दिल से बेहतर कोई किताब नहीं
स्वयं को पढ़ना सबसे कठिन काम है
दूसरों को पढ़ना - उन पर टिप्पणी करना आसान है
लेकिन स्वयं को निष्पक्ष द्रिष्टि से देखना -
स्वयं का यथार्थ अवलोकन और निष्पक्ष निरीक्षण करना बहुत कठिन है।
सच्चाई के साथ स्वयं का मूल्यांकन करना - आध्यात्मिकता के मार्ग पर पहला कदम है जो शाश्वत शांति की मंजिल की ओर ले जाता है।
प्राचीन भारतीय शास्त्रों ने बाहर नहीं - बल्कि भीतर खोज करने पर जोर दिया।
भीतर - अर्थात अपनी स्वयं की कमियों की खोज।
ताकि वे तत्व अथवा भावनाएँ - जो हमारे वास्तविक स्वरुप को दूषित या आच्छादित कर सकते हैं - ढ़क लेते हैं - उन्हें हटाने का प्रयास कर सकें - उन्हें दूर करने की कोशिश कर सकें।
जब हम दूसरों का मूल्यांकन करना बंद कर देते हैं - दूसरों को जांचने और परखने की बजाए खुद का मूल्यांकन करना शुरु कर देते हैं, तो हम अपनी मंज़िल की ओर आगे बढ़ने लगते हैं।
' राजन सचदेव '
Dil ki Diwaar par ek aiana sa latka rekha hai
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