Monday, November 30, 2020

अच्छे दोस्त दवा से अधिक मूल्यवान हैं

 आज सुबह एक गुड-मॉर्निंग ' संदेश मिला - जिसमें लिखा था:

“अच्छे दोस्त दवा की तुलना में बेहतर और अधिक मूल्यवान होते हैं।
क्योंकि, दवाओं की एक्सपायरी डेट होती है, जबकि अच्छी दोस्ती कभी Expire नहीं होती - कभी ख़त्म नहीं होती। ”

संदेश अच्छा था -  लेकिन मुझे लगा कि इसमें कहीं कुछ कमी है।  
दोस्ती का एक महत्वपूर्ण अंग है - वार्तालाप - बातचीत 
जिसके अभाव में दोस्तों में भी दूरी बढ़ने लगती है।

वास्तव में, संचार - वार्तालाप सभी रिश्तों को क़ायम रखने के लिए आवश्यक है।
वार्तालाप के बिना दोस्ती एवं हरएक रिश्ता घटते घटते अंततः समाप्त हो जाता है। 

यह बात भक्ति में भी सत्य है।
सर्वशक्तिमान निरंकार प्रभु के साथ भी अगर सीधा संवाद न रहे तो हम धीरे-धीरे इस रिश्ते को भी खोना शुरु कर देते हैं - 
और भौतिक दुनिया में अन्य विकल्पों की तलाश करने लगते हैं।
                                                     ' राजन सचदेव '

Good Friends are better than Medicine

This morning, I received an inspirational 'Good-Morning' message - which said:
"Good friends are better and far more valuable than medicine.
Because, medicines have an expiry date, while a good friendship never expires."

It was a nice message, but I thought something was missing in it - a significant factor in friendship - which is Communication.
In fact, communication is an essential ingredient in all relationships.
Without communication, every relationship, including friendship, eventually fades out.

The same is true in Bhakti.
Without direct communication with Almighty Nirankar, we slowly start losing this relationship as well - and may start looking for and depending on other alternatives in the physical world.
                                             ' Rajan Sachdeva '

Sunday, November 29, 2020

Rev. K. R. Chadha ji

The Sant Nirankari Mandal expresses deep regret and sorrow in sharing the news that the great learned and devoted Saint of the Nirankari Family, the nonagenarian epitome of selfless service, Rev Khem Raj Chadha Ji has today - November 29, 2020, left us in physical form at 9.50 pm, aged 90. 

Spiritual since childhood, Khem Raj Ji took Brahgyam at an early age from Shaheshah Baba Avtar Singh Ji. He breathed the philosophy of the Mission day in and day out. He always said -" We should say what we do, and do what we say". He believed in practice before preaching. An astute orator, ardent writer, prolific poet, and able administrator, he never let humility leave his words or actions. 

Having undertaken numerous administrative roles over many decades, Chadha Sahib, as he was respectfully addressed by all, was currently serving the Mandal as the Chairman of the Central Planning and Advisory Board. 

He served various departments of the Executive Committee of SNM over the years, including Sewadal, Foreign Affairs, and Publications, etc. His role as convenor of Annual Samagam remains an inspiration for all. He took blessings of Shaheshah ji, Baba Gurbachan Singh Ji, Nirankari Rajmata Ji, Baba Hardev Singh Ji Maharaj, Mata Savinder Hardev Ji, and was equally subservient to the commandments of Satguru Mata Sudiksha Ji Maharaj over the last two years. 

Though we have lost him in physical form, his life and teachings will continue to inspire generations to come with respect to his unflinching devotion and complete surrender in the lotus feet of Satguru. 







तुम से मिलकर Tum say Mil kar

चंद कलियाँ निशात की चुन कर
पहरों महवे -यास रहता हूँ

तुम से मिलना ख़ुशी की बात सही
तुम से मिल कर उदास रहता हूँ
                          'साहिर लुध्यानवी'


Chand Kaliyaan Nishaat ki chun kar
Pehron Mehave-yaas rehtaa hoon

Tum say Milnaa khushi ki baat sahi 
Tum say mil kar Udaas rehtaa hoon
                            'Sahir Ludhyaanvi' 

महवे -यास   =  निराश
Nishaat     =   Garden
Mehave-yaas  =  Absorbed in sadness, Despair, Desperation

Saturday, November 28, 2020

सब चला चली का फेरा है Sab chala chalee ka phera hai

ये मेरा है वो मेरा है
क्यों मैं ने मुझको घेरा है
मैं भूल गया - तुम भूल गए
सब चला चली का फेरा है

सब अपना अपना कहते हैं 
क्या जग में है जो अपना है ?
जो अपना है सब सपना है 
इक सपना ही बस अपना है 

कल वाला पल तो बीत गया 
इस पल में कैसी कल कल है 
कल आने वाला जो पल है
इस पल में उसकी हलचल है 

         ~डॉक्टर जगदीश सचदेव  ~ (मिशिगन)

Ye mera hai vo mera hai 
Kyon main nay mujhko ghera hai
Main bhool gaya- tum bhool gaye 
Sab chala chalee ka phera hai  

Sab apnaa apnaa kehtay hain 
Kya jag mein hai jo apnaa hai ?
Jo apnaa hai sab sapnaa hai  
Ik sapnaa hee bas apnaa hai  

Kal waala pal to beet gaya 
Is pal mein kaisee kal kal hai 
Kal aane waala jo pal hai
is pal mein us kee hal chal hai  
       
   By: Dr. Jagdish Sachdeva (Michigan) 

Is the life of others better than ours?

We always think that the life of others is better than ours.
We wish to have a life like others - like the people whom we think are perfect and happy.
Even if we know in our hearts that their life is not perfect, we still think it is better than ours.
It's human nature to wish for better things -
And it is not wrong.

In fact, having a desire for betterment - to get better things and to have a better lifestyle is good because it motivates us to work harder and improve ourselves.

However, one can not gain true happiness if it is done just for the sake of competing with others - because of jealousy.
Jealousy creates restlessness - and a restless mind can never be happy.

Instead of competing with others, it's better to compete with ourselves - to make our tomorrow better than yesterday. Trying to gain more knowledge to accomplish our goals and to attain more contentment in mind will help us to achieve more happiness. 

We may think that the grass on someone else's lawn is greener than ours - which may not necessarily be true.
The grass is greener on the lawn that is most cared for.
Therefore, instead of looking at others, we should honestly and sincerely try to take care of our own needs and goals - to improve ourselves.
                                  ' Rajan Sachdeva '

Friday, November 27, 2020

किसी को ऊपर उठाने के लिए

शक्तिमान बनो - लेकिन अशिष्ट नहीं

दयालु बनो - लेकिन कमजोर नहीं

स्वाभिमानी बनो - लेकिन अभिमानी नहीं

विनम्र बनो - भयभीत नहीं

अच्छे, विचारशील और उदार बनो
लेकिन स्वयं को लोगों द्वारा उनके स्वार्थी उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल न होने दो।

यदि आप स्वयं को प्रेम और सम्मान नहीं देते तो आप किसी और को भी प्रेम और सम्मान नहीं दे सकते।

किसी को ऊपर खींचने में सक्षम होने के लिए - किसी को ऊपर उठाने के लिए पहले अपने पाँव मजबूती से टिकाने की ज़रुरत होती है।
स्वयं को सुरक्षित करके ही हम किसी और की सहायता कर सकते हैं। 

इसलिए, जीवन में सुख और शांति प्राप्त करने के लिए स्वयं का ध्यान रखना भी आवश्यक है।

To be able to pull someone up ...

Be strong - but not rude

Be kind - But not weak

Be proud - But not arrogant

Be humble - But not frightened

Be nice, considerate, and generous

But don't let people use you for their selfish motives.

You can not love and respect anyone else unless you love and respect yourself. 

To be able to pull someone up, we first need to have a secure footing for ourselves. 

Therefore, taking care of oneself is an essential step to achieve happiness and peace in life. 

Thursday, November 26, 2020

हम बातें तो करते हैं आत्मा की ....

हम बातें तो करते हैं आत्मा की
लेकिन प्रेम करते हैं शरीर से - हमारा ध्यान रहता है हमेशा शरीर की तरफ 

​कहते तो हैं कि हम आत्मा हैं - लेकिन जीते हैं शरीर के स्तर पर -
जो भी करते हैं वह शरीर के लिए करते हैं।

​बातें तो करते हैं आत्मा ​को जानने की - मन को सुंदर बनाने की
लेकिन अधिकांश समय लगाते हैं शरीर को सजाने-संवारने में ​​

बात करते हैं सादगी की लेकिन शानदार - शानो शौकत से भरा जीवन जीना चाहते हैं।
अर्थात कहते कुछ और हैं - लेकिन चाहते और करते कुछ और हैं।

ऐसा लगता है कि आध्यात्मिकता के बारे में बात करना - सेमिनारों में जाकर आध्यात्मिक व्याख्यान सुनना और भाग लेना भी आजकल एक फैशन बन गया है। आत्मिक सेमिनार में जाने के लिए भी पहले हम नए कपड़े ज्यूलरी jewlery मेक अप इत्यादि खरीदने जाते हैं - शरीर के लिए।

आश्चर्य की बात है कि क्या हम वास्तव में कुछ आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए वहां जाते हैं या अपनी संपत्ति - कपड़ों इत्यादि का दिखावा करने के लिए? अपने अहंकार की तुष्टि के लिए - यह दिखाने के लिए कि हम बहुत ही धार्मिक और आध्यात्मिक हैं।

हम किस रास्ते पर जा रहे हैं?

जिन पुराने संतों की हम चर्चा करते और सुनते हैं - जैसे कि भापा राम चंद जी, संत अमर सिंह जी, प्रधान लाभ सिंह सिंह जी, ऋषि व्यास देव जी, भापा भगत राम जी, और ज्ञानी जोगिंदर सिंह जी जैसे महात्मा* केवल सादगी, ईमानदारी और पवित्रता की बातें ही नहीं करते थे बल्कि स्वयं भी सादगी में जीते थे। उनकी जीवज शैली सरल थी। उनकी सादगी उनके घर और रहन सहन - कपड़ों और भोजन इत्यादि में साफ़ झलकती थी। उनकी बोलचाल में भी सरलता थी - जो बिना किसी बनावट के, सीधे हृदय से निकलती हुई महसूस होती थी।
वे सही मायने में साधक और खोजी थे - सतगुरु की कृपा सानिध्य एवं व्यक्तिगत रुप से मार्ग दर्शन मिलने के कारण अंततः वह महान संत भी बन गए। 

कहा जाता है कि किसी व्यक्ति की पहचान उसके वचनों से नहीं बल्कि उसके कर्म से होती है। 
 उन संतों ने सादगी, ईमानदारी और पवित्रता का जीवन जीया। 
 
जब हमारी सोच और कर्म में - कहने और करने में अंतर होता है तो मन में एक दुविधा बनी रहती है।
एक भ्रम बना रहता है जिसके कारण हम न तो अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं और न ही मन की शांति।

​चूँकि अंदर और बाहर​ -​ कहने और करने में अंतर है - ​दोनों में द्वन्द है ​- ​इसीलिए जीवन में उपद्रव है

अंतर और बाहर में चूंकि फर्क बना ही रहता है
इसीलिए ही जीवन में उलझाव सदा ही रहता है
अंदर और बाहर की दुनिया जिस दिन इक हो जायेगी
'​राजन​'​ उस दिन ही जीवन में परम शान्ति हो जायेगी
                                                      'राजन सचदेवा'


नोट: * बेशक कई और भी ऐसे महान व्यक्तित्व थे और आज भी हैं - लेकिन यहाँ केवल उन कुछ संतों का उल्लेख किया गया है जिनके साथ मुझे रहने और क़रीब से देखने का मौका मिला - जिनके साथ मेरे व्यक्तिगत अनुभव थे।

Wednesday, November 25, 2020

We Talk about ​the ​Soul - But...

We talk about ​the ​Soul -​ but love the body.​
​We claim to be a soul ​but live continually ​​as​ ​a​ body.
We talk about the beauty of the mind - to make the mind beautiful - but spend hours on making the body look beautiful. ​
We talk about simplicity - but live a luxurious lifestyle.
We talk about one thing - but do something else. 

It seems that talking, listening, and attending lectures or seminars about the soul has also become a fashion these days. 
Before we go to attend a seminar on the soul - we go to buy a new dress and jewelry for the body​ to go there. 
I wonder, do we really go there to gain some spiritual wealth or to show off our worldly wealth? To satisfy our ego by announcing to others that we are also spiritually inclined people.

​Which way are we heading?

In the past, Saints like Bhapa Ram Chand ji, Sant Amar Singh ji, Pradhan Labh Singh ji, Rishi Vyas Dev ji, Bhapa Bhagat Ram ji, Prof. Puri, and Giani Joginder Singh ji, etc. to name a few* - who talked about simplicity, themselves lived a quite simple lifestyle.
Simplicity was visible from every aspect of their lives - from their homes, their clothes, food, and attitude - the way they spoke to everyone from their hearts - without any fancy or artificial language.
They were real seekers - and by the grace and the personal guidance of the Satguru - eventually, they became Saints as well. They were uplifted to Sainthood.

As they say - a person is defined by - not what he says, but what he does.

Talking emphatically about things that we don't really want - creates a dilemma - a confusion in our minds - and we can neither achieve our goal nor peace of mind.
                                                     ' Rajan Sachdeva '

Note: * Of course, There were, and are many other such great personalities - however, I have mentioned only a few of those with whom I was close and had personal experiences.


Tuesday, November 24, 2020

संस्कृत भाषा की सुंदरता

क्या आप जानते है विश्व की सबसे ज्यादा समृद्ध भाषा कौनसी है ??

अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध वाक्य है:
THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG
जिसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए हैं। मज़ेदार बात यह है की अंग्रेज़ी में कुल 26 अक्षर ही उप्लब्ध हैं जबकि इस वाक्य में 33 अक्षरों का प्रयोग किया गया है। जिसमें चार बार O और A, E, U तथा R अक्षर का प्रयोग क्रमशः 2 बार किया गया है। इसके अलावा इस वाक्य में अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है। जहां वाक्य T से शुरु होता है वहीं G से खत्म हो रहा है।

अब ज़रा संस्कृत के इस श्लोक को पढिये।-

              क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोSटौठीडढण:।
             तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।।


अर्थात: पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन ? राजा मय ! 
जिसको शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं।

श्लोक को ध्यान से पढ़ने पर आप पाते हैं की संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस श्लोक में दिखाई दे रहे हैं वो भी क्रमानुसार। 
यह खूबसूरती केवल और केवल संस्कृत जैसी समृद्ध भाषा में ही देखने को मिल सकती है!

पूरे विश्व में केवल एक संस्कृत ही ऐसी भाषा है जिसमें केवल एक अक्षर से ही पूरा वाक्य लिखा जा सकता है। 
किरातार्जुनीयम् काव्य संग्रह में केवल “न” व्यंजन से अद्भुत श्लोक बनाया है और गजब का कौशल्य प्रयोग करके भारवि नामक महाकवि ने थोडे में बहुत कहा है-

               न नोननुन्नो नुन्नोनो नाना नानानना ननु।
               नुन्नोऽनुन्नो ननुन्नेनो नानेना नुन्ननुन्ननुत्॥


अर्थात: 
जो मनुष्य युद्ध में अपने से दुर्बल मनुष्य के हाथों घायल हुआ है वह सच्चा मनुष्य नहीं है। 
ऐसे ही अपने से दुर्बल को घायल करता है वो भी मनुष्य नहीं है। 
घायल मनुष्य का स्वामी यदि घायल न हुआ हो तो ऐसे मनुष्य को घायल नहीं कहते 
और घायल मनुष्य को घायल करें वो भी मनुष्य नहीं है। 
          वंदेसंस्कृतम्!

एक और उदहारण है।

               दाददो दुद्द्दुद्दादि दादादो दुददीददोः
               दुद्दादं दददे दुद्दे ददादददोऽददः


अर्थात: 
दान देने वाले, खलों को उपताप देने वाले, शुद्धि देने वाले, दुष्ट्मर्दक भुजाओं वाले, दानी तथा अदानी दोनों को दान देने वाले, राक्षसों का खंडन करने वाले ने शत्रु के विरुद्ध शस्त्र को उठाया।
                                    लेखक - अज्ञात
                                                     Writer unknown  
                                       (Courtesy of Madhu Desai)

पात झरंता यूँ कहै - सुन तरुवर बनराय

 पतझड़ का मौसम है।

घर का आंगन वृक्षों से गिरे सूखे पत्तों से भरा हुआ है।
मैं अपने कमरे में बैठे हुए खिड़की में से पेड़ों से गिरते हुए पत्तों को देख रहा हूं।
जब कुछ पत्ते जमीन पर गिरने से पहले कुछ सेकंड के लिए हवा में तैरते हुए दिखाई दिए - तो मुझे संत कबीर जी के दो दोहे याद आ गए जो हमें पाँचवीं या छठी कक्षा में हिंदी की क्लास में पढ़ाए जाते थे।
                             पात झरंता यूँ कहै  -  सुन तरुवर बनराय 
                             अबके बिछुरे नाहीं मिलें - दूर परैंगे जाय 

झड़ता हुआ - गिरता हुआ पत्ता दुखी मन से पेड़ से कहता है:
अब बिछुड़ने के बाद हम फिर कभी नहीं मिल सकेंगे - क्योंकि मैं कहीं बहुत दूर जा गिरुँगा। 
अब फिर से मिलना असंभव होगा 

पेड़ ने जवाब देते हुए कहा:
                        तरुवर पात सों यों कहै, सुनो पात एक बात
                        या घर याही रीति है, एक आवत एक जात

 वृक्ष पत्ते से कहता है - हे पत्ते - मेरी बात ध्यान से सुनो।
एक जाता है, और दूसरा आता है - यही इस संसार का नियम है।

पतझड़ के दौरान लगभग सभी पेड़ों के पत्ते झाड़ जाते हैं।
सर्दियों के मौसम में सभी पेड़ नग्न - पात विहीन खड़े रहते हैं।
लेकिन सर्दियों के बाद, वसंत रितु के आते ही उन पर नए पत्ते उगना शुरु हो जाएंगे - और जल्द ही, वे फिर से हरे पत्तों से भर जाएंगे।
यह चक्र चलता रहता है।
यही प्रकृति का नियम है।

पेड़ के लिए पत्तों का झड़ना - गिरना शायद ज्यादा मायने नहीं रखता।
वह विभिन्न ऋतु-चक्रों में भी जीवित रहता है।

इसी प्रकार - कितने ही लोग प्रति दिन इस दुनिया से चले जाते हैं - और कितने ही नए जन्म लेते हैं।
जो चले जाते हैं, हम उन्हें फिर कभी नहीं देख पाते।
लेकिन जहां तक संसार का सवाल है, यह बात ज़्यादा मायने नहीं रखती। किसी के आने जाने से कोई ख़ास फ़र्क़ नहीं पड़ता। 
पेड़ की तरह, संसार भी हमेशा की तरह चलता रहता है।
                                                    -----------------------------
तभी एक और विचार मन में आता है।

ऐसा लगता है कि पेड़ प्रभावित नहीं होता है - यह पत्ते ही हैं जो समाप्त हो जाते हैं।
एक बार जब यह पेड़ से गिरते हैं तो सूख जाते हैं - मर जाते हैं और हमेशा के लिए खत्म हो जाते हैं।
यह फिर कभी पेड़ का हिस्सा नहीं बन सकते।

लेकिन क्या यह सच है?
सामान्य अवलोकन और विज्ञान के अनुसार  - नहीं।
गिरी हुई मृत पत्तियाँ अंततः खाद में बदल जाती हैं।
वे नए या मौजूदा पौधों के लिए भोजन बन जाते हैं - और इस प्रकार वे फिर से पेड़ों का हिस्सा बन जाते हैं।

 विज्ञान कहता है कि कोई भी वस्तु पूर्णतयः समाप्त नहीं होती। केवल उसका रुप बदल जाता है।  

इसी तरह, चेतना भी कभी नहीं मरती - समाप्त नहीं होती।
यह किसी अलग रुप में - किसी अलग आकार - किसी दूसरे शरीर में फिर से संसार में प्रकट हो जाती है।

यद्यपि मुझे खिड़की के माध्यम से एक अंधेरा, बादलों से ढंका एक उदास सा चित्र दिखाई दे रहा है - 
लेकिन मैं जानता हूँ कि कुछ ही महीनों में, वसंत रितु के आते ही सब कुछ फिर से ताजा, हरा भरा और प्रफुल्लित हो जाएगा।
                                                ' राजन सचदेव '

Falling Leaf Says to the Tree

It's the fall season.
The ground is filled with dry fallen leaves in the backyard.
While sitting in my room - through the window, I am looking at more leaves falling from the trees.
I saw some leaves floating in the air for a few seconds before falling on the ground, and I remembered a couple of Dohas - couplets by Sant Kabeer ji that we learned in fifth or sixth grade during the Hindi class. 
                                   पात झरंता यूँ कहै  -  सुन तरुवर बनराय 
                                   अबके बिछुरे नाहीं मिलें - दूर परैंगे जाय 
                               Paat jharantaa yoon kahai - sun taruvar banraai
                              Ab kay bichhuray naahin milen - door parengay jaai.
While floating in the air, the falling leaf says to the tree:
Now that we are departing, we shall never meet again - as I will be taken (by the wind) far away from you.  

The tree replies back by saying:
                              तरुवर पात सों यों कहै, सुनो पात एक बात
                              या घर याही रीति है, एक आवत एक जात
                             Taruvar paat syon yon kahai - suno paat ik baat
                             Yaa ghar yaahi reeti hai - ek Aavat ek Jaat 
 The tree says to the leaf - O leaf, listen to me carefully.
One goes, and another one comes - this is the way of the world.

Almost all trees lose their leaves during fall.
They will stand naked during the winter.
After the winter, however, when the spring approaches, they will start to grow new leaves - and soon, they will be filled with the leaves again.
The cycle continues.
This is the way of Nature.

To the tree, losing leaves does not seem to matter much. 
It continues to live through different cycles.
Similarly, so many people leave this world every day - and so many new get born.
Those who leave, we will never see them again.
But as far as the world is concerned, it does not matter much.  
Just like the tree, the world continues as usual.
                          ~~    ~~    ~~    ~~    ~~
Another thought comes to my mind. 

It seems that the tree does not get affected - it's the leaf that loses everything.
Once it falls from the tree, it dies - and is gone forever.
It can never become a part of the tree again.
But is it true?
According to general observation and science, the answer is - No.
The fallen dead leaves eventually turn into fertilizers.
They become food for the new or existing plants, and so - technically speaking, they become part of the trees again.
Nothing is lost forever - though it may seem to be so.
Similarly, consciousness is never lost.
It comes back in a different form - a different shape - in another body and lives on.

Though I see a dark, cloudy - sad, and gloomy picture through the window - but I know in a few months, in spring, everything will be fresh, green, and full of life again.
                               ' Rajan Sachdeva '

 

Monday, November 23, 2020

ग़लत बातों को ख़ामोशी से - Galat baaton ko khamoshi say

ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना - हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ायदे इस में - मगर अच्छा नहीं लगता
                                       'जावेद अख़्तर '


Galat baaton ko khamoshi say sunanaa - haami bhar lena
Bahut hain faayday is may magar achhaa nahi lagtaa
                                              'Javed Akhtar'

चलो चुपके से रख आते हैं Chalo chupkay say rakh aatay hain

चलो चुपके से रख आते हैं जाकर कुछ दुआएं आज
                                              हम उनके सिरहाने में !
जिन को अरसा बीत गया है खुल कर बात करने में
                                            खुल कर मुस्कुराने में !!
           
Chalo chupkay say rakh aatay hain jaakar kuchh duaayen aaj
                                                                Hum unkay sirhaanay may
Jinko arsaa beet gyaa hai khul kar baat karnay may
                                                               Khul kar muskuraanay may
                                                 (Writer unknown)

Sunday, November 22, 2020

Gaahay Gaahay isay Padhaa Keejay

 

               Gaahay gaahay isay padhaa keejay
               Dil say behtar koi kitaab nahin 

      (Do read it occasionally.
      There is no better book than your own self)
 
The hardest thing is to read yourself.
Reading others - judging and commenting on them is easy.
But to see ourselves with a fair view - with untainted self-view - to observe ourselves objectively is very difficult.

To evaluate ourselves - truthfully - is the first step on the path of the spiritual journey that leads to the destination of eternal peace.

The ancient Indian Scriptures insisted on searching within - not outside - Searching for our own shortcomings - the elements or emotions that might have contaminated or covered our real self and removing them. 
When we stop judging others and start evaluating ourselves, we start progressing on our path to liberation. 
                                                  ' Rajan Sachdeva '

गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजे

                 गाहे गाहे इसे पढ़ा कीजे
            दिल से बेहतर कोई किताब नहीं 

स्वयं को पढ़ना सबसे कठिन काम है 
दूसरों को पढ़ना  - उन पर टिप्पणी करना आसान है 
लेकिन स्वयं को निष्पक्ष द्रिष्टि से देखना  - 
स्वयं का यथार्थ अवलोकन और निष्पक्ष निरीक्षण करना बहुत  कठिन है। 

सच्चाई के साथ स्वयं का मूल्यांकन करना - आध्यात्मिकता के मार्ग पर पहला कदम है जो शाश्वत शांति की मंजिल की ओर ले जाता है।

प्राचीन भारतीय शास्त्रों ने बाहर नहीं - बल्कि भीतर खोज करने पर जोर दिया। 
भीतर - अर्थात अपनी स्वयं की कमियों की खोज। 
ताकि वे तत्व अथवा भावनाएँ - जो हमारे वास्तविक स्वरुप को दूषित या आच्छादित कर सकते हैं - ढ़क लेते हैं - उन्हें हटाने का प्रयास कर सकें  - उन्हें दूर करने की कोशिश कर सकें। 
जब हम दूसरों का मूल्यांकन करना बंद कर देते हैं - दूसरों को जांचने और परखने की बजाए खुद का मूल्यांकन करना शुरु कर देते हैं, तो हम अपनी मंज़िल की ओर आगे बढ़ने लगते हैं।
                                         ' राजन सचदेव '

What we don't know

What we know is a drop

What we don't know -

is an ocean. 

Friday, November 20, 2020

जिसे निभा न सको Jisay nibhaa na sako

जिसे निभा न सको ऐसा वादा मत करो
बातें अपनी हद से कभी ज़्यादा मत करो
तमन्ना रखो आसमां को छूने की लेकिन
औरों  को  गिराने का  इरादा मत करो


Jisay nibhaa na sako, aesa vaada mat karo
Baaten apni had say kabhi zyaada mat karo
Tamannaa rakho aasman ko chhoonay ki lekin 
Auron ko giraanay ka iraada mat karo 
                      (Unknown)

Thursday, November 19, 2020

Prabhu Daata - Sab ka Daata - With notation (to play)

                                            Scroll down for the Notation 
                                         (How to play and sing the tune)

Prabhu Daata - Sab ka Daata
Deendayaal Kripaal Dayaanidhi Sarv Kalaa ka gyaata
Prabhu daata sab ka daata

Allah kahay koi Ram kehat hai 
Vaaheguru koi Shyaam kehat hai 
Antar kewal naam ka hee hai - ek hai jagat vidhaata
Prabhu daata sab ka daata

Ishwar ka koi roop na rang hai 
Sarv vyaapi sab kay sang hai 
Is Nirankar ka sumiran kar lay - Satguru ye samjhaata
Prabhu daata sab ka daata

Bhanwaraa bandhay jyon phool kay sangaa
Deepak par jyon jalay patangaa
Taisay maaya jaal me phans kay - chanchal man dukh paata
Prabhu daata sab ka daata

Soye huye is man ko jagaa lay 
Gyaan ki jyoti man me jalaa lay
Ang-sang jo rehtaa hai 'Rajan' - jod lay us sang naata 
Prabhu daata sab ka daata
                                 ' Rajan Sachdeva '

Antra 


                    All Antras can be sung on the same notes

प्रभु दाता - सब का दाता (गीत) स्वरलिपि के साथ

                                               Scroll down for the Notation 
                                           (How to play and sing the tune)

                                                स्वरलिपि के लिए नीचे देखें 

प्रभु दाता  - सब का दाता
दीनदयाल कृपाल दयानिधि सर्व कला का ज्ञाता 
प्रभु दाता - सब का दाता 

अल्लाह कहे कोई राम कहत है 
वाहेगुरु  कोई  श्याम  कहत है 
अंतर केवल नाम का ही है - एक है जगत विधाता 
प्रभु दाता, सब का दाता  - प्रभु ही है सब का दाता

ईश्वर का कोई रुप न रंग है 
सर्वव्यापी सब के  संग है 
इस निरंकार का सुमिरन कर ले - सतगुरु ये समझाता   
प्रभु दाता, सब का दाता   -  प्रभु ही है सब का दाता
 
भंवरा बंधे ज्यों फूल के संगा 
दीपक पर ज्यों जलिहै पतंगा 
तैसे माया जाल में फंस के  - चंचल मन दुःख पाता 
प्रभु दाता, सब का दाता - प्रभु ही है सब का दाता

सोये हुए इस मन को जगा ले 
ज्ञान की ज्योति मन में जला ले 
अंग संग जो रहता है 'राजन - जोड़ ले उस संग नाता   
प्रभु दाता, सब का दाता   -  प्रभु ही है सब का दाता  
                                     ' राजन सचदेव '


अंतरा 


बाकी सभी अन्तरे भी इन्हीं स्वरों पर 


 

Tuesday, November 17, 2020

To My Twin Daughters - On their Birthday

It is true that you are indeed getting older -
But you are not only aging -
You are also growing.

Aging is not just decaying or declining - it is also growing.
As you grow, you learn more - you understand more.

So do not be afraid of aging. 
It's a process that, regardless of your wish, will happen anyway. 

And remember: If you had stayed at twenty-two, you would have been as ignorant now as you were at twenty-two.

Those who always want to stay younger or wish they could be young again, you know what that reflects?
It reflects unfulfilled and unsatisfied lives - Lives that have not found meaning.
If you have found meaning, then you would not want to go back.
You would want to continue to go forward.

Yes - you are aging, but keep in mind that you are also growing and getting wiser.
Remember: Life is an experience. 
Always be open to learning more new things and improving the old ways.

Yes - You are older than before -
But you are also much stronger and wiser than before.
So, Live your life with meaning - with purpose and enjoy it to the fullest. 

I wish you both and your families a very long, happy, and prosperous life. 
                                HAPPY BIRTHDAY
                               Karuna and Rachana

Strange are the ways of the world अजब हैं इस दुनिया के रंग

Strange are the ways of the world.
We always get cheated by the wrong people -
And usually take its revenge on good people.

अजब हैं इस दुनिया के रंग  ... 
जीवन में हम धोखा हमेशा ग़लत इन्सानों से खाते हैं - 
और अक़्सर उसका बदला अच्छे इन्सानों से लेते हैं
                                         

Monday, November 16, 2020

Deepavali - Philosophical Meaning

Though every Indian religious tradition has its own reason for celebrating Diwali - it is mostly associated with the story of Lord Ram coming back to Ayodhya after defeating Ravan and is looked upon as the victory of good over evil. 

However, lately, the authenticity of the popular version of this epic story and the morality of certain events described by Sant Tulasi Das in the Ram-Charit-Maanas have become questionable and a matter of debate.

Instead of searching for the historical facts and its authenticity, let us examine the symbolic meanings of certain events to draw some useful conclusions for our own advancement.
By carefully examining the nature of the two main characters of this larger-than-life story, Lord Ram could be considered a symbol of Gyan - full of wisdom, tolerance, patience, love, kindness, and sympathy, along with a sense of morality.
Devi Sita is a symbol of Bhakti or devotion - who leaves her desires and luxuries to accompany Lord Ram (Gyan) - to follow his footsteps.

During the exile, after leaving the palace, they lived in forests without any luxuries or even simple household facilities. Though they did not have much, they seemed to be very happy and comfortable for most of their exile; meeting ordinary people and enjoying the company of learned Rishis and Sages as well.

But then… one day Devi Sita saw a golden deer, and the problems started when she became obsessed with the desire to have it.
The ‘Golden deer’ is a symbol of ‘Maya.
Lord Ram - Gyana tried to convince Sita, the Bhakti, that the Golden deer is a mirage; it’s an illusion, and she should not get attached to it.
Looking at it, enjoying and admiring its beauty would have been alright, but Devi Sita wanted to possess it.
She eventually convinced Lord Ram to go after it and bring it to her.

For practical purposes, even today, this story could be related to the life of many spiritual seekers.
When a Gyani Bhakta becomes obsessed with Maya, Gyana tries to constrain him by reminding that all Maya is transitory, and its obsession may become a distraction and take him away from his aim to achieve the Moksha, the Ultimate Freedom.
The desiring Bhakta tries to find logic to justify his desires; by reasoning that Bhakti does not mean living in isolation with no desires or comforts. That a Bhakta can be rich and own everything he desires - live a luxurious life, and still maintain his devotion and spirituality.

In fact, this logic is not wrong at all.
We can find many Gurus, Rishis, Avatars, and highest spiritual icons such as Lord Krishna and Maharaj Janak, who lived a rich and luxurious lifestyle, and some of them even ruled as kings.
However, if this ideology is used as a justification for excessive desires and wrong means to achieve them, it becomes a problem.

Their companion Lakshman - a symbol of Tyaga - discipline, strength, and self-restraint - was always guarding and protecting both; Lord Ram and Devi Sita with his watchful eyes.
He drew a circle - a boundary line around Sita ji to protect her.
And the moment Devi Sita crossed that Laxman-Rekha, she got kidnapped.

Contentment is an essential part of Bhakti.
Desires and wants, and the means to fulfill them must remain within the Lakshman-Rekha, the Maryada.
However, ‘Lakshman Rekha’ or Maryaada does not mean just to control desires and attachments.
As Bhapa Ram Chand ji used to say - it is actually the means; the ways how we try to achieve and fulfill our desires. 

Baba Avtar Singh Ji used to emphasize the virtues of honesty and truthfulness in how we live; how we earn and spend our money.
In his discourses, he often used to say: “Do not lie, do not cheat anyone, earn your money with honest means. 
Do not try to harm anyone – even if they have done some wrong to you”.
I remember him and Bhai Sahib Amar Singh Ji Patiala quoting this verse from the Gurbani many times:
                          "हक़ पराया नानका उस सूअर, उस गाय"
                     "Haq paraaya Nanakaa, us soo-ar us gaaye"
Meaning:
To take away what rightfully belongs to someone else is like a Muslim eating pork meat or a Hindu eating a cow.

Unfortunately, we are hardly reminded anymore about the importance of keeping these codes of conduct, the Maryaada, to make our spiritual journey smooth and to maintain our Bhakti in its pure form.
If excessive desires and attachments - and the ways to fulfill them are wrongfully justified with the Gyana, then the Gyana itself gets lost.

When Lord Ram, persuaded and convinced by Sita, goes after the Golden deer, their happy and peaceful life in exile turns into chaos.
Devi Sita is kidnapped, and Lord Ram is also lost - wandering from forest to forest searching for her.

To be reunited - to bring Sita back, the golden Lanka had to be burnt, and Ravan had to be defeated.
Just like Ram and Sita - Gyana and Bhakti cannot achieve Divine Bliss without each other. 
They have to stay together in their purest forms to achieve ever-happiness and Moksha - the ultimate freedom. 

To bring the Bhakti back - the golden Lanka, a symbol of Maya - has to be burnt, and Ravan; the icon of Ego, revenge, and jealousy - must be killed.
                                           ' Rajan Sachdeva '

Sunday, November 15, 2020

Deepavali - The Festival of Lights around the world

Every culture, all over the world, in some way, celebrates the festival of lights. 

Christians all over the world celebrate Christmas by illuminating lights.
Jews celebrate Hanukkah by lighting candles.
Native Americans also have similar festivals of lights.
Native Americans also have similar festivals of lights.
In Brazil, people go to the beach at midnight on New Year’s eve to pray to Lemanja, the African goddess and lit hundreds of candles in the sand.
And many others such as St. Lucia’s Day in Sweden, St. Martin’s day in Holland, and Loi-Krathong in Thailand.

Every Indian religion also celebrates Deepavali, more commonly known as Diwali, though they might attach a different reason behind it. 

Since the beginning of time, humanity has been fascinated by the light and power of the sun. 
All the great cultures of the past recognized the sun as the very source and sustainer of life. 
Hence the sun was considered the highest among gods in ancient Greek, Roman, and eastern religions, such as Hinduism and Zoroastrianism. 
Every ancient religion worshiped either the sun or its symbol; fire. 

However, rituals and cultural traditions are usually symbolism.
They usually have another deeper meaning, which, over time, gets lost or forgotten.
 
Light and fire are associated with knowledge.
We cannot see clearly in the dark. We need light in the physical world to see and find things.
Similarly, the light of knowledge Gyana is required in the mental and spiritual fields to understand things properly and to travel on the path of spirituality.

So the real purpose of Deepavali (Diwali) or any other festival of lights is to remind us of the need for Gyana, the light of knowledge, to illuminate our minds. 

Knowledge is light.
The light of knowledge helps us to find the Truth.
And Truth can set us free. 

A beautiful prayer from the Vedas: 
Not asking for health, wealth, or prosperity but:
                                   Tamaso Ma Jyotirgamaya
                                   Asato Ma Sadgamaya 
                                   Mrityur Ma Amritam Gamaya
Meaning:
Lead me from darkness to light.    
Lead me from Falsehood to Truth.  
Lead me from mortality to immortality - from bondage to freedom.
                                                    ‘Rajan Sachdeva’

Saturday, November 14, 2020

दिवाली मुबारकबाद Diwali Mubaarkbaad

जशने-चिराग़ाँ के मुक़द्दस मौके पर शमीमे-कल्ब‌ के साथ दिली‌ मुबारक बाद कबूल फरमाएं।  

झिलमिलाते हुए चिराग़-ए-मुतबरिक‌ की तजल्ली‍ से आपके‌ दौलतख़ाने का हर गोशा‌ ज़ियाबार हो।

दीपावली की पहली मौज-ए-नसीम के साथ आप का दामन मुहब्बत की खुशबू के अहसास से मालामाल हो। 

बारगाहे‌ सुमादी‌ आपको आसमान की बुलंदियां अता‌ करे। 

                           दिवाली मुबारकबाद

Jashne-chiraagaan kay muqaddas maukay par shameem-e-kalb‌ kay saath dilee‌ mubaarak baad kabool farmayen

Jhilmilaatay huye chiraag-e-mutabarik‌ ki tajallee‍ say aap kay‌ daulat-khaanay ka har gosha‌ ziyaabaar ho

Deepavali ki pehli mauj-e-naseem kay saath aap ka daaman muhabbat ki khushbu kay ehsaas say maalamaal ho 

Baargaah-e- sumaadi‌ aap ko aasmaan ki bulandiyaan ataa‌ karay

                                Diwali Mubaarkbaad

Friday, November 13, 2020

Ab kay Diwali hum aisay manaayen

 

Ab kay Diwali hum aisay manaayen 
Gyan kay deepak man mein jalaayen

Gyaan ki jyoti man mein jalaa kar 
Agyaanta ka andheraa mitayen 

Apnay gharon ko raushan karen par 
Auron kay ghar kay diye na bujhaayen 

Deepak jalaayen naye chaahay lekin 
Jo bujh rahay hain unhen bhi bachayen

Ab kay Deewali pay baahar na nikalen 
Ghar mein hee baith kay utsav manayen 

Ghar ko sajaana bhee theek hai lekin 
Divya - gunon say  jeevan sajaayen 

Tohfay ameeron ko denay kay badlay 
Gareebon kay ujday gharon ko basayen 

Mithai kay badlay mein is baar yaaro 
Rishton - sambandhon ko meetha banayen 

Agar baantana hee zaruri hai kuchh,to 
Chalo deen dukhiyon kay dard bantayen 

Giraayen nahin - balki unchaa uthayen 
Chhotay - baday ko galay say lagayen 

Lakshmi kee pooja mein hee magn ho kar 
Dekho - Naraayan ko na bhool jaayen 

Ujjval ho man Gyan kee raushni say 
'Rajan' Diwali hum aisay manayen 

'Rajan' Diwali hum aisay manayen
Gyaan kay deepak man mein jalayen 
                   ' Rajan Sachdeva '        

अबके दीवाली हम ऐसे मनाएँ

अबके दीवाली हम ऐसे मनाएँ 
ज्ञान के दीपक मन में जलाएं 

ज्ञान की ज्योति मन में जला कर 
अज्ञानता का अँधेरा मिटाएं 

अपने घरों को रोशन करें पर 
औरों के घर के दिए न बुझाएं 

दीपक जलाएं नए चाहे लेकिन 
जो बुझ रहे हैं उन्हें भी बचाएं 

अबके दीवाली पे बाहर न निकलें 
घर में ही बैठ के उत्सव मनाएं 

घर को सजाना भी ठीक है लेकिन 
दिव्य -गुणों से  जीवन  सजाएं 

तोहफ़े अमीरों को देने के बदले  
ग़रीबों के उजड़े घरों को बसाएं 

मिठाई के बदले में इस बार यारो 
रिश्तों - संबंधों को मीठा बनाएं 

अगर बाँटना ही ज़रुरी है कुछ,तो 
चलो  दीन दुखियों  के दर्द बंटाएं 

गिराएं नहीं - बल्कि ऊँचा उठाएं 
छोटे - बड़े को गले से लगाएं 

लक्ष्मी की पूजा में ही मगन हो कर  
देखो  - नारायण को न भूल जाएं 

उज्ज्वल हो मन ज्ञान की रौशनी से 
'राजन 'दीवाली हम ऐसे मनाएँ  

'राजन 'दीवाली हम ऐसे मनाएँ  
ज्ञान  के दीपक मन में जलाएं 
                ' राजन सचदेव  '

A True Gyani always remains Humble

The process of learning never ends. 
There is always some more to learn - because there is so much more that we do not know. 
Therefore, a wise person always remains a learner.
They are always willing to learn at every moment, from everyone - in every situation. 
The more they know, the more they realize that there is so much more yet to learn. 

That is why true Gyanis always remain humble. 
They do not feel proud of being a Gyani or a spiritual being. 
They do not think that they are superior to others because of the Gyan - the knowledge they possess. 

Instead, they are always praying and asking for forgiveness by saying: 
                        "Main Teri Sharan, Menu Baksh Lo." 
As Sadguru Kabeer ji said: 
                    Kabeer garab na keejiye, Rank naa hassiye koye
                    Ajahoon Naav Samund me, Kya janay kya Hoye 

                     कबीर गरब ना कीजिये , रंक ना  
हस्सीएकोय 
                       अजहूँ  नाव समुंद में , क्या जाने  क्या होय 

Kabeer ji says, do not be proud and laugh at others.
Do not criticize and make fun of them because they don't know what you know. 
How can a boat floating in the middle of the ocean claim that it has reached its destination?  
Who knows what will happen during the rest of the journey? 
Therefore, concentrate on your own journey - without being prejudice and critical of others.
                                ' Rajan Sachdeva '

Thursday, November 12, 2020

अरमान अभी बाक़ी हैं Armaan abhi Baaki hain


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हसरतें हैं अभी - अरमान अभी बाक़ी हैं
दिल को बहलाने के सामान अभी बाक़ी हैं

ढ़ल चुकी शाम  ख़त्म हो गया किस्सा-ऐ-ग़म
दिल में गो - ज़ख्मों के 
निशान अभी बाक़ी हैं

दुश्मनों ने जो किया वो तो भुला दिया मैंने
दोस्तों के मगर अहसान अभी बाक़ी हैं

ज़िंदगी की राह में खोया है क्या पाया है क्या 
ये फ़साने ऐ दिले-नादान अभी बाक़ी हैं

उम्र भर पढ़ते रहे, सुनते रहे, कहते रहे
लौह-ए-ज़िंदगी पे इम्तेहान अभी बाक़ी हैं 

न मिलीं बुलंदियां नाकामियां मिलीं तो क्या 
मंज़िलों को पाने के  इमकान अभी बाक़ी हैं 
                      
थक गई है ज़िंदगी, अरमां भी सो गए 'राजन '
जाने क्यों वहम और गुमान अभी बाक़ी हैं

                               ' राजन सचदेव  '

Hasraten hain abhi, armaan abhi baaki hain
Dil ko behlaanay kay samaan abhi baaki hain

Dhal chuki shaam, khatm ho gaya kissa-e-gham
Dil me go, zakhmon kay nishaan abhi baaki hain

Dushmanon nay jo kiya wo to bhula diya mainay
Doston kay magar ehsaan abhi baaki hain

Zindgi ki raah me khoya hai kya paaya hai kya
Ye fasaanay ae dil-e-nadaan abhi baaki hain

Umar bhar padhtay rahe, suntay rahy, kehtay rahay
Loh-e-zindgi pay imtehaan abhi baaki hain

Na milin bulandiyaan, nakaamiyaan milin to kya
Manzilon ko paanay kay imkaan abhi baaki hain

Thak gayi zindagi, armaan bhi so gaye 'Rajan '
Jaany kyon veham aur gumaan abhi baaki hain
                      ' Rajan Sachdeva '

Loh-e-zindgi  =    On the slate of life
Imkan             =     Possibilities

Everyone has the power

Everyone has the power to make others happy. 

Some do it by entering the room, others by leaving it.

​​हर व्यक्ति किसी न किसी रुप में दूसरों की ख़ुशी का कारण हो सकता है  

किसी के आने से ख़ुशी होती है - 

और किसी के चले जाने से 

Wednesday, November 11, 2020

राफ़्ता सब से है लेकिन Raaftaa sab say hai lekin

 मुख़्तसर लफ़्ज़ों में है अब ये मिजाज़े -ज़िंदगी 

राफ़्ता सब से है लेकिन वास्ता किसी से नहीं  

                                                                    (अज्ञात )

Mukhtsar lafzon me hai ab ye mijaaz-e-zindagi

Raaftaa sab say hai lekin vaasta kisi say nahin 

                                                   (Unknown writer) 

Mukhtsar     -    Brief, in Short 

Raaftaa        -    Acquaintance, Contact, Association

Vaasta          -  Attachment, concern, Relationship (Expectations)

Snake and the Saw

A snake entered a carpenter's workshop. 
While crawling, it passed over a saw and got slightly injured. Suddenly, it turned and bit the saw. 
And by biting the saw, the snake seriously got wounded in its mouth.
Then thinking that the saw was attacking him, it decided to roll around the saw to suffocate it by squeezing it with its body - with all its strength. 
But by clutching the saw, it ended up being killed.

Sometimes we react in anger the same way - to hurt those who have harmed us.
But we realize later that we are actually hurting ourselves more than anyone else.
Therefore, sometimes it is better not to react.
Sometimes it might be better to ignore situations - ignore people - their words and behavior. 
After all, it's not worth punishing ourselves by losing our own peace of mind - and blocking our own growth and advancement. 
We have no control over what other people say or do, but we can choose how to react to the situation - we can try to control our reaction. 

Sometimes, silence is the best reaction. 

Silence - not only outwardly, but within the mind as well. 

Tuesday, November 10, 2020

Immortality ......

Knowing that life continues in some form is immortality.

Just as matter can not diminish altogether - 
it only changes its structure, consciousness too never dies and continues in a new form - or without any form. 

However, with form, comes the feeling of pain, suffering, and joy. 
The purpose of spirituality and all religions is not to achieve immortality - but to attain freedom from pain and suffering. 

Bhagavad Geeta and all other ancient Indian scriptures ask us to practice this state of mind - being free from suffering and joy - in this current lifetime. 
                  
                                                                          ' Rajan Sachdeva '

What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...