Sunday, October 25, 2020

विजय-दशमी

 विजय-दशमी पर ..... हर साल हर शहर में बड़े उत्साह और ख़ुशी के साथ रावण के पुतले को जलाया जाता है।

रावण जितना ऊंचा और भव्य होगा - 

और पटाखों का शोर जितना ज़्यादा होगा  - दर्शकों को उतना ही ज़्यादा आनंद मिलेगा

लेकिन भीड़ से घिरा, जलता हुआ रावण पूछता है:

 …  सिर्फ एक प्रश्न: -

तुम सब - जो आज मुझे जला रहे हो ……।

.....  आप में से राम कौन है ?

मेरे मन में अचानक एक विचार आया 

इससे पहले कि हम रावण को जलाएं  ...... हम स्वयं इसे बनाते हैं

और फिर इसे सभी के सामने खड़ा करके बड़े उत्साह और जुनून के साथ उसे जलाने का नाटक करते हैं ।

अगले साल फिर, हम एक नया रावण बनाते हैं और फिर उसे जलाते हैं।

                           साल दर साल - वर्षों से यह सिलसिला जारी है।

अगर हम अपने मन में बार-बार एक नया रावण बनाना बंद कर दें…

तो फिर इसे बार-बार जलाने की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी।

रावण एक प्रतीकात्मक चिन्ह है, जो धन, शक्ति, सौंदर्य, ज्ञान इत्यादि के अहंकार और मानव जाति के कई अन्य नकारात्मक अवगुणों का प्रतिनिधित्व करता है।

आइए इस विजय दशमी पर एक संकल्प करें - 

कि इस बार हम अपने अंदर के रावण को मारकर हमेशा के लिए जला देंगे

और अब हम किसी भी नए रावण को अपने मन में फिर से पैदा नहीं होने देंगे।

                                                              ' राजन सचदेव '




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सुख मांगने से नहीं मिलता Happiness doesn't come by asking

सुख तो सुबह की तरह होता है  मांगने से नहीं --  जागने पर मिलता है     ~~~~~~~~~~~~~~~ Happiness is like the morning  It comes by awakening --...