दिल है कि फिर भी गिला करता रहा
बिरवा मेरे आँगन का मुरझा गया
सहरा में इक फूल मगर खिलता रहा
बातिन-ओ-ज़ाहिर न यकसाँ हो सके
कशमकश का सिलसिला चलता रहा
औरों को देते रहे नसीहतें
आशियां अपना मगर जलता रहा
माज़ी का रहता नहीं उसको मलाल
वक़्त के सांचे में जो ढ़लता रहा
पा सका न वो कभी 'राजन ' सकूँ
जो हसद की आग में जलता रहा
' राजन सचदेव '
बिरवा पेड़ Tree
सहरा रेगिस्तान, Desert
बातिन-ओ-ज़ाहिर अंदर-बाहर Inside & outside - Hidden & Visible - Thoughts & Actions
यकसाँ एक जैसा Same, similar, as one
माज़ी भूतकाल Past
मलाल अफ़सोस Regret
हसद ईर्ष्या, Jealousy
Bahut khoob
ReplyDeleteVery meaningful shayari... Thanks Rajan jee for sharing with us
ReplyDeleteVery meaningful shayari... Thanks Rajan jee for sharing with us
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