Sunday, October 11, 2020

नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं - प्रभुता पाय जाहि मद नाहीं

 कल के ब्लॉग पर किसी सज्जन ने एक टिप्पणी भेजी है :

"अहंकार के लिए पंजाबी शब्द है आकड़ ।
इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है। इस बीमारी के साथ समस्या यह है कि हम हमेशा ये सोचते हैं कि हम सही हैं और दुसरे लोग ग़लत हैं। 
इस बीमारी का कोई इलाज नहीं हो सकता क्योंकि हमारा मानना है कि हमारे अंदर कोई अभिमान नहीं है। 
यदि आपको ये लगता है कि आपके पास यह बीमारी हो ही नहीं तो आप इस का इलाज कैसे कर सकते हैं?
यह स्थिति निरंकार जैसी है, जो हमेशा थी - अब भी है और हमेशा रहेगी।"
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यहां दो बातें विचार के योग्य हैं 
एक तो यह कि अहंकार हर व्यक्ति में मौजूद होता है।
इस दुनिया में ऐसा कोई भी नहीं है - जिसे अहंकार न हो - ख़ासकर जिन के पास धन और शक्ति है।
जैसा कि संत तुलसी दास ने कहा है :
                            नहिं कोउ अस जनमा जग माहीं
                              प्रभुता पाय जाहि मद नाहीं
                                                           (राम चरित मानस - बाल कांड)
संसार में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे प्रभुता - अर्थात शक्ति, प्रसिद्धि और अधिकार प्राप्त करने के बाद अहंकार न हो।
वास्तव में, जितनी अधिक प्रसिद्धि - जितनी बड़ी शक्ति और अधिकार हो - अहंकार भी उतना ही बड़ा होता है। 
 
और दूसरी बात यह कि - बेशक़ अहंकार मानव स्वभाव का एक हिस्सा है - लेकिन इसे नियंत्रित किया जा सकता है। 
हम इसे कंट्रोल करने की कोशिश कर सकते हैं। 
ईमानदारी से अपने आप की वास्तविकता का निरीक्षण करके हम अपने मन में अहंकार की भावना को कम कर सकते हैं।
लेकिन अहम की भावना को नियंत्रित करने में सक्षम होने के लिए पहली शर्त यह है कि हम अपने अहम को पहचानें और स्वीकार करें कि हमारे अंदर भी अहंकार है। 
अगर हम यही सोचते और कहते रहें कि हमारे मन में तो कोई अहंकार है ही नहीं तो इसका इलाज़ कैसे हो सकता है ? फिर तो इस समस्या का कोई समाधान मिल ही नहीं सकता।

और कभी-कभी अहंकार इतना सूक्ष्म होता है कि हमें पता ही नहीं चलता कि हमारे मन में अहंकार है।
यह विनम्रता के रुप में प्रच्छन्न - छुपा हुआ भी हो सकता है।
                      हउ विचि मूरखु हउ विचि सिआना 
                      मोख मुक्ति की सार न जाणा 
                                                     (गुरबानी पेज 466)
मूर्ख और विद्वान  - अज्ञानी और ज्ञानी - दोनों में अहंकार हो सकता है 
केवल ज्ञान से ही अभिमान पैदा नहीं होता -  केवल ज्ञान या विद्वता से ही लोग आत्म-केंद्रित और अभिमानी नहीं हो जाते - बल्कि बहुत से लोगों को तो अपनी विनम्रता पर भी गर्व होता है। उन्हें अपने विनम्र होने का गर्व ही नहीं बल्कि बहुत अभिमान भी होता है। 
कुछ समय पहले मैं एक बहुत विद्वान - अति सम्मानित और बहुत ही प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय सज्जन के सम्पर्क में रहा जो अक्सर ये कहा करते थे कि "आपको अपने जीवन में कभी कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिलेगा जो मेरे जैसा विनम्र हो। जिस में मेरे जितनी नम्रता हो।"  
ज़ाहिर है कि उन्हें विनम्र होने का गर्व था - अपनी विनम्रता का अभिमान था।  

और कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो विनम्र होने का सिर्फ दिखावा करते हैं। मन में तो अभिमान होता है लेकिन वे जो चाहते हैं उसे प्राप्त करने के लिए सबके सामने विनम्र बन जाते हैं। 
जैसा कि गुरु नानक ने कहा है:
                                 अपराधी दूना निवै जो हंता मिरगाहि 
                                 सीसि निवाऐ क्या थीए जा रिदै कुसुधे जाहि 
                                                                    (गुरबानी पेज 470)
अर्थात अपराधी व्यक्ति दोगुना झुक जाता है। 
लेकिन उसका झुकना ऐसा ही होता है जैसे कि हिरण का शिकारी - शेर, बाघ, चीता इत्यादि अपने शिकार पर हमला करने से पहले झुकता है।
गुरु साहिब कहते हैं कि यदि दिल अशुद्ध हो तो केवल सिर झुकाने से क्या हासिल हो सकता है? 

इसलिए, सबसे पहले तो अपने मन की अवस्था को ईमानदारी से परखें - समझें और पहचानें।  
क्योंकि अहंकार की उपस्थिति को पहचानना इतना आसान नहीं है - ख़ासकर सूक्ष्म अहंकार को पहचानना तो बहुत ही कठिन है।
सूक्ष्म अहंकार कई रुपों में मौजूद हो सकता है।
एक व्यक्ति जो सभी के सामने बार बार अपना सिर झुकाता रहता है और विनम्र और सम्मानजनक भाषा का उपयोग करता है - तो यह ज़रुरी नहीं कि वह दिल से भी विनम्र हो।

लेकिन इस मापदंड का उपयोग हम दूसरों पर न करें। 
दूसरों का नहीं - अपना निरीक्षण करें। 
ईमानदारी से अपने मन में खोजें कि कहीं हमारे अंदर सूक्ष्म रुप से कोई अभिमान छुपा हुआ तो नहीं है?
अगर है तो उसे दूर करने का कोई मार्ग ढूँडें। 
किसी भी समस्या को पहचानना और स्वीकार करना - समाधान खोजने के लिए पहला कदम है। 
                                                             ' राजन सचदेव ' 

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