Wednesday, December 12, 2018

दिल है कि फिर भी गिला करता रहा

ज़िंदगी में सब कुछ तो  मिलता रहा 
दिल है कि फिर भी गिला करता रहा 

बिरवा मेरे आँगन का मुरझा  गया 
सहरा में इक फूल मगर खिलता रहा 

बातिन-ओ-ज़ाहिर न यकसाँ हो सका 
कशमकश का सिलसिला चलता रहा

औरों को देते  रहे  नसीहतें 
आशियां अपना मगर जलता रहा 

माज़ी का रहता नहीं उसको मलाल 
वक़्त के सांचे में  जो ढ़लता  रहा 

पा सका न वो कभी 'राजन ' सकूँ 
जो हसद की आग में जलता रहा 
                       ' राजन सचदेव '

बिरवा                                पेड़  Tree
सहरा                                रेगिस्तान, Desert
बातिन-ओ-ज़ाहिर             अंदर-बाहर  In & out - Thoughts & actions
यकसाँ                              एक जैसा  Same, similar, as one
माज़ी                               भूतकाल Past
मलाल                             अफ़सोस Regret
हसद                               ईर्ष्या, Jealousy



1 comment:

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