देव, दानव और मनव।
एक पुराणिक कथा है कि एक बार तीनों समुदायों - देवों, दानवों, और मानवों ने अपने अपने प्रतिनिधियों को कुछ मार्गदर्शन लेने के लिए प्रजापिता ब्रह्मा के पास भेजा।
जब वे वहाँ पहुँचे, तो प्रजापिता कहीं जाने वाले थे।
प्रतिनिधियों ने सम्मान से प्रजापिता ब्रह्मा को प्रणाम किया और उनसे अनुरोध किया कि वे उन्हें कुछ उपदेश दें - उनके समुदायों के लिए कुछ निर्देश दें ताकि वे अपने जीवन को बेहतर बनाने में सक्षम हो सकें।
प्रजापिता ने उन्हें देखा और केवल एक शब्द कहा - ' द ।
प्रजापिता ने उन्हें देखा और केवल एक शब्द कहा - ' द ।
सब उलझन में पड़ गए - किसी को भी इसका मतलब समझ नहीं आया।
लेकिन प्रजापिता इतना कहते ही वहां से जा चुके थे।
तीनों प्रतिनिधि निराश हो कर अपने अपने स्थान पर वापस लौट गए।
जब उनके समुदायों के लोगों ने उनसे पूछा कि ब्रह्मा जी ने उन्हें क्या उपदेश - निर्देश दिए हैं ?
तो उन्होंने उत्तर दिया कि प्रजापिता ने केवल ' द कहा था - और कुछ भी नहीं ।
समुदाय के बड़े बुज़ुर्गों और नेताओं ने सोचा कि इस शब्द के पीछे ज़रुर ही कोई छिपा हुआ अर्थ होगा अन्यथा प्रजापिता ऐसा न कहते।
विद्वानों को बुलाया गया और उनसे इस शब्द का अर्थ खोजने के लिए कहा गया।
देवों या देवताओं ने सोचा कि वे हमेशा विलासिता और सुख में लिप्त रहते हैं - इसलिए प्रजापिता के 'द का अर्थ होगा - दमन।
अत्यधिक सुखों और वासनाओं का दमन। अवश्य ही ब्रह्मा जी ने हमें इच्छाओं एवं वासनाओं को नियंत्रित करने के लिए होगा।
दानवों ने सोचा - हम बहुत क्रूर और दुष्ट हैं।
हम अक़्सर लोगों पर ज़ुल्म करते हैं - उन्हें तंग करते हैं - पीड़ा देते हैं ।
प्रजापिता ने 'द कह कर हमें दया करने का उपदेश दिया है।
उधर, मानवों ने सोचा कि वे अत्यधिक स्वार्थी हैं - हमेशा धन संचय में लगे रहते हैं - जोड़ने और इकठ्ठा करने में ही लगे रहते हैं।
प्रजापिता ने हमें स्वार्थ से ऊपर उठ कर 'द - अर्थात दान करने के लिए कहा है। दूसरों की मदद करने के लिए कहा है।
~~~~~~~~~~~
इस कहानी में विभिन्न पृष्ठभूमि के विद्वानों ने एक ही अक्षर 'द से - दमन, दया, और दान - तीन अलग अलग शब्द चुने।
इस कहानी में विभिन्न पृष्ठभूमि के विद्वानों ने एक ही अक्षर 'द से - दमन, दया, और दान - तीन अलग अलग शब्द चुने।
एक ही शब्द का अर्थ - सब ने अपनी अपनी समझ, धारणा और पृष्ठभूमि के अनुसार किया।
इसी तरह, जब हम गुरुओं, संतों, और बुज़ुर्गों से कुछ सुनते हैं, तो हम अपनी समझ और पृष्ठभूमि के अनुसार अपने अपने मतलब निकालने लगते हैं।
इसी तरह, जब हम गुरुओं, संतों, और बुज़ुर्गों से कुछ सुनते हैं, तो हम अपनी समझ और पृष्ठभूमि के अनुसार अपने अपने मतलब निकालने लगते हैं।
प्रत्येक व्यक्ति की परिस्थितियां अलग हो सकती हैं।
हो सकता है वे जीवन के विभिन्न चरणों - Phases अथवा अवस्थाओं से गुजर रहे हों।
वैसे भी बच्चों, नौजवानों और बुज़ुर्गों के सोचने का ढंग अलग होता है।
इसलिए, यह तर्क देने के बजाय कि कौन सा अर्थ सही या गलत है - हमें वह अपनाना चाहिए जो व्यक्तिगत रुप से हमें आगे बढ़ने और अपने जीवन को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।
' राजन सचदेव '
Dhan Nirankar.
ReplyDeleteJaki rahi Bhavna Jaisi
Prabhu ke vachanki samajh bhi vaisi.
Forgive me I changed the second line.
The original is Prabhu Moorat Dekhi tin taisi