Saturday, July 31, 2021

दिलों के वर - दिलवर जी

मुम्बई के एक हरमन प्यारे संत भुपिंदर सिंह चुघ 'दिलवर' जी कल अपने पार्थिव शरीर को त्याग कर इस नश्वर संसार से विदा हुए। 
एक प्रेमी भक्त ने - जिसने उनके जीवन को बहुत नज़दीक से देखा - अपने मन के भाव और संस्मरण इस लेख में व्यक्त किये हैं जो मन को छूने वाले हैं। ये संस्मरण न केवल महात्मा दिलवर जी के जीवन और उनके महान गुणों को दर्शाते हैं बल्कि सबके लिए प्रेरणा का स्तोत्र भी बन सकते हैं। 
----------------------------------------------------------------------
                                     दिलों के वर - दिलवर जी
                                  (By :अमित चव्हाण - मुम्बई)
                                           
मेरे लिए यदि भक्ति का गुरूसिखी का, निस्वार्थ प्रेम का सेवा का कोई व्यक्त रूप है तो वो दिलवर जी है।

उन्होंने पिछले कुछ वर्षों से मुझे साथ रखा, प्रेम दिया ,जैसे परिवार का एक सदस्य ही बना लिया और सिखाया की प्रेम कैसे निभाया जाता है, फिर वह प्रेम इष्ट के साथ हो, व्यक्ति के साथ हो,भक्ति के साथ हो या जिम्मेदारी के साथ हो।

उनका जीवन सादा था, सादे कपड़े पहनते, सादा खाना खाते। लेकिन गहरी बाते समझाते।
उनकी यह सादगी जीवन को प्रभावित ही नही प्रकाशित भी करती थी। भाषा पे प्रभुत्व था, हिंदी हो, अंग्रेजी हो, मराठी हो, पंजाबी हो, हर भाषा स्पष्ठ थी और भाव बहुत शुद्ध था।
सत्संग में पहुचते तो कार्नर में नीचे बैठकर सत्संग सुनने में आनंद मानते, सेवा के कारण जब अनेको बार उन्हें माइक पर बोलना पड़ता तो वो सेवा तो पूरी निभाते लेकिन अक्सर कहते कि माइक पर किसी और को भी मौका मिलना चाहिए और आये हुए संतो का स्वागत करने के लिए हो या अन्य किसी कारण के लिए खुद पीछे रहकर बुजुर्गों को सन्मान देते।

जब कोई काव्य करने बैठते तो ऐसे महसूस होता कि निरंकार प्रभु में से शब्दों का चुनाव कर रहे हो और अपने भाव को कलम पर उतार देते। आज ऐसे ही महसूस हो रहा है कि ईश्वर ने उनका जीवन गीत भी बहुत समय लेकर हर एक रस भरकर संसार को गिफ्ट दिया और समझाया, "जीना इसी का नाम है..."

उनके जीवन के कई प्रेरक संस्मरण दास के जीवन के साथ जुड़े हुए है जो मुझे दिलवर जी की शारीरिक अनुपस्थिति में भी उनके निरंतर साथ होने का एहसास दिलाते रहेंगे।

बात कुछ वर्ष पुरानी है, दिलवर जी और सरबजीत शौक जी के मार्गदर्शन में मुम्बई में किड्स डिवाइन प्रोग्राम की रेकॉर्डिंग चल रही थी, रेकॉर्डिंग देर रात तक चली और उसके बाद पता चला की दिलवर जी की कार कही दूर पार्क है, दास के आग्रह के बाद उन्होंने दास की बिनती स्वीकार की और उन्हें कार तक छोड़ने की सेवा प्रदान की, उन्हें कार के नजदीक लेकर जाने के बाद बस एक रस्ता क्रॉस करना था कि दिलवर जी ने कहां, यही रोक दो, दास ने गाड़ी रोक दी, फिर कहने लगे "आप रस्ता क्रॉस ना करो, खामखा दूर चक्कर काट के आपको वापस जाना पड़ेगा"
दास ने फिर आग्रह किया कि "दास सेवा पूरी करना चाहता है, please allow me to drop near car, please allow me to cross the road."
उन्होंने मना किया और गाड़ी से उतर भी गए, वह अपनी कार तक पहुचने ही वाले थे कि जोर से बारिश आयी और वह इतनी जोर की बारिश थी कि कुछ सेकण्ड में ही वो पूरे भीग गए और अपनी कार में बैठ गए।
थोडे समय बाद किसी जगह वह मेरे नजदीक आये और बड़े विनम्रतापूर्वक कहने लगे - "आप के मुख से आनेवाला शब्द निरंकार का था मैंने आपके वचन को नही माना, अगर मान लेता तो शायद भीगने से बच जाता।"
दास इन शब्दों के लायक नही था लेकिन मेरे जैसे कच्चे, बच्चे को भी वह इस दृष्टि से देखते स्नेह देते और यह कर्म करके समझाते  कि  'ब्रहमज्ञानी के मुख से निकलने वाला शब्द भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना गुरु का शब्द होता है।'

व्यवस्था की दृष्टि से अनेक नाजुक क्षणों का सामना करना पड़ता है, दास सेवा के कारण उनके साथ ही बैठता और कुछ संवेदनशील चर्चाओं के बीच मे अक्सर देखता कि वह दो मिनिट के लिए कही एकांत में उठकर चले जाते और वापस आने के बाद फिर से चर्चा प्रारम्भ करते और अचानक वार्ता का रूप ही बदल जाता। सामनेवाले व्यक्ति का मन तैश से संतोष में रूपांतरित हो जाता।

क्योंकि दास का दिलवर जी के साथ रिश्ता बहुत गहरा था, इसी लिए एक बार दास ने जिज्ञासा वश उन्हें हिम्मत करके पूछा कि आप वह बीच में उठकर चले गए और वापस आने के बाद अचानक चर्चा का रूप बदल गया, तो दिलवर जी मुझे समझाने लगे "जब मन मे कशमकश हो कोई रास्ता ना सूझे तो निरंकार प्रभु परमात्मा के साथ और गहरा संबंध जोड़ना चाहिए।  दास 2 मिनिट के लिए एकांत में प्रभु से सिमरन द्वारा प्रार्थना कर रहा था कि आप मुझे सही रास्ता प्रदान करो, मन में  स्थिरता बक्शो किआये हुए सज्जन को सही राय इस घट से प्राप्त हो सके।"

एक और संस्मरण ध्यान में आ रहा है, जब भी यह संस्मरण दास को ध्यान में आता है, रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 

बात दिसम्बर 2018 की है, मुम्बई का निरंकारी परिवार तैयार हो रहा था NYS मुम्बई के आयोजन के लिए, दास भी सुबह सुबह ग्राउंड की तरफ अपनी सेवा निभाने के लिए पहुंच ही रहा था कि दिलवर जी के बेटे अंकित जी और बहू संज्जना जी के एक्सीडेंट और निधन के बारे में पता चला। दास ने तुरंत ही दिलवर जी को फ़ोन किया - "अंकल जी आप कहा हो? मैं आ रहा हूँ आपके पास, बताओ आपजी कहां हो"

दिलवर जी की आवाज नरम थी लेकिन उनकी आवाज में पूर्ण विश्वास था, उन्होंने कहा "अमित जी, सद्गुरु है ना, निरंकार है ना, आप चिंता ना करो, जो भी हुआ है निरंकार की रजा में हुआ है, इसे स्वीकार करना है"

दास ने फिर आग्रह से दोहराया, "आप कहां हो, इस क्षण में आपके साथ रहना चाहता हूँ " और तत्परता से मुझे वह कहने लगे -

"नही अमित जी, आप NYS में जाओ, बच्चो ने काफी मेहनत की है, सद्गुरु ने आपकी वहां सेवा लगाई है, आप अपनी सेवा निभाओ"

और इसके बाद जो उन्होंने कहा उसे दास कभी नही भूल सकता - एक ऐसा क्षण जब उनका बेटा, बहु दोनों आकस्मिक गतप्राण हुए - उस क्षण वर्तमान, भविष्य दोनों अंधेरे में मालूम पड़ रहा है लेकिन उस हाल में भी वह सेवा के प्रति सजग थे, सब का ह्रदय निरंकार से जोड़े रखने में कितने तत्पर थे यह इस बात से पता चलता है, जो उन्होंने मुझे आगे कही, उन्होंने कहा -
" एक महात्मा शायद किसी कारण से दुःखी है, you make sure जब वह महात्मा NYS में आये तो कोई उन्हें रोके नही, उन्हें पूर्ण सम्मान के साथ निश्चित स्थान पर बिठाना, देखना कोई महात्मा मिशन से टूटना नही चाहिए"

जरा सोचिए - बेटे और बहु के आकस्मिक निधन की वार्ता को अभी एक घंटा भी नही हुआ और ऐसी स्थिति में भी मिशन का ध्यान, सत्संग के प्रति निष्ठा और एक एक महात्मा के ह्रदय को जानना और स्नेह देना -  ऐसे थे दिलवर जी।

और सबसे बड़ी शिक्षा यह भी है कि अपने जीवन की इतनी बड़ी परीक्षा की घड़ी में भी कभी यह नही देखा कि उन्होंने इस घटना की वजह से या अन्य किसी बात की वजह से कोई शिकायत की हो - कि यह निरंकार ने मेरे साथ क्यों किया - नही कभी भी नही - अपितु सद्गुरु ने जो उन्हें धाडस दिया, और कहा कि "दिलवर जी - समर्थ, सिदक इन दोनों बच्चों को साध संगत पालेगी, लाड़ प्यार देगी" 
इस बात का उन्होंने शुक्रिया किया और सेवा, सिमरण, सत्संग निरंतर उसी उत्साह के साथ जारी रखा।  इसका एक उदाहरण यह भी है कि इस घटना के तुरंत बाद ही, वह महाराष्ट्र संत समागम की सेवाओ में अत्यंत सक्रिय हो गए थे और यह गति उनकी शरीर की अस्वस्थता भी रोक नही पाई।

जब वह अस्पताल में दाखिल थे और ठीक से बोलने में भी असमर्थ थे, पूरे शरीर को मशीन संचालित कर रही थी ऐसी स्थिति में भी सेवा नही रुकनी चाहिए इस भाव के साथ लंबी सांस लेकर एक दो शब्द बोलते फिर रुकते फिर लंबी सांस भरते और एक दो शब्द बोलते ऐसे बोलकर अपनी नही अपितु मिशन की सेवा क्या करनी है समझाते।
अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी जब उनकी आवाज ने साथ छोड़ दिया तो मोबाइल में टाइप कर सेवा समझाते और यदि मोबाइल पर टाइप करना सम्भव ना हो तो पेपर पर लिख कर कौन सी चीजें विलंबित है, कैसे करनी है यह बात बताते।
सेवा के प्रति निष्ठा का मूर्तिमंत रुप थे दिलवर जी। 

विनम्रता उनके जीवन का एक बहुत बड़ा भाग थी - एक बार सेवा करते हुए, उन्होंने किसी बहन को स्पष्टता से सेवा कैसे करनी चाहिए यह समझाया, लेकिन किसी कारण उस बहन के ह्रदय को दुःख हुआ।  जैसे ही यह बात दिलवर जो को महसूस हुई उन्होंने यह नही देखा कि वह बहन उनसे आयु में छोटी है, अनुभव में छोटी है, कद में छोटी है। उन्हें यह तक नही देखा कि उसमें उनकी खुद की गलती भी कुछ नही है। बस उस बहन के ह्रदय को पीड़ा ना हो, इस लिए दिलवर जी उस बहन के चरणों मे सर रखकर झुक गए, उस से माफी मांगी। मन मे किसी प्रकार अहम भाव नही, केवल समर्पण कि मेरे किसी हावभाव के कारण किसी को भी चोट ना पहुंचे। वह विनम्रता के पुंज थे।

अभी कुछ दिन पहले जब उन को देखने के लिए दास परिवार सहित पहुँचा, उनकी शारीरिक स्थिति देखकर दास बहुत असहज हो गया, किंतु अपनी असहजता उनके सामने छुपाने के लिए दास झूठा झूठा हंसने की कोशिश कर रहा था, यह बात भी दिलवर जी शायद भांप गए होंगे लेकिन फिर भी दास की हंसी में मुस्कुराकर जवाब देते।
यह भी उनकी विशेषता थी कि किसी की गलती देखकर भी उसे किसी और के सामने प्रकट ना होने देना। किसी की गलती या झूठ पर पर्दा डालना। देखकर अनदेखा कर देना। यह उन्होंने अक्सर किया। मुझ से और सरबजीत जी से अक्सर वह लगभग सारी बातें सांझा करते लेकिन शायद ही ऐसी कोई बात उन्होंने साँझा की हो जिसमें किसी का दोष दीखता हो...और यह गुण अंत तक बना हुआ था।

किसी की बात को या भाव को correct करने का भी उनका ढंग अनोखा था जिस से किसी का दिल भी ना दुःखता और वो बात मानकर हँसी खुशी अपने आप मे सुधार करता...
तो बात उस दिन की चल रही है जब अंतिम दिनों में दास दिलवर जी को मिलने पहुंचा - दास ने उनको कहा, "देखो, जब सद्गुरु मुम्बई में आये तो चेम्बूर में आने से पूर्व वह आपको मिलने आये, देखो सद्गुरु आपसे कितना प्रेम करते है, स्नेह देते है, आप सद्गुरु के लाडले भक्त हो"
जैसे ही यह बात उन्होंने सुनी, ऐसे शारीरिक स्थिति में जब उनका हाथ भी फ्रैक्चर था  - शरीर बिल्कुल साथ नही दे रहा था फिर भी हाथ जोड़कर, गर्दन ना के स्वर में हिलाकर - जैसे विनम्रतापूर्वक कह रहे थे, 'नही - मैं इस स्तुति के काबिल नहीं '

दास को उन्होंने कभी भी अलग महसूस नही होने दिया 
हमेशा अपने साथ रखा, साथ बिठाया, साथ खिलाया, साथ बैठकर हाथ पकड़कर सिखाया।
52 वे संत समागम में खुले रूप में उन्होंने सद्गुरु के सामने एक प्रार्थना की थी - 'मैं जोनल इंचार्ज के रूप शायद फेल हो जाऊं, लेकिन गुरूसिखी में फेल ना हो जाऊं।'

आज जब उन्होंने अपनी जीवन यात्रा सम्प्पन की है तो यह महसूस होता है कि वह गुरूसिखी का जीवंत प्रमाण बने रहे हैं।

प्रेम और स्नेह से भरे दिलवर जी के साथ ऐसे कई संस्मरण है। जो लिखे नही जाएंगे, बोले नही जाएंगे पर याद बहुत आएंगे। 
और इस बात का खेद भी रहेगा कि मैं उनकी पूरी तरह कदर नही कर पाया - उनको योग्य आदर सन्मान नही दे पाया। लेकिन उन्होंने मुझे प्रेम देने में कोई कमी नहीं की।

Thank You Satguru Nirankar For Blessing Dilvar Ji In My Life❤️
Note - Thank You Respected Rajan Sachdeva ji For Inspiring Me Positively To Write On Him.
                                             "अमित चव्हाण "- मुम्बई 

Friday, July 30, 2021

Life and death - जीवन और मृत्यु

Life and death are two sides of the same coin.

In youth, it gives the energy to work
Rest in old age
and Peace in death.

For one who supplied what I needed in life -
Will also provide me what I need in death.

जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

युवावस्था में मिलती है शक्ति एवं ऊर्जा
वृद्धावस्था में आराम
और मृत्यु में शांति

जिसने हमारे जीवन की सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति की
वो निश्चय ही वह भी प्रदान करेगा जिसकी आवश्यकता 
हमें मृत्यु में और मृत्यु के पश्चात होगी।

Thursday, July 29, 2021

Forget the things उदास करे जो मन

Forget the things that make you sad
Cherish the moments that make you glad

Ignore the troubles that passed away
Endure the blessings that come your way

उदास करे जो मन वो बातें भूल जाइए
याद करके मधुर यादें  मुस्कुराइए

बीता वक़्त लौट के  न आएगा ' राजन
पास है जो उस से ज़िंदगी सजाईऐ 

Udaas karay jo man vo baaten bhool jaaiye
Yaad kar kay madhur yaaden muskuraaiye 

Beeta vaqt laut kay na aayega 'Rajan
Paas hai jo us say zindgi sajaaiye 
                   ' Rajan Sachdeva '

Wednesday, July 28, 2021

If you need to vent अपना दुःख निरंकार प्रभु से कहें

If you need to vent, then vent to God - not to people.
Because a listening ear can quickly turn into a whispering mouth.
                                                      "Baba Avtar Singh ji"

अगर कभी आपको अपने दुःख और समस्याओं के बारे में  किसी से बात करने की ज़रुरत  महसूस होती है, तो अपना दुःख निरंकार प्रभु से कहें  - लोगों से नहीं।
क्योंकि सुनने वाले कानों को ज़ुबान में बदलते देर नहीं लगती। 
                                              " बाबा अवतार सिंह जी  "

Think and Speak सोच के बोलें

दिमाग़ सोचने के लिए मिला है और ज़ुबान बोलने के लिए
अब ये हम पर निर्भर करता है कि सोच कर बोलें -
या बोलने के बाद सोचें !

God gave us the brain to think and the tongue to speak.
Now it is up to us to think and speak -
Or speak and then think - after speaking!

Tuesday, July 27, 2021

चरण केवल मन्दिर तक Feet only lead us to the temple

चरण केवल मन्दिर तक ले जाते हैं
आचरण हमें प्रभु तक ले जाता है

Charan kewal Mandir tak lay jaaty hain 
Aacharan -  Prabhu tak lay jaata hai 
                 ~~~~~~~~~~~

The Charan - (feet) only lead us to the temple.
It's the Aacharan - conduct & conviction that leads us to the Lord.

Hanumant ko Giridhar kahay na koye

Chhoti baat badan ki - badi badaayi hoye
Jyon Raheem Hanumant ko Giridhar kahay na koye

There is another version of this Doha:

Badi baat chhotan karay to kahin badhaayi na hoye
Jyon Raheem Hanumant ko Giridhar kahay na koye

Meaning:
If an ordinary person says something good or even does some great work, people hesitate to praise him - No one wants to respect him.
When Lakshman was unconscious - Hanuman carried and brought a whole mountain - filled with medicinal plants to save him. But, no one calls him Giridhar.
Whereas, for doing a similar thing - for holding a mountain on his hand, Lord Krishna is known and worshiped everywhere as Giridhar or Giridhaari.

In this short couplet, Abdul Rahim has touched upon quite a profound but bitter truth so elegantly.
He says that no matter how good things an ordinary person may say or how good or important a work he may do, no one gives credit to him or mentions him. Nor do people give him any respect.
But on the other hand - even an ordinary thing or a small act done by a dignified - famous and influential person is viewed and regarded very big. It is shared and publicized all over the world with love and reverence by everyone.

Instead of focusing on the aphorisms or maxims - on directives or deeds - people only want to see who said it or who did it.
Usually, when an ordinary person says something nice, we do not pay attention to it.
But, then - if we are told that it was said by an eminent person - a person of high and respectable position, then our attitude changes immediately.
Even an ordinary talk coming from a higher person is viewed as noble - grand and majestic. 
But, if the same thing comes out of the mouth of an unknown person, then we do not even hesitate to criticize him.
The injunction or directive may be the same, but if the speaker changes, the reaction from the listeners also changes.
Right or wrong - but this is the precept and practice of this world.
Bitter and sad - but true!                      

हनुमंत को गिरिधर कहै न कोय

           छोटी बात बड़न की  - बड़ी बड़ाई होय 
        ज्यों रहीम हनुमंत को गिरिधर कहै न कोय

इस दोहे का एक दूसरा रुप भी प्रचलित है :

              बड़ी बात छोटन करै तौ  न बड़ाई होय
           ज्यों रहीम हनुमंत को गिरिधर कहै न कोय
                                                               रहीम  

अर्थात: एक बड़ा आदमी कोई छोटा सा काम भी कर दे तो उसकी बहुत बड़ाई एवं प्रशंसा होती है 
लेकिन एक छोटा अथवा साधारण आदमी अगर कोई बहुत अच्छी बात कह दे या कोई बहुत बड़ा काम भी कर दे तो लोग उसकी प्रशंसा करने और उसे सम्मान देने में संकोच करते हैं।
जैसे - 
जब लक्ष्मण मूर्च्छित थे तो उन्हें बचाने के लिए हनुमान इतना बड़ा पहाड़ उठा कर ले आए लेकिन फिर भी उन्हें कोई गिरिधर नहीं कहता।
जबकि भगवान कृष्ण को दुनिया भर में गिरिधर और गिरिधारी के नाम से जाना और पूजा जाता है।

इस छोटे से दोहे में अब्दुल रहीम ने संसार की इतनी गहरी, लेकिन कड़वी सच्चाई को कितनी सुंदरता और सहजता से कह दिया है कि कोई साधारण व्यक्ति चाहे कितनी अच्छी बात कह दे या कितना ही बड़ा काम क्यों न कर दे - उसका कोई ज़िकर नहीं करता, न ही उसे कोई सम्मान देता है। हनुमान को गिरिधर होने का सम्मान नहीं मिला क्योंकि वह एक सेवक थे।  
लेकिन एक बड़े एवं प्रतिष्ठित व्यक्ति की छोटी सी बात अथवा छोटे से काम को भी बहुत बड़ा माना जाता है और जगह जगह पर प्रेम और श्रद्धा के साथ उसकी चर्चा होने लगती है। लोग 'बात या काम ' पर ध्यान देने की जगह सिर्फ़ यह देखते हैं कि ये बात किस ने कही, या वो काम किसने किया।

अक़्सर देखने में आता है कि कोई साधारण व्यक्ति अगर कोईअच्छी बात कहे तो कोई उसकी तरफ ध्यान नहीं देता - लेकिन फिर जब ये बताया जाए - जब ये पता चले कि वह बात किसी उच्च पदवी पर आसीन या किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति द्वारा कही गई है तो हम फ़ौरन नत-मस्तक हो जाते हैं और वाह वाह करने लग जाते हैं - और वही बात अगर किसी साधारण व्यक्ति के मुख से निकली हो तो हम उसकी आलोचना करने से भी नहीं चूकते।

बात चाहे वही हो लेकिन कहने वाला बदल जाए तो सुनने वालों की प्रतिक्रिया भी बदल जाती है।
सही या ग़लत - लेकिन यही है इस संसार का नियम और चलन।
कड़वा एवं दुःखद - परन्तु सत्य !
                                         

Monday, July 26, 2021

How many kidneys do we have?

A teacher addressed a backbencher student and asked: 
How many kidneys do we have?
"Four! The student responds.
"Four?
Haha."
The teacher was one of those who took pleasure in picking on his students and demoralizing them.

"Bring a bundle of grass - because we have a donkey in the room" - the teacher orders a frontbencher.

'And a cup of coffee for me!' - the backbencher student added.

The teacher was furious and expelled the student from the room.

On his way out of the classroom, the student still dared to correct the furious teacher:
"You asked me how many kidneys we have.
'We have' - is an expression used for the plural.
We have four kidneys: two of mine and two of yours.
Enjoy the grass."

Life demands much more understanding than just bookish knowledge and mere beliefs. 

The student was, by the way, a famous humorist - namely Aparicio Torelly Aporelly (1895-1971), better known as the Baron de Itararé.
                                                  Courtesy of Dr. Bajaj - Chicago

Sunday, July 25, 2021

बहुत ऊँची इमारत Bahut oonchi imaarat (A very tall building)

बुलंदी देर तक किस शख़्स के हिस्से में रहती है
बहुत ऊँची इमारत  हर घडी ख़तरे में रहती है

Bulandi der tak kis shakhs kay hissay me rehti hai?
Bahut oonchi imaarat har ghadi khatray me rehti hai 
                                     -- -- -- -- -- 
It's hard to hold on to the height and glamour for long 
A very tall building is always in danger

Saturday, July 24, 2021

गुरु पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं

गुरु पूर्णिमा, भारत और नेपाल की आध्यात्मिक परंपरा का एक अभिन्न अंग है - विशेषतया यह दिन आध्यात्मिक और शैक्षणिक शिक्षा प्रदान करने वाले गुरुओं को समर्पित है। 
जी हां , ये वह शिक्षक हैं, जो समस्त मानव परिवार को नई दिशा देते हैं - और वह भी बिना किसी लालच अथवा अपेक्षा के - जो बिना किसी भेद भाव के सभी को अपना अर्जित किया हुआ अनमोल ज्ञान एवं विवेक प्रदान करते हैं ।

कहा जाता है कि किसी गुरु या मार्गदर्शक के बिना कोई भी व्यक्ति एक अंधे के समान होता है जो अपना मार्ग ढूंढ़ने में असमर्थ होता है। 
वैसे तो माता और पिता एक बच्चे के लिए पहले गुरु होते हैं लेकिन उसके बाद गुरु ही उसके दूसरे माता या पिता बन जाते है।

शास्त्रों में एक अनूठी बात कही गई है - कि पंडित अथवा विद्वान दो बार जन्म लेता है - इसलिए उसे 'द्विज' कहा जाता है।
उस का पहला जन्म माता की कोख से होता है -
और दूसरा, जब उसे एक पूर्ण गुरु मिलता है। 
गुरु को पिता एवं पवित्र शास्त्रों को माता गायत्री का रुप माना जाता है।  
गुरु एक पिता के रुप में माँ गायत्री की सहायता से - अर्थात शास्त्रों के अनुसार शिष्य को ज्ञान प्रदान करता है। 

गुरु पूर्णिमा का त्योहार हिन्दू कैलेंडर के अनुसार - आषाढ़ (जुलाई-अगस्त) के महीने में पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।
पूर्णिमा - पूर्णता का प्रतीक है। 
गुरु-पूर्णिमा इस विश्वास को भी दर्शाता है कि गुरु पूर्ण - अर्थात परिपूर्ण है।

अगर गुरु के लिए मन में संदेह हो तो कुछ सीखा नहीं जा सकता। 
अतः यह स्पष्ट है कि सीखने के लिए हमें गुरु या शिक्षक पर विश्वास होना चाहिए।
इसीलिए हम एक ऐसे गुरु को खोजने का प्रयास करते हैं, जिसे उस विषय का पूर्ण ज्ञान हो। 
जब ऐसा गुरु मिल जाए तो शिष्य को चाहिए कि वह विश्वास, श्रद्धा एवं तन्मयता के साथ ज्ञान अर्जन करने का प्रयत्न करे। 

गुरु पूर्णिमा केवल गुरु के प्रति शिष्य की कृतज्ञता का प्रतीक नहीं - यह इस विश्वास की भी पुष्टि है कि गुरु पूर्ण है।
इस विषय पर गहराईसे सोचते हुए मेरे मन में एक विचार आया।
एक शिक्षक ने अपने युवा छात्र से पूछा:
"जॉनी। तुम्हारी उम्र क्या है ?
 जॉनी ने कहा - "छह साल"
और आपके पिता की उम्र ?
जॉनी - " वो भी छह साल के हैं। 
शिक्षक ने आश्चर्य से पूछा - "लेकिन वो कैसे संभव है?"
जॉनी ने हँसते हुए जवाब दिया - "क्योंकि जब मैं पैदा हुआ तभी तो वह पिता बने थे।"

कोई व्यक्ति तब तक पिता नहीं होता जब तक कि उसका कोई बच्चा न हो।
वह तभी पिता बनता है जब उसकी संतान पैदा होती है।
इसी तरह, जब कोई शिष्य पूर्णता प्राप्त करता है, तो गुरु भी पूर्ण गुरु कहलाता है।
इसलिए  गुरु के प्रति कृतज्ञता का अर्थ केवल गुरु की स्तुति गाना और उसे धन्यवाद और उपहार देना ही नहीं है। 
शिष्य को गुरु की शिक्षाओं को समझने का प्रयास करना चाहिए और उन्हें आत्मसात करना करना चाहिए।
जैसे अपने बच्चो की उपलब्धियां देखकर माता-पिता प्रसन्न होते हैं और गौरवान्वित महसूस करते हैं वैसे ही अपने शिष्यों को ऊंचाइयों और पूर्णता को प्राप्त करते हुए देख कर सच्चे गुरु भी प्रसन्न होते हैं । 
बच्चों को सफल और समृद्ध होते देख कर माता-पिता को अपने आप में उपलब्धि का अहसास होता है - उन्हें लगता है कि उनका स्नेह और बलिदान रंग लाया है। उन्हें यह भी महसूस होता है कि उन्होंने माता-पिता के रुप में अपनी भूमिका सही ढंग से निभाई है।
बिल्कुल इसी प्रकार शिष्यों को सफल और प्रसिद्ध होते हुए और समान ऊँचाइयों को प्राप्त करते हुए देखकर, एक सच्चे गुरु को भी अत्यंत प्रसन्नता और उपलब्धि का एहसास होता है - और लगता है कि उन्होंने गुरु के रुप में अपनी भूमिका पूर्णरुपेण निभाई है।
इसलिए, गुरु के प्रति सच्ची और वास्तविक कृतज्ञता तब होगी जब हम अपने आप में पूर्णता प्राप्त करने की दिशा में गंभीरता से प्रयत्न करना शुरु कर देंगे। तभी हम वास्तव में अपने गुरु को प्रसन्न और संतुष्ट कर पाएंगे। 
ईश्वर से प्रार्थना है कि हम सब ऐसी वास्तविक पूर्णिमा को प्राप्त कर पाएं।
                                                ' राजन सचदेव '

Friday, July 23, 2021

Happy Guru Poornima

Guru Purnima is an Indian & Nepali spiritual tradition - dedicated to spiritual and academic teachers. Those who are evolved or enlightened humans - and ready to share their wisdom, with very little or no monetary expectation.

It is believed that a person is blind without a teacher to guide him. 
Mother and father are the first teachers of a child. 
But after that, the Guru becomes his or her second mother or father.

The Shastras proclaim that a human being is born twice - known as Dvija. 
First, by the union of the father and mother - and second, when he is accepted by a bonafide Guru. 
The Guru acts as a father and delivers him the knowledge - with the help of mother Gayatri - a personified symbol of the holy scriptures (the personification of the knowledge & wisdom).
In other words, Guru is considered the father and the Holy Scriptures and literature as a mother. 
Guru teaches with the help of, or according to Scriptures.

The festival of Guru Poornima is celebrated on the full moon day (Purnima) in the month of Ashadh (July-August) - as it is known in the Hindu calendar of India and Nepal.
The symbol of the full moon represents perfection.
Guru-Poornima is a symbolic reminder of the belief that Guru is Poorna - perfect.
We cannot learn much from someone if we have doubts about their knowledge in the subject we want to acquire.
In order to learn, we need to have faith in the Guru - the teacher.
Therefore, we always try to find a Guru who might have perfect knowledge in the required subject. Once our curiosity about Guru’s Gyan or knowledge is satisfied, we must have faith in his teachings.
One of the most popular beliefs about the meaning of Guru Poornima is - 
That Guru Poornima is not just a symbol of gratitude of the disciple towards the Guru - it is also a reaffirmation of the belief that the Guru is Poorna.

While contemplating this belief, a thought came to my mind.

A teacher asked his young student:
“Johnny. How old is your father”?
“Six years,” Johnny said.
“How is that possible?” Teacher asked.
“Duh..... Because he became a father when I was born.”

A person is not a father until he has a child.
He becomes a father only when his child is born.
Similarly, doesn’t a Guru become a perfect Guru when his disciples achieve perfection?

Therefore, the gratitude towards the Guru is not just singing Guru’s praises and offering thanks and gifts.
The student or disciple must try to understand Guru's teachings and try to imbibe them.

Just like the parents become happy and feel proud of their children’s achievements - the Gurus also feel happy and proud when they see their disciples achieving heights and perfection. 

Seeing the children prospering, parents feel a sense of achievement in themselves – that their love and sacrifice has paid - that they have fulfilled their role as parents. 
Similarly, seeing the disciples becoming perfect and achieving the same heights, the Guru may also feel that he has fulfilled his role as the Guru. 
Therefore, sincere and genuine gratitude towards the Guru would be when we start working seriously towards achieving perfection in our-self - to make the Guru feel happy - content, and fulfilled. 

May the Lord bless us all to achieve that Poornima.

                             To all my Gurus 
               Who taught me to be what I am
                                      'Rajan Sachdeva'

Thursday, July 22, 2021

आसां को छोड़ मुश्किल को ढूंढ़ते हैं Asaan ko chhod mushkil ko dhoondtay hain

छोड़ा नहीं खुदी को, दौड़े खुदा के पीछे
आसां को छोड़ बंदे, मुश्किल को ढूंढ़ते हैं

Chhoda nahin khudi ko, dauday Khuda kay peechhay
Asaan ko chhod banday - mushkil ko dhoondtay hain 

   ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Does not drop the ego and runs after God -
Instead of trying to accomplish what is easy and at hand, 
man wants to explore the hidden - complex and unknown

Excellence is a continuous process

God, our Creator, has stored within our minds and personalities great potential of strength and ability.

Prayer helps us tap and develop these powers.

Excellence is a continuous process and not an accident.

                                           " A. P. J. Abdul Kalam "

Monday, July 19, 2021

Walking with a Torch

When we walk in the dark with a torch in our hand, we may falsely believe that we are carrying the light with us and removing the darkness along the way.
While in reality, it is the light that leads us to move forward on the right path.

Likewise, sometimes we think that we are marching ahead on the righteous path of Gyana - the knowledge and truth - and showing the way to others too.

While in reality, it is the Gyana – the knowledge that guides us on the path of truth.

We are Gyani – wise and learned – is false pride.
Gyana should become – not a matter of pride - but the guiding principle of our life.
As the ancient Rishis proclaimed: Vidya dadaati Vinayam'
Knowledge bestows humility.

Humility and modesty are the first signs of a Gyani.
On the other hand, pride and arrogance are the signs of darkness and ignorance.
We should lead a simple, honest, and truthful life based on the Gyana, which would also become an inspiration to others.
                                                        ' Rajan Sachdeva '

अँधेरे में दीये का प्रकाश

कभी हम अंधेरे में दीया हाथ में लेकर चलते हैं तो हमें यह भ्रम हो जाता है कि हम दीये को लेकर चल रहे हैं और रास्ते का अँधेरा मिटाते जा रहे हैं ।
जबकि सच्चाई एकदम इस से विपरीत है। 
असल में तो दीया हमें लेकर चल रहा होता है।

ऐसे ही, कभी कभी हमारे मन में इस प्रकार के विचार आने लगते हैं कि हम ज्ञानी हैं और सत्य के मार्ग पर अग्रसर हो रहे हैं - आगे बढ़ रहे हैं - तथा औरों को भी मार्ग दिखा रहे हैं ।
लेकिन हक़ीक़त तो ये है कि ज्ञान हमें सत्य के मार्ग पर लेकर चलता है।

हम ज्ञानी हैं - ये मिथ्या अभिमान है।
ज्ञान - अभिमान का नहीं - प्रेरणा का स्तोत्र होना चाहिए।
                       विद्या ददाति विनयम
ज्ञानी का पहला लक्षण है कि उसमें नम्रता एवं दूसरों के प्रति आदर और सत्कार की भावना होती है।
अभिमान का अर्थ है ज्ञान का न होना।

ज्ञान हमारे जीवन का आधार बने -
हम ज्ञान पर आधारित - नम्रता,सादगी एवं सच्चाई से परिपूर्ण जीवन जीएँ - इस प्रकार की सोच एवं भावना ही प्रेरणास्पद है।
                                       ' राजन सचदेव '

When you Master Peace

When you Master Peace 

       Your life will

Become a Masterpiece

Sunday, July 18, 2021

काम वो अच्छा है... Actions are only good if...

क़तरा दरिया में मिल जाए तो दरिया हो जाए 
काम अच्छा है वो जिसका मुआल अच्छा है
                                          (मिर्ज़ा ग़ालिब )

Qatra dariya me mil jaaye to dariya ho jaaye
Kaam achhaa hai vo jiska muaal achhaa hai
                                                     (Mirza Ghalib)
Qatra        -  Drop
Muaal      -   Result, Outcome

If a drop of rain descends in a river, it merges into it and becomes a part of the river.
Works - actions and efforts are good only if their outcome is good.

Saturday, July 17, 2021

न था कुछ तो ख़ुदा था Na tha kuchh to Khuda tha

न था कुछ तो ख़ुदा था  - कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने  -न होता मैं तो क्या होता

हुआ जब ग़म से यूँ बेहिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से  - तो ज़ानू पर धरा होता

हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता
                                                 मिर्ज़ा  ग़ालिब 

Na tha kuchh to Khuda tha - kuchh na hota to Khuda hota
Duboyaa mujh ko honay nay - na hota main to kya hota

Hua jab gam say yoon be-his to gam kya sar kay katnay ka
Na hotaa gar judaa tan say to zaanu par dharaa hota

Huyi muddat ki 'Ghalib' mar gaya par yaad aata hai
Vo har ik baat par kehnaa ki yoon hota to kya hota
                        'Mirza Asadulaah Khan Ghalib'
                                            Born: December 27, 1797, Agra, India
                                            Died: February 15, 1869, Delhi, India

 बेहिस  = उदासीन       Behis       =     Indifferent, Detached  
  ज़ानू    =   घुटना         Zaanu      =     Knees

Push yourself

Push yourself -
to accomplish what you want

Because no one else is going to do it for you.

Friday, July 16, 2021

शेर और लोमड़ी

जंगल में रहने वाली एक लोमड़ी के पिछले दोनों पैर कटे हुए थे। 

पास ही झोंपड़ी में रहने वाला एक साधू कभी कभी उस लोमड़ी को देखता और हैरान होता कि वो अभी तक कैसे जीवित है ? 
दौड़ना तो क्या - वो तो चल भी नहीं सकती - वो शिकार कैसे करती होगी? उसे भोजन कैसे मिलता होगा ?

एक दिन, उसने लोमड़ी को रेंगते हुए देखा। जो अपने आगे के दो पैरों के सहारे अपने शरीर को खींचते हुए धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी।
ये देखने के लिए कि वो अपना भोजन कैसे और कहां से प्राप्त करेगी, वो साधू भी उसके पीछे पीछे चलने लगा। लेकिन सामने से एक शेर को आते देख कर वो जल्दी से झाड़ियों के पीछे छुप गया। 
शेर के पंजों में एक नया शिकार था। वहीं जमीन पर लेट कर - जितना वो खा सकता था, उसने खाया और बाकी वहीं छोड़ कर चला गया - जिसे खा कर लोमड़ी ने अपना पेट भर लिया।
अगले दिन भी उस ने देखा कि उसी शेर के द्वारा लोमड़ी को फिर से भोजन मिल गया।

वह साधू सोचने लगा: "अगर इस लोमड़ी की इस रहस्यमय तरीके से देखभाल हो रही है - यदि इस के भोजन का प्रबंध उस अदृश्य - उच्च एवं महान शक्ति द्वारा किया जा रहा है जिसे सर्वशक्तिमान ईश्वर कहा जाता है, तो अवश्य ही वह मेरे लिए भी मेरा दैनिक भोजन प्रदान करेगा।

ये सोच कर वह अपनी झोंपड़ी के एक कोने में बैठ गया - और प्रार्थना करते हुए अपने भोजन की प्रतीक्षा करने लगा।
लेकिन कुछ देर बीतने पर भी कुछ नहीं हुआ। भोजन नहीं मिला।
पूरा दिन प्रार्थना करते हुए और भोजन की प्रतीक्षा करते हुए बीत गया।
मगर फिर भी कुछ नहीं हुआ। 
कहीं से भी उसके लिए भोजन नहीं आया । 

लेकिन उसने धैर्य नहीं खोया। 
उसे विश्वास था कि परमेश्वर एक दिन उसकी प्रार्थना ज़रुर सुनेंगे और उसे भोजन प्रदान करेंगे।
दिन बीतते गए - वो दुर्बल होता चला गया। उसका शरीर एक कंकाल सा बनके रह गया।

एक दिन, अर्ध-मूर्छना की सी हालत में उसने एक आवाज सुनी - जो कह रही थी:
"अरे मूर्ख - तुमने देख कर भी सत्य को नहीं देखा - तुम भूल गए और रास्ते से भटक गए - सत्य को देखो और समझने को कोशिश करो !
असहाय विकलांग लोमड़ी की नकल करने की बजाय, तुम्हें उस शेर का अनुसरण करना चाहिए था - जिसने न केवल अपने भोजन के लिए प्रयत्न किया बल्कि दूसरों को - किसी असहाय और विकलांग को भी भोजन प्रदान किया।"

अतीत में, मैं भी ऐसी प्रार्थना करता था, हे प्रभु - कृपा करो कि संसार में कोई भूखा नंगा न रहे - कोई बेघर न हो। 
और प्रार्थना के बाद अपने जीवन में व्यस्त और मग्न हो जाता था।
आज मैं सही मार्गदर्शन और शक्ति के लिए प्रार्थना करता हूं कि अगर हो सके तो मैं किसी के काम आ सकूं - किसी का भला कर सकूं।

पहले मैं सोचता था कि अरदास और प्रार्थना परिस्थितियों को बदल देगी, लेकिन अब समझ आई कि प्रार्थना परिस्थिति नहीं - बल्कि हमारे विचार बदलने में सहायता करती है। हमें वो काम करने और उन परिस्थितियों को बदलने की कोशिश करनी चाहिए जो हम कर सकते हैं। 
और जो हम नहीं कर सकते - जिन परिस्थितियों को बदलना सम्भव न हो - जो हमारी सामर्थ्य से बाहर हों - उन्हें स्वीकार कर लेना ही अरदास और प्रार्थना का असल उद्देश्य है।
                                           ' राजन सचदेव '  

A Tiger and the Fox

A fox who lived in a deep forest had lost its front legs - perhaps escaping from a trap.

A man who lived on the edge of the forest, seeing the fox from time to time, wondered how in the world it managed to get its food. 
One day, he saw the fox not far from him - crawling, dragging herself on her two legs. 
The man decided to watch her, but he had to hide quickly because a tiger was approaching. 
The tiger had a fresh game in its claws. Lying down on the ground, he ate all he could, leaving the rest for the fox. 
Again the next day, the great Provider of this world sent provisions to the fox by the same tiger. 

The man began to think: "If this fox is taken care of in this mysterious way, its food sent by the unseen Higher Power called Almighty God, why don't I just rest and have my daily meal provided for me too?"

He sat in a corner - praying and waiting for his food. 
But nothing happened.
Because he had a lot of faith, he let the day pass, praying and waiting for food.
Still, nothing happened.
But he did not lose his faith, hoping God will provide for him soon.
He just went on losing weight and strength until he was nearly a skeleton. 
One day, close to losing consciousness, he heard a voice which said:
"O you, who have mistaken the way - see now the Truth!

Instead of imitating the disabled fox, you should have followed the example of that tiger - who not only worked for his own food but provided to others too."

In the past, I used to pray, O' God - Please feed the hungry, cover the naked, and provide shelters to the homeless. 
Now I pray for guidance and strength to do what I can do to make any difference. I pray for the courage to do what I am supposed to do.
I used to think that Ardas and prayer will change things and circumstances, but now I know that prayers are supposed to change us - our thoughts - and we should try to change the things we can.
                                           ' Rajan Sachdeva '

Thursday, July 15, 2021

मुझे बेचैन रखती हैं Mujhe bechain rakhti hain

​मुझे बेचैन रखती हैं मेरे दिल की तमन्नाएँ
मेरे अरमान दुश्मन बन के मेरे दिल में रहते हैं ​

مجھے بیچین رکھتی ہیں میرے دل کی تمنایں
میرے ارمان دشمن بن کے میرے دل میں رہتے ہیں

Mujhe bechain rakhti hain mere dil ki Tamannayen
Mere armaan dushman ban ke mere dil me rehtay hain
                                         (Writer unknown)

The constant cravings of my heart keep me restless all the time.
The never-ending desires endure within my heart like an enemy - that invades and seizes all.

Prayer is a Bridge प्रार्थना एवं अरदास एक सेतु हैं

Prayer is a Bridge between Panic and Peace

Praying and Ardas - Dhyaan, and Sumiran in the state of worry or anxiety, works as a bridge to lead our mind towards peace.

चिंता अथवा व्याकुलता की स्थिति में प्रार्थना एवं अरदास  - ध्यान और सुमिरन हमारे मन को शांति की ओर ले जाने के लिए एक सेतु - एक पुल का काम करते हैं।

Wednesday, July 14, 2021

Power of suggestions influences our perception


The boxes don't actually move...
However, the power of suggestions (of the arrows) influence our perception,
 making it feel as though the boxes are moving


 

एक ख़रीदो - एक मुफ्त पाओ

एक ख़रीदो - एक मुफ्त पाओ
बेशक यह एक मार्केटिंग टेक्नीक  - एक नौटंकी है जो कि ग्राहक को लुभाने का एक शानदार तरीका है।
लेकिन ध्यान से देखा जाए तो हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी में भी यह बहुत हद तक सच है।

अगर क्रोध खरीदते हैं अर्थात करते हैं - तो मुफ्त में हाई ब्लड प्रेशर भी साथ आ जाता है
अगर चिंता; टेंशन खरीदते हैं - तो अल्सर मुफ्त में मिल जाते हैं 
खरीदते हैं  ईर्ष्या - और सिरदर्द मिलता है मुफ्त में
खरीदते हैं नफरत - तो अनिद्रा भी मिल जाती है मुफ्त में - वग़ैरा वग़ैरा

इसके विपरीत -
यदि विश्वास खरीदें - तो मित्रता मुफ्त में मिल जाती है
अगर व्यायाम खरीदें, तो स्वास्थ्य मुफ़्त में मिलता है
यदि शांति खरीदें, तो समृद्धि भी साथ मिलती है
अगर निष्पक्षता खरीदें - तो आदर और सत्कार मुफ़्त में मिलेगा
अगर सच्चाई और ईमानदारी खरीदें तो अच्छी नींद मुफ़्त मिल जाएगी
और यदि प्रेम खरीदें - तो अन्य सभी अच्छे गुण भी मुफ्त में मिल जाते हैं

ईश्वर हमें स्वस्थ और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए सही चीजें खरीदने की बुद्धि प्रदान करें!

Buy one - Get one Free

'Buy one - get one free' may be a marketing gimmick. 
But it is true in real life as well.

We buy - (harbor) anger and get acidity for free.  
We buy jealousy and get free headaches. 
We buy stress and get free ulcers. 
We buy hatred and get blood pressure for free - and so on.

Conversely, if we buy trust, we get friendship free. 
If we buy exercise, we get health free. 
If we buy peace, we get prosperity free. 
If we buy fairness, we get free sleep. 
If we buy love, we get all other good virtues for free.

May God bless us with the wisdom to buy the right things for a healthy and purposeful life!
                                           (Writer Unknown)

Tuesday, July 13, 2021

Sehraa mein bikhri Rait ka ek Kan

Sehraa mein bikhri rait ka ek kan
jo umar bhar 
baarish ki ek boond kay liye tarstaa raha 
Dhoop mein taptaa raha 
Aasmaan ki taraf taktaa raha 
iss ummeed mein - ki kabhi to vaqt badlega 
ik roz to aasmaan say paani barsegaa 

Achaanak ek din - 
kaheen door say
kuchh bhoolay bhatkay baadal 
aakar uskay sar pay mandraanay lagay
us kay man ko harshaanay lagay

khushi say naach uthaa vo pyaasa rait ka qatraa 
man mein aashaa kay kuchh deep jag-magaanay lagay
Aankhen chamak utheen - 
honth geet gungunaanay lagay

Usay laga - ki dard-o-gam ke din ab door huye
Thandak paayegi ab barson say jalti huyi chhaati
usay laga - ki zindgi mein ab bahaar aayegi
pyaasi zindagi jalan say raahat paayegi
mehak uthegi fizaa phoolon ki khushbu say har taraf
usay lagaa - ki  zindgi chaman ho jaayegi

Magar ye kya hua?
Kyon hua ?
Kaisay hua ? 
Kya ye us ki kismat thee? 
ya qudrat ka khel tha ? 

ki baarish barasnay kay jab imkaan bananay lagay
Nau-bahaar kay kuchh yoon armaan jagnay lagay
Aankhon mein kuchh naye khwaab sajnay lagay

To hawaa kay ek jhonkay nay udaa kar usay - 
kaheen door - 
dhoop say taptay huye 
rait kay ek doosray teelay pay laa kar patak diya 

jahaan na baadal thay - 
na ummeedon kay phool 
bas thee vahaan siraf dhool hee dhool 

jahaan door door tak har taraf bikhray huye thay
dhoop mein jaltee huyi rait kay qatray hee qatray

Na aankhon mein sapnay - na thandak na raahat 
na dhadkan dilon mein - na nagmon ki chaahat 
seenaa tha jin ka patthar saa ho gaya
unhi sab kay beech kahin vo bhi kho gaya 

Armaan jo uthay thay - vo dil mein hee reh gaye 
jo sapnay sajaaye thay aankhon nay - 
sapnay hee reh gaye 
Aql kee vaadi mein zehan bhatktaa rahaa
aakhir aisa kyon huaa - 
ye sawaal baar baar khatkta rahaa 

kya ye meri kismat thee ? 
ya mehaj ik haadsaa ? 
ya thee meray pichhlay gunaahon kee ye sazaa ? 
ya ye uska shugal tha - maalik ki thi razaa ?

Sunaa hai aakhir to vahi hotaa hai 
jo bhi mukaddar me likhaa hota hai
kisi kay sochnay ya karnay say kya hota hai?

to - jo likhaa tha kismat mein meri - 
vo ho gaya 
ye samjhaa kay dil ko -
aakhir thak kay so gayaa 
Aur vo bechaara rait ka anjaan saa zarra
Rait kay sehraa mein kaheen dab kay kho gayaa 
                                         " Rajan Sachdeva "     
 
Sehraa            - Desert 
Rait                 - Sand
Fiza                -  Atmosphere, surroundings
Imkaan          - Possibility
Naubahaar  -   New Spring
qataray         -  small particles or drops
Mehaj            - Just, Simply 
Zarra            -  Small particle 

सहरा में बिखरी रेत का एक कण

सहरा में बिखरी रेत का एक कण
जो उम्र भर
बारिश की एक बूँद के लिए तरसता रहा
धूप में तपता रहा
आसमां की तरफ़ तकता रहा
इस उम्मीद में - कि कभी तो वक़्त बदलेगा
इक रोज़ तो आसमां से पानी बरसेगा

अचानक एक दिन
कहीं दूर से कुछ भूले भटके बादल
आकर उसके सर पे मंडराने लगे
उसके मन को हरषाने लगे

ख़ुशी से नाच उठा वो प्यासा रेत का क़तरा
मन में आशा के कुछ दीप जगमगाने लगे
आँखें चमक उठीं -
होंठ गीत गुनगुनाने लगे

उसे लगा - कि दर्द ओ ग़म के दिन अब दूर हुए
ठंडक पाएगी अब बरसों से जलती हुई छाती
उसे लगा - कि ज़िंदगी में अब बहार आएगी
प्यासी ज़िंदगी जलन से राहत पाएगी
महक उठेगी फ़िज़ा फूलों की ख़ुश्बू से हर तरफ
उसे लगा - कि ज़िंदगी चमन हो जाएगी

मगर ये क्या हुआ ?
क्यों हुआ - कैसे हुआ ?
क्या ये उसकी किस्मत थी ?
या क़ुदरत का खेल था ?

कि बारिश बरसने के जब इमकान बनने लगे
नौबहार के कुछ यूं अरमान जगने लगे
आँखों में कुछ नए ख़्वाब सजने लगे

तो हवा के इक झोंके ने उड़ा कर उसे -
कहीं दूर -
धूप से तपते हुए
रेत के एक दूसरे टीले पे लाकर पटक दिया

जहाँ न बादल थे - न उम्मीदों के फूल
बस थी वहां सिरफ़ धूल ही धूल
जहाँ दूर दूर तक हर तरफ बिखरे हुए थे
धूप में जलती हुई रेत के क़तरे ही क़तरे

न आँखों में सपने - न ठंडक न राहत
न धड़कन दिलों में - न नग़मों की चाहत
सीना था जिन का पत्थर सा हो गया
उन्हीं सब के बीच कहीं वो भी खो गया

अरमान जो उठे थे -
वो दिल में ही रह गए
जो सपने सजाए थे आँखों ने -
सपने ही रह गए
अक़्ल की वादी में ज़हन भटकता रहा
आख़िर ऐसा क्यों हुआ -
ये सवाल बार बार खटकता रहा

क्या ये मेरी किस्मत थी ?
या महज़ इक हादसा ?
या थी मेरे पिछले गुनाहों की ये सज़ा ?
या ये उसका शुगल था -मालिक की थी रज़ा ?

सुना है आख़िर तो वही होता है
जो भी मुक़द्दर में लिखा होता है
हमारे सोचने या करने से क्या होता है ?

तो - जो लिखा था किस्मत में मेरी -
वो हो गया
ये समझा के दिल को आख़िर
थक के सो गया
और वो बेचारा रेत का अनजान सा ज़र्रा
रेत के सहरा में कहीं दब के खो गया
                                ' राजन सचदेव '


सहरा - रेगिस्तान
फ़िज़ा - वातावरण
इमकान - संभावना
नौबहार - नई बहार
क़तरे - छोटे छोटे टुकड़े - या बूँदें
महज - केवल, सिर्फ
शुगल - Hobby समय बिताने के लिए मनोरंजन का तरीका
ज़र्रा - छोटा सा कण

Monday, July 12, 2021

किससे कतरा के चलूँ ? kis say katraa kay chaloon ?

चार दिन की ज़िन्दगी है  किससे कतरा के चलूँ ?
ख़ाक हूँ मैं, ख़ाक पर क्या, ख़ाक इतरा के चलूँ ?

Char din ki zindagi hai - kis say katraa kay chaloon ?
Khaaq hoon mai, khaaq par kya khaaq itraa kay chaloon ?
                          (Unknown)

Everyone's life is different

Everyone's life is different.
Since everyone has diverse, distinct problems - the solutions would also be different.
The same solution may not work for everyone. 
Everyone does not get the same opportunities as some others do.

Moreover, everyone does not have the same resources - therefore, people have to work their problems according to their capabilities - in their own way. 

We tend to judge people based on what they have accomplished by comparing them with other successful people. 
However, we fail to see that they may not have the desired or required resources that others might have at their disposal.

The perfection of life is not in comparing with others but in testing oneself.
Therefore, while judging people, we must keep in mind their capabilities and the resources available to them. 
It's possible that, given the same resources and power, they might even do better than the people they are being compared with.
                                            ' Rajan Sachdeva '

We always look for others' opinions

"It never ceases to amaze me: 
We all love ourselves more than other people, 
but care more about their opinion than our own." 
                                 ~ Marcus Aurelius ~ (A Roman Emperor)

मुझे हमेशा इस बात पर हैरानी होती है कि:  
हक़ीक़त में हम दूसरों से ज्यादा स्वयं से प्यार करते हैं
लेकिन फिर भी अपनी सोच से ज्यादा उनकी सोच को महत्व देते हैं  
- उनकी राय की ज़्यादा परवाह करते हैं।
                                    ~ मार्कुस औरिलियस ~ (एक रोमन बादशाह) 

Sunday, July 11, 2021

Kisi ko Mukammal jahaan nahin miltaa - with Translation

Some people have asked for the meaning - Translation of the Ghazal I posted a couple of days ago.

1.  Kabhi kisi ko mukammal jahaan nahin miltaa
    Kaheen zameen, kaheen aasmaan nahin miltaa

2. Tamaam shehar mein aisaa nahin khuloos na ho
   Jahaan ummeed ho is kee vahaan nahin miltaa

3. Kahaan chiraag jalaayen kahaan gulaab rakhen
   Chhaten to milti hain lekin makaan nahin miltaa

4. Ye kya azaab hai sab apnay aap mein gum hain
    Zubaan milee hai magar ham-Zubaan nahin miltaa

5. Chiraag jaltay hee beenaayi bujhnay lagtee hai
    Khud apnay ghar mein hi ghar ka nishaan nahin miltaa

                                                 Written by:  Nida Fazali 

Here is the translation as I understand it -

1. No one has a perfect life. No one wins the whole world.
    No one gets everything in life that one desires.
Everyone feels that either one thing or the other - something is missing in their life.

2. It's not that love and sincerity can not be seen anywhere in the city (or in the world).
    However, it's not found where it is expected.

3. Where to light a lamp - where to put roses?
     Roofs are there, but the houses seem to be missing.
     That is - there are houses but not homes.
     There are structures - but no spirit.

4. What a misery it is that everyone is lost in themselves.
     There are tongues, but hard to find that are willing to converse (kindly - affectionately)

5. As soon as the lamp is lit, the vision begins to fade -
    One can't find a mark - a place in one's own home.
    In other words, how unfortunate it is that one can not even live in peace in one's own home.
                               ' Rajan Sachdeva '

Friday, July 9, 2021

In the court of justice

In the court of justice,
Both the parties know the truth
It's the judge who is on Trial
       - Justice J R Midha of Delhi High court -
                on his farewell speech 
                      (From the web) 

मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता Mukammal jahaan nahin miltaa

                        Scroll down for the Roman script

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
कहीं ज़मीन कहीं आसमाँ नहीं मिलता

तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो
जहाँ उमीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता

कहाँ चराग़ जलाएँ  - कहाँ गुलाब रखें
छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता

ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं
जुबां मिली है मगर हम-जुबां नहीं मिलता

चराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है
ख़ुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता
                           " निदा फ़ाज़ली "

ख़ुलूस     =   सच्चाई , निष्कपटता , निश्छलता 
अज़ाब    = दुःख, पीड़ा, कष्ट 
बीनाई    =  देखने की शक्ति 
    
Kabhi kisi ko mukammal jahaan nahin miltaa
Kaheen zameen, kaheen aasmaan nahin miltaa

Tamaam shehar mein aisaa nahin khuloos na ho
Jahaan ummeed ho is kee vahaan nahin miltaa

Kahaan chiraag jalaayen kahaan gulaab rakhen
Chhaten to milti hain lekin makaan nahin miltaa

Ye kya azaab hai sab apnay aap mein gum hain
Zubaan milee hai magar ham-Zubaan nahin miltaa

Chiraag jaltay hee beenaayi bujhnay lagtee hai
Khud apnay ghar mein hi ghar ka nishaan nahin miltaa
                                                              " Nida Fazali "


Khuloos       =   Truth, Sincerity, Honesty
Azaab          =   Pain, Sorrow, pang, grief
Beenaayi   =   Ability to see 

Wednesday, July 7, 2021

Keep moving and learning

The flowing water does not become stagnant - it stays clean and fresh.
The moving parts of a machine do not get rusted.
Anything that stops moving starts to degenerate and decay.
An instrument or a gadget that has not been used for a long time - becomes useless.
A vehicle that has been stationed - not driven for years - would not start at first try.

The same applies to the human body and mind as well.
The body that tends to move keeps moving.
The body parts that are not being used much - begin to slow down and eventually stop functioning.
Similarly, the mind that tends to welcome and nurture new ideas - and continually keeps on exploring new domains - always stays sharp and active.

All things, including body, mind, and spirit, have one thing in common. If they are not used, they cease to operate.
Once they stop functioning, they begin to shrink and deteriorate.

Sometimes, we tend to think that we have accomplished everything we wanted to have - that we have learned everything we wanted to know. Therefore, we don't need to practice anything - or try to learn new things anymore.
However, regardless of age and how much we have already accomplished, we must keep exercising our body and mind. Constant practice and usage of the muscles, knowledge, and talents is the only way to preserve them.
Because if we don't, then we may quickly lose what we have.

To keep the body fit and in good shape, we need to stimulate and strengthen the muscles - they need to be trained against some resistance. The idea behind the nautilus gym machines and lifting weights is to provide resistance while exercising.
Just as muscles do not strengthen without resistance, mental abilities do not get sharpened without critical and evaluative thinking.
Similarly, the spirit does not rise without something to stir and attract it.

Therefore, we should never stop learning new things and ideas. 
If we do, we will only invite decline.
We should always look for new stimulants for the brain-mind and spirit to keep them active, expanding, and growing.
                                                ' Rajan Sachdeva '

Tuesday, July 6, 2021

If the path is beautiful अगर रास्ता सुन्दर है

If you see a beautiful path,
don't simply start roaming on it.
First, confirm where it leads.

But if the destination is beautiful, 
then don't worry about how the path is.
It's the destination that is important - not the path.

अगर कोई सुन्दर और समतल रास्ता दिखाई दे 
तो उस पर क़दम रखने और चलने से पहले 
पता करें कि वो रास्ता कहाँ जाता है 

लेकिन अगर मंज़िल ख़ूबसूरत है 
तो इस बात की चिंता मत करो कि रास्ता कैसा है
क्योंकि मंज़िल महत्वपूर्ण है - रास्ता नहीं।

बहुत मसरुफ़ रहना भी ख़ुदा की एक नेमत है (Hindi & Urdu Scripts)

बहुत मसरुफ़ रहना भी 
ख़ुदा की एक नेमत है 

हुजूमे -दोस्तां होना 
किसी संगत का मिल जाना 
कभी महफ़िल में हंस लेना 
कभी ख़ल्वत में रो लेना 
कभी तन्हाई मिलने पर 
ख़ुद अपना जायज़ा लेना 
कभी दुखते किसी दिल पर 
तशफ्फ़ी का मरहम रखना 
किसी आंसू को चुन पाना 
किसी का हाल ले लेना 
किसी का राज़ मिलने पर 
लबों को अपने सी लेना 
किसी बच्चे को छू लेना 
किसी बूढ़े को सुन लेना 
किसी के काम आ सकना 
किसी को भी दुआ देना 
किसी को घर बुला लेना 
किसी के पास ख़ुद जाना 
निगाहों में नमी आना 
बिला कोशिश हंसी आना 
तिलावत का मज़ा आना 
कोई आयत समझ पाना 
कभी सजदे में सो जाना
किसी जन्नत में खो जाना 
और दिल से शुकर कर देना 
ख़ुदा की एक नेमत है 
                     (अज्ञात )

मसरुफ़     =         व्यस्त Busy 
नेमत         =        कृपा - भेंट Blessing, Gift 
हुजूमे -दोस्तां  =  दोस्तों की भीड़ Crowd of friends 
ख़ल्वत            = एकांत  Solitude 
तशफ्फ़ी         = सांत्वना Consolation 
तिलावत         = धर्म ग्रन्थ पढ़ना To read holy books
आयत =      सूत्र, सिद्धांत,नियम - कुरआन के वाक्य, Verse from Quran,  phrase, dictum, Maxim, Expression 
सजदे में         =  दंडवत प्रणाम - in Prostration 

بہت مصروف رہنا بھی
خدا کی ایک نعمت ھے۔

ھجومِ دوستاں ھونا 
کسی سنگت کا مِل جانا 
کبھی محفل میں ہنس لینا  
کبھی خِلوت میں رو لینا 
کبھی تنہائی ملنے پر
خود اپنا جائزہ لینا 
کبھی دُکھتے کسی دل پر 
تشفّی کا مرہم رکھنا  
کسی آنسو کو چُن پانا 
کسی کا حال لے لینا 
کسی کا راز ملنے پر 
لبوں کو اپنے سِی لینا 
کسی بچے کو چھُو لینا 
کسی بُوڑھے کی سُن لینا 
کسی کے کام آ سکنا 
کسی کو بھی دُعا دینا 
کسی کو گھر بلا لینا 
کسی کے پاس خود جانا 
نگاھوں میں نمی آ نا 
بِلا کوشش ہنسی آ نا 
تلاوت کا مزہ آ نا 
کوئی آیت سمجھ پانا 
کبھی سجدے میں سو جانا 
کسی جنت میں کھو جانا 

دل سے شکر کہ دینا 
خدا کی ایک نعمت ہے
        Writer Unknown

Bahut masroof rehnaa bhi Khuda ki ek nemat hai (Roman Script with English Translation)

Bahut masroof rehnaa bhi 
Khuda ki ek nemat hai 

Hujum-e-dostaan hona 
kisi sangat ka mil jaana 
kabhi mehfil mein hans lena 
kabhi khalwat mein ro lena 
kabhi tanhaayi milnay par 
Khud apnaa jaayazaa lena 
kabhi dukhtay kisi dil par 
Tashaffee ka marham rakhnaa 
kisi aansu ko chun paana 
kisi ka haal lay lena 
kisi ka raaz milnay par 
labon ko apnay see lena 
Kisi bachay ko chhoo lena 
kisi boodhay ko sun lena 
kisi kay kaam aa saknaa 
kisi ko bhee duaa dena 
kisi ko ghar bulaa lena 
kisi kay paas khud jaana 
Nigaahon mein namee aana 
bilaa koshish hansi aana 
Tilaawat ka mazaa aana 
koyi aayat samajh paana 
kabhi sajday mein so jaana 
kisi jannat mein kho jaana 
aur dil say shukar kar dena 
Khuda ki ek nemat hai 
                 (Writer unknown)

Masroof = Busy 
Nemat = Blessing, gift 
Hujum-e -dostaan =  crowd of friends 
Khalwat = Alone, Solitude
Tashaffee = Consolation 
Tilaawat =  to read holy books 
Aayat =  verse from Quran, phrase, dictum, maxim, expression 
Sajaday mein = in prostration

-------------------------------------------
                           
To be very busy too,
It's a blessing from God.

To be in a crowd of friends,
Having found some good company
Sometimes laughing in a gathering,
Sometimes crying in isolation,
Sometimes in the solitary moments
Taking your own review
Sometimes seeing a hurting heart
offering the ointment of consolation, 
To wipe a tear,
To inquire well-being of someone
Having known someone's secret,
Sealing your lips tight.
To touch a child,
To listen to an old man,
To be beneficial to someone,
To Pray for everyone,
To invite someone to your home,
To go to someone's place,
Having mist in your eyes,
Laughing without trying (reason)
Finding joy in reading sacred books,
To be able to understand a verse,
To go to sleep in prostration,
To get lost in a heaven of happiness
To be thankful -
It's a blessing of God
                              English Translation by: 
                             ' Rajan Sachdeva '

What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...