लेकिन प्रेम करते हैं शरीर से - हमारा ध्यान रहता है हमेशा शरीर की तरफ
कहते तो हैं कि हम आत्मा हैं - लेकिन जीते हैं शरीर के स्तर पर -
जो भी करते हैं वह शरीर के लिए करते हैं।
बातें तो करते हैं आत्मा को जानने की - मन को सुंदर बनाने की
लेकिन अधिकांश समय लगाते हैं शरीर को सजाने-संवारने में
बात करते हैं सादगी की लेकिन शानदार - शानो शौकत से भरा जीवन जीना चाहते हैं।
अर्थात कहते कुछ और हैं - लेकिन चाहते और करते कुछ और हैं।
ऐसा लगता है कि आध्यात्मिकता के बारे में बात करना - सेमिनारों में जाकर आध्यात्मिक व्याख्यान सुनना और भाग लेना भी आजकल एक फैशन बन गया है। आत्मिक सेमिनार में जाने के लिए भी पहले हम नए कपड़े ज्यूलरी jewlery मेक अप इत्यादि खरीदने जाते हैं - शरीर के लिए।
आश्चर्य की बात है कि क्या हम वास्तव में कुछ आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए वहां जाते हैं या अपनी संपत्ति - कपड़ों इत्यादि का दिखावा करने के लिए? अपने अहंकार की तुष्टि के लिए - यह दिखाने के लिए कि हम बहुत ही धार्मिक और आध्यात्मिक हैं।
हम किस रास्ते पर जा रहे हैं?
जिन पुराने संतों की हम चर्चा करते और सुनते हैं - जैसे कि भापा राम चंद जी, संत अमर सिंह जी, प्रधान लाभ सिंह सिंह जी, ऋषि व्यास देव जी, भापा भगत राम जी, और ज्ञानी जोगिंदर सिंह जी जैसे महात्मा* केवल सादगी, ईमानदारी और पवित्रता की बातें ही नहीं करते थे बल्कि स्वयं भी सादगी में जीते थे। उनकी जीवज शैली सरल थी। उनकी सादगी उनके घर और रहन सहन - कपड़ों और भोजन इत्यादि में साफ़ झलकती थी। उनकी बोलचाल में भी सरलता थी - जो बिना किसी बनावट के, सीधे हृदय से निकलती हुई महसूस होती थी।
वे सही मायने में साधक और खोजी थे - सतगुरु की कृपा सानिध्य एवं व्यक्तिगत रुप से मार्ग दर्शन मिलने के कारण अंततः वह महान संत भी बन गए।
कहा जाता है कि किसी व्यक्ति की पहचान उसके वचनों से नहीं बल्कि उसके कर्म से होती है।
उन संतों ने सादगी, ईमानदारी और पवित्रता का जीवन जीया।
जब हमारी सोच और कर्म में - कहने और करने में अंतर होता है तो मन में एक दुविधा बनी रहती है।
एक भ्रम बना रहता है जिसके कारण हम न तो अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं और न ही मन की शांति।
चूँकि अंदर और बाहर - कहने और करने में अंतर है - दोनों में द्वन्द है - इसीलिए जीवन में उपद्रव है
अंतर और बाहर में चूंकि फर्क बना ही रहता है
इसीलिए ही जीवन में उलझाव सदा ही रहता है
अंदर और बाहर की दुनिया जिस दिन इक हो जायेगी
'राजन' उस दिन ही जीवन में परम शान्ति हो जायेगी
'राजन सचदेवा'
नोट: * बेशक कई और भी ऐसे महान व्यक्तित्व थे और आज भी हैं - लेकिन यहाँ केवल उन कुछ संतों का उल्लेख किया गया है जिनके साथ मुझे रहने और क़रीब से देखने का मौका मिला - जिनके साथ मेरे व्यक्तिगत अनुभव थे।
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