तेरा वजूद रिवाज़ों के ऐतक़ाफ़ में है
मेरा वजूद उसके ऐन-शीन-क़ाफ़ में है
(लेखक - अज्ञात)
इस शेर में बहुत गहराई है -
इस शेर में बहुत गहराई है -
एक उल्लेखनीय एवं आश्चर्यजनक गहरा अर्थ छिपा है इस शेर में - जो पढ़ने और सुनने वाले को सोचने पर मजबूर करता है।
शायर कहता है:
तुम्हारे प्रेम की बुनियाद रिवाज़ों - प्रथाओं एवं परंपराओं पर आधारित है - दूसरों के बनाए हुए नियमों से बंधी हुई है।
शायर कहता है:
तुम्हारे प्रेम की बुनियाद रिवाज़ों - प्रथाओं एवं परंपराओं पर आधारित है - दूसरों के बनाए हुए नियमों से बंधी हुई है।
लेकिन मेरा वजूद - सिर्फ उसके ऐन, शीन और क़ाफ़ में है।
ऐन, शीन और क़ाफ़ अरबी लिपि के अक्षर हैं - जो फ़ारसी और उर्दू लिपियों में भी इस्तेमाल किए जाते हैं।
इस दूसरी पंक्ति में - शायर ने बहुत ही सुंदर एवं कलात्मक ढंग से ऐन-शीन-क़ाफ़ का इस्तेमाल किया है - जिसके लिए श्रोता उसे दाद दिए बिना नहीं रह सकता।
यदि हम इन तीन अक्षरों को हिंदी अथवा देवनागरी लिपि में लिखें, तो यह होंगे -
इ - श - और क़
इन तीनों अक्षरों को एक साथ एक क्रम में लिखने से जो शब्द बनता है वो है - इश्क अर्थात प्रेम।
दूसरे शब्दों में कवि कहता है कि -
मेरे वजूद का आधार - मेरी भक्ति, मेरी बंदगी, मेरी इबादत तो बस उसका इश्क़ है और इसके सिवा कुछ नहीं।
संसार में अधिकाँश लोग अपने अपने धर्म और धार्मिक नेताओं द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार भक्ति अथवा बंदगी करते हैं।
दूसरे शब्दों में कवि कहता है कि -
मेरे वजूद का आधार - मेरी भक्ति, मेरी बंदगी, मेरी इबादत तो बस उसका इश्क़ है और इसके सिवा कुछ नहीं।
संसार में अधिकाँश लोग अपने अपने धर्म और धार्मिक नेताओं द्वारा बनाए गए नियमों के अनुसार भक्ति अथवा बंदगी करते हैं।
ईश्वर के प्रति उनकी पूजा - भक्ति और इबादत दूसरों द्वारा बनाए गए कर्मकांडों और नियमों पर आधारित होती है - कुछ विशिष्ट रीति-रिवाज़ और परम्पराओं को मानना होता है - उन रीति-रिवाजों, नियमों, और अनुशासनों का पूरी तरह से और सख्ती से पालन करना होता है।
लेकिन ईश्वर के प्रेम में डूबा हुआ मन ईश्वर के सिवाए और कुछ नहीं देखता।
शुद्ध प्रेम में नियमों, अनुशासनों अथवा रीति-रिवाजों और परम्पराओं का कोई बंधन नहीं होता।
विशुद्ध प्रेम में डूबी हुई मीरा सब कुछ भूल गईं।
वह अपनी कुल-मर्यादा - अपनी शख़्सियत एवं श्रेष्ठता - अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि और सामाजिक परम्पराएं -- सब भूल गईं और गलियों में नृत्य करते हुए गाने लगीं :
पग घुंघरु बाँध मीरा नाची रे
संत कबीर जी महाराज भी ऐसा ही कहते हैं:
जहां प्रेम तहां नेम नहीं - तहां न बुद्धि ब्योहार
प्रेम मगन जब मन भया तो कौन गिने तिथि वार
अर्थात - जहां प्रेम है, वहां कोई नियम नहीं हैं - वहां न शरतें हैं, न कोई अनुशासन है।
संत कबीर जी महाराज भी ऐसा ही कहते हैं:
जहां प्रेम तहां नेम नहीं - तहां न बुद्धि ब्योहार
प्रेम मगन जब मन भया तो कौन गिने तिथि वार
अर्थात - जहां प्रेम है, वहां कोई नियम नहीं हैं - वहां न शरतें हैं, न कोई अनुशासन है।
और न ही वहां बुद्धि और अक़्ल का कोई दख़ल है।
जब मन प्रेम में डूबा हुआ हो तो समय कौन देखेगा ?
कौन दिन और वार गिनेगा, और विशेष आयोजनों और उत्सवों की प्रतीक्षा करेगा?
प्रेमा-भक्ति विशुद्ध प्रेम की भक्ति है - जहां केवल प्रेम के सिवाए और कुछ भी नहीं।
' राजन सचदेव '
प्रेमा-भक्ति विशुद्ध प्रेम की भक्ति है - जहां केवल प्रेम के सिवाए और कुछ भी नहीं।
' राजन सचदेव '
Prema bhagti ke avasta ko prapt krna bahut mushkil hai,aise sant bahut mushkil se sampark mein aate hai jaise ke aap ji��
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