यवाद और उपहार देना ही नहीं है।
शिष्य को गुरु की शिक्षाओं को समझने का प्रयास करना चाहिए और उन्हें आत्मसात करना करना चाहिए।
जैसे अपने बच्चो की उपलब्धियां देखकर माता-पिता प्रसन्न होते हैं और गौरवान्वित महसूस करते हैं वैसे ही अपने शिष्यों को ऊंचाइयों और पूर्णता को प्राप्त करते हुए देख कर सच्चे गुरु भी प्रसन्न होते हैं ।
बच्चों को सफल और समृद्ध होते देख कर माता-पिता को अपने आप में उपलब्धि का अहसास होता है - उन्हें लगता है कि उनका स्नेह और बलिदान रंग लाया है। उन्हें यह भी महसूस होता है कि उन्होंने माता-पिता के रुप में अपनी भूमिका सही ढंग से निभाई है।
बिल्कुल इसी प्रकार शिष्यों को सफल और प्रसिद्ध होते हुए और समान ऊँचाइयों को प्राप्त करते हुए देखकर, एक सच्चे गुरु को भी अत्यंत प्रसन्नता और उपलब्धि का एहसास होता है - और लगता है कि उन्होंने गुरु के रुप में अपनी भूमिका पूर्णरुपेण निभाई है।
इसलिए, गुरु के प्रति सच्ची और वास्तविक कृतज्ञता तब होगी जब हम अपने आप में पूर्णता प्राप्त करने की दिशा में गंभीरता से प्रयत्न करना शुरु कर देंगे। तभी हम वास्तव में अपने गुरु को प्रसन्न और संतुष्ट कर पाएंगे।
बिल्कुल इसी प्रकार शिष्यों को सफल और प्रसिद्ध होते हुए और समान ऊँचाइयों को प्राप्त करते हुए देखकर, एक सच्चे गुरु को भी अत्यंत प्रसन्नता और उपलब्धि का एहसास होता है - और लगता है कि उन्होंने गुरु के रुप में अपनी भूमिका पूर्णरुपेण निभाई है।
इसलिए, गुरु के प्रति सच्ची और वास्तविक कृतज्ञता तब होगी जब हम अपने आप में पूर्णता प्राप्त करने की दिशा में गंभीरता से प्रयत्न करना शुरु कर देंगे। तभी हम वास्तव में अपने गुरु को प्रसन्न और संतुष्ट कर पाएंगे।
ईश्वर से प्रार्थना है कि हम सब ऐसी वास्तविक पूर्णिमा को प्राप्त कर पाएं।
' राजन सचदेव '
Thanks Hazur, Always seeking Blessings.
ReplyDeleteThanks 🙏🏿
ReplyDeleteSatguru Mata ji ko kotam bàr namaskar
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