Monday, December 10, 2018

Supreme Lord neither rewards nor punishes

                         नादत्ते कस्य  चित्तपापं , न चैव सुकृतं विभु:
                        अज्ञानेन आवृतं ज्ञानं, तेन मुह्यन्ति जन्तव:
                                                                  (भगवद गीता 5/ 15)
                     Nadattay kasya chittpaapam , Na chaiva sukritam vibhuh
                    Agnanen aavrutam gnanam, tena muhyanti jantavah

 "The Supreme Lord neither punishes anyone for their sins,

Nor He rewards for their good deeds. 
Gyaana, the knowledge is enveloped/covered by ignorance -Thereby all beings are deluded". 
                                                                  (Bhagavad Gita 5 /15)

According to Bhagavad Geeta, it's our Karma - our actions that bring the outcome, not some higher power sitting somewhere up in the sky and randomly deciding our fate.
Our own Karma or actions are responsible for the good or bad consequences.
"As you sow, so shall you reap" is the basic principle of the Karma theory.
Guru Nanak sahib also promoted the same ideology:

                                "Punni Papi Akhan Nahin
                                 Kar Kar Karna Likh Lai Jahu
                                 Aape Beej Aape He Khahu
                                 Nanak Hukmi Avoh Jahu"
"Mere utterances do not make vicious or virtuous
It is the actions that get recorded.
Thus what we sow is what we reap
By the order, Nanak (says) we come and go"
                                     (Japuji Sahib - Pauri 20)

Hukam is the 'order' - the principle.... mentioned in the previous line, that is: "what we sow is what we reap".
Some people translate Hukami as "will of God". 
In that case, the first line would not make much sense.

 'Aapay beej aapay hi khahu' is a very clear message about the Karma theory... 
Exactly same as explained in Bhagavad Geeta. 
Therefore, instead of blaming the Supreme Lord for everything that happens, 
we should pay attention to our Karma - our action - our deeds.

                                                        'Rajan Sachdeva '

2 comments:


  1. कोई ना काहू का सुख दुःख कर दाता ,

    निज कृत कर्म .....

    सब अपने कर्मों का खाते हैं सुख भी मैंने कमाएं हैं दुःख भी मेरे सुख दुःख का उत्तर-दायित्व मेरा सिर्फ मेरा है। बहुत सार गर्भित व्याख्या की है आपने पांचवें अध्याय के पन्द्रहवें श्लोक की।

    पुनि पापी आखा नाही ,

    कर कर लिख ले जाओ ,

    आप बीजे आप खाओ ,

    नानक हुकमी आवो जाओ।

    यहां भी भाव यही है अलबत्ता गुरुग्रंथ साहब में आयाम यहां यह और जुड़ गया है -सब कुछ उसके हुकुम के तहत हो रहा है। जब तक इच्छाएं बकाया हैं एषणा बाकी हैं आना जाना लगा रहेगा जब तक के जीव आप्त काम (इच्छों से मुक्त ) न हो जावे।
    जयश्रीकृष्ण !सत्श्रीअकाल !

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  2. कोई ना काहू का सुख दुःख कर दाता ,

    निज कृत कर्म .....

    सब अपने कर्मों का खाते हैं सुख भी मैंने कमाएं हैं दुःख भी मेरे सुख दुःख का उत्तर-दायित्व मेरा सिर्फ मेरा है। बहुत सार गर्भित व्याख्या की है आपने पांचवें अध्याय के पन्द्रहवें श्लोक की।

    पुनि पापी आखा नाही ,

    कर कर लिख ले जाओ ,

    आप बीजे आप खाओ ,

    नानक हुकमी आवो जाओ।

    यहां भी भाव यही है अलबत्ता गुरुग्रंथ साहब में आयाम यहां यह और जुड़ गया है -सब कुछ उसके हुकुम के तहत हो रहा है। जब तक इच्छाएं बकाया हैं एषणा बाकी हैं आना जाना लगा रहेगा जब तक के जीव आप्त काम (इच्छों से मुक्त ) न हो जावे।
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