Friday, January 29, 2021

ज्ञान का दीपक उठा के हाथ में

तू ही उदगम है मेरी हर सोच का     
हर पल मगर मैं सोचता कुछ और हूँ

तुम से ही तो रौशन हैं आँखें मेरी
आँखों से पर देखता कुछ और हूँ
तुम ने दी थी सच -गोई के वास्ते
पर ज़ुबां से बोलता कुछ और हूँ

सृष्टि के कण कण में तेरा वास है
फिर भी तुझ को देख नहीं पाता हूँ मैं
हर नाद में छुपा अनाहत नाद है
लेकिन उसको सुन नहीं पाता हूँ मैं

तू छुपा है मेरे ही अंदर मगर
तुझको बाहर ढूंडता रहता हूँ मैं
किस तरह बरसेगी इनायत तेरी
लोगों से ये पूछता रहता हूँ मैं

सत्य का सूरज उजागर है मगर
फिर भी अँधेरे का ख़ौफ़ रहता है
सामने ही है मेरी मंज़िल मगर
फिर भी भटकने का ख़ौफ़ रहता है

ज्ञान का दीपक उठा के हाथ में
रौशनी लोगों से मांगते हैं हम
मालूम है ये दुनिया फ़ानी है 
'राजन 
फिर भी सुख दुनिया के मांगते हैं हम
                         ' राजन सचदेव '


उदगम         =   स्तोत्र   Source
सच -गोई    =    सच बोलने के लिए  For Speaking Truth
अनाहत नाद  =  अनहद नाद 

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