Sunday, October 8, 2017

पंद्रह सैनिक और चाय की दुकान

              " जम्मू और काश्मीर के कूपवाड़ा क्षेत्र के एक सैनिक द्वारा सुनाई गयी एक सच्ची कहानी "

एक मेजर के नेतृत्व में पंद्रह सैनिकों का एक समूह हिमालय में अपनी निर्धारित पोस्ट पर ड्यूटी देने के लिए जा रहा था , जहां उन्हें अगले तीन  महीनों के लिए रहना था ।
एक तो वैसे ही बहुत सर्दी थी और फिर ऊपर से गिरती हुई बर्फ के कारण हिमालय की दुर्गम चढ़ाई और भी मुश्किल हो गई थी।
"काश ! इस समय कहीं गर्म गर्म चाय मिल जाती"  मेजर ने सैनिकों से कहा, हालाँकि उसे मालूम था कि बर्फ से ढंके उन सुनसान पहाड़ी रास्तों में यह इच्छा व्यर्थ थी।
उन्होंने अपनी यात्रा जारी रखी। क़रीब एक घंटे के बाद उन्हें कुछ दूरी पर सड़क के किनारे लकड़ी की बनी हुई एक छोटी सी चाय की दुकान दिखाई दी। लेकिन जल्द ही उनकी खुशी निराशा में बदल गई जब उन्हों ने देखा कि दुकान बंद थी और उस पर ताला लगा हुआ था ।
"आज दुर्भाग्य से यहां भी चाय नहीं मिल सकेगी " मेजर ने कहा। 
शाम हो चुकी थी और वे सब थके हुए थे। इसलिए उन्होंने सिपाहियों से कहा कि वह सफ़र जारी रखने से पहले कुछ देर आराम कर लें  - क्योंकि वे पिछले कई घंटों से चल रहे थे।
"सर, यह चाय की दुकान है और यहां हम खुद ही चाय बना सकते हैं ... लेकिन हमें ताला तोड़ना होगा" एक सैनिक ने सुझाव दिया
मेजर इस अनैतिक सुझाव को स्वीकार करने में संकोच कर रहा था, लेकिन थके हुए सिपाहियों को इस सर्दी में गर्म चाय से कितनी राहत मिलेगी - ऐसा सोच कर उसने दुकान का ताला तोड़ने की अनुमति दे दी ।
भाग्यवश, दुकान के अंदर जहाँ चाय बनाने के लिए सब आवश्यक सामान मौजूद था, वहीं एक शेल्फ पर बिस्कुट के बहुत से पैकेट भी रखे हुए थे।
गर्म चाय और बिस्कुट मिलने से सैनिकों में नई स्फूर्ति का संचार हुआ और जल्दी ही सब बाकी यात्रा के लिए तैयार हो गए ।
मेजर साहिब के मन में विचार आया .. 'हम अनुशासित सैनिक हैं - कोई चोरों का ग्रुप नहीं। हमने इस दुकान का ताला तोड़ा और मालिक की ग़ैर हाज़री में - उसकी अनुमति के बिना चाय पी और बिस्कुट खाए।
ऐसा सोच कर - चाय और बिस्कुट के लिए भुगतान करने और लॉक की मरम्मत करवाने की लागत का विचार करते हुए - मेजर साहिब ने अपनी जेब से दो हजार रूपये निकाले, और काउंटर पर एक बर्तन के नीचे इस तरह से दबा कर रख दिए कि जब मालिक आये तो उन्हें देख सके। ऐसा करके उनके मन को उस ग्लानि से कुछ हद तक राहत मिली जिसे वो अनैतिक एवं गैर कानूनी ढंग से दुकान में प्रवेश करने के कारण अनुभव कर रहे थे। 
जब सैनिकों ने बर्तन इत्यादि साफ करके इस्तेमॉल की गई हर चीज़ को ठीक ढंग से यथा स्थान रख दिया तो मेजर साहिब ने दुकान बंद करने के लिए शटर नीचे खींचा और सैनिकों को आगे बढ़ने का आदेश दिया।

तीन महीने बीत गए। 
वह भाग्यशाली थे कि उन पर हुए कई हमलों के बावजूद भी सभी सदस्य जीवित और सुरक्षित थे। 
और अब, उनकी जगह लेने के लिए दूसरी टीम वहां पहुँच चुकी थी। 
वापिस जाते हुए मेजर साहिब ने रास्ते में उसी चाय की दुकान पर दुबारा रुकने का आदेश दिया। इस बार दुकान खुली थी और मालिक भी दुकान में मौजूद था। बड़ी उमर का ग़रीब और कमजोर सा दिखने वाला मालिक पंद्रह ग्राहकों को एकसाथ देख कर बहुत प्रसन्न हुआ और हाथ जोड़ कर नमस्कार करते हुए उन्हें बैठने का आग्रह किया। फिर जल्दी से स्टोव पर चाय के लिए पानी रखा और कुछ प्लेटों में बिस्कुट रख कर धीरे धीरे बड़े प्रेम से सबके सामने रखने लगा।  
उस बूढ़े आदमी की स्फूर्ति और आँखों में झलकते हुए प्रेम को देख कर सभी आश्चर्य चकित हो रहे थे। 
चाय की चुस्कियों के दौरान, मेजर साहिब ने उस बूढ़े व्यक्ति से अपने जीवन के कुछ अनुभव सुनाने के लिए कहा - और पूछा कि इस सुनसान जगह पर छोटे से गाँव में इस छोटी सी दुकान पर चाय की बिक्री से क्या वह अपने परिवार के लिए पर्याप्त पैसा कमाने में 
सक्षम था?
बहुत नरम लेकिन दृढ़ और विश्वासपूर्ण स्वर में उसने जवाब दिया :
"भगवान बहुत विशाल - और बहुत ही दयालु है। उन्होंने हमेशा मेरी और मेरे परिवार की देखभाल की है" 
उसकी आवाज में परमेश्वर पर दृढ़ विश्वास और आस्था साफ झलकती थी। 
"अरे बाबा, अगर भगवान बहुत दयालु है, तो उस ने आपको ऐसी गरीबी की हालत में क्यों रखा हुआ है ?" 
 एक सिपाही ने व्यंग्य करते हुए पूछा ।
बूढ़े आदमी ने उसे प्रेम से देखते हुए कहा :
"साहिब! मैं आपको एक हाल ही की घटना सुनाता हूं कि भगवान ने हमारी देखभाल कैसे की। 
 अभी तीन महीने पहले, मैं एक बहुत कठिन दौर से गुजर रहा था। मेरे एकमात्र बेटे को आतंकवादियों ने बुरी तरह से मार पीट कर गंभीर रूप से घायल कर दिया था। उसकी हालत नाज़ुक थी और उसे अस्पताल ले जाया जाना बहुत ज़रूरी था।  लेकिन मेरे पास कुछ भी नहीं था। एक तो अस्पताल और दवाओं के लिए पैसों की ज़रूरत थी - और ऊपर से मुझे उसकी देखभाल करने के लिए अपनी दुकान भी बंद करनी पड़ी। "
आँखों में आभार के छलकते हुए आँसुओं के साथ - भरे हुए गले से बूढ़े आदमी ने कहा:
"उस शाम, मैंने मदद के लिए भगवान से प्रार्थना की ... और भगवान स्वयं उस रात मेरी दुकान में चले आये थे "
आँख में आए आंसू पोंछते हुए उसने अपनी बात को जारी रखा :
"दुकान में रखे हुए पिछले कुछ दिनों की बिक्री के पैसे निकालने  के लिए जब मैं सुबह दुकान खोलने लगा तो मैंने देखा कि ताला टूटा हुआ था । ये देख कर मुझे दुःख हुआ और ग़ुस्सा भी आया - मैंने सोचा कि अन्य चीजों के साथ, दुकान में जो पैसा रखा था, वो भी चोरी हो गया होगा। अब मैं बेटे का इलाज कैसे करवाऊंगा ?
लेकिन जब मैं अंदर गया तो मैंने देखा कि भगवान  काउंटर पर चीनी के बर्तन के नीचे मेरे लिए दो हजार रुपये रख गए थे । 
साहिब ! मैं आपको बता नहीं सकता कि उस दिन वो रुपये मेरे लिए कितनी कीमत रखते थे । उन पैसों से मैं अपने बेटे को अस्पताल 
ले जा सका - उसके लिए दवाइयां खरीद सका । मेरा बेटा अब बिलकुल ठीक है ... देखिये भगवान ने हमारा कितना ख्याल रखा और 
कैसे हमारी मदद की।   
भगवान है साहिब ! और बहुत दयालु है "
उसकी आंखों में आस्था और विश्वास का प्रकाश चमक रहा था। 
यकायक पंद्रह जोड़े आँखें मेजर साहिब की आँखों से मिलने के लिए उनकी तरफ  उठ गयीं। 
मेजर साहिब ने आँख से ही सबको चुप रहने का आदेश दिया और कुर्सी से उठ कर उस बूढ़े आदमी को गले लगा लिया और कहा, 
"हां बाबा, आप सच कहते हो कि भगवान बहुत दयालु है।"
"और आपकी चाय भी बहुत बढ़िया थी" ये कहते हुए मेजर साहिब ने बिल का भुगतान करने के लिए जेब से पैसे निकाले लेकिन उनकी आँखों के कोनों में आयी हुईं आँसुओं की दो बूँदें उन पंद्रह जोड़े आँखों से छुपी न रह सकीं। ये एक ऐसा भावनापूर्ण द्रिश्य था जिसे उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। 

(यह कहानी जम्मू और कश्मीर के कूपवाड़ा क्षेत्र के एक सैनिक द्वारा सुनाई गयी एक सच्ची घटना पर आधारित है)

लेकिन सच्च तो यह है कि हर इंसान कभी न कभी - किसी न किसी के लिए  'ईश्वर' का रूप बन सकता है। 
हम अक्सर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भगवान से प्रार्थना करते रहते हैं
लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि भगवान हमारी ज़रूरतों को कैसे पूरा करते हैं ? 
क्या हमने कभी यह समझने की कोशिश की है कि वह किस तरह और किस रूप में आकर हमारी मदद करते हैं ?

एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक के कथन अनुसार :
"जो मानते हैं, उनके लिए सब कुछ एक चमत्कार ही है - 
जो नहीं मानते, वह हर असंभावित घटना को महज़ एक संयोग कह कर  उसकी उपेक्षा कर देते हैं।"

सब कुछ हमारे दृष्टिकोण और रवैये पर निर्भर है 
यह मान्यता - कि सब कुछ एक चमत्कार ही है - हमारे मन को आभार और विनम्रता के साथ भर देती है।
संसार की हर चीज़ को, और जीवन की हर घटना को यदि हम आश्चर्य और 'अहो ' की भावना के साथ देखें , तो जीवन खुशी 
और उत्साह से भर जाता है, आनंदमयी हो जाता है - अन्यथा यह संसार भौतिक विज्ञान (physics) के कुछ निश्चित नियमों और 
रासायनिक प्रतिक्रियाओं (chemical reactions ) से ज्यादा कुछ भी नहीं है।

                                                                   ' राजन सचदेव '




1 comment:

  1. Very interesting and inspirational thought....�� Dhan Nirankar ji

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