बचपन में जब हम प्रतिदिन सुबह सुबह उठ कर भगवद गीता एवं उपनिषदों का पाठ करने के बाद पूजा-अर्चन इत्यादि करते थे तो अन्य मंत्रों के साथ इस मंत्र का भी उच्चारण किया जाता था -
शुभम् करोति कल्याणं, आरोग्यं धन संपदाम्।
शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीपम् ज्योति नमोस्तुते।।
साधारणतया कुछ लोग इस का अर्थ इस प्रकार करते हैं कि प्रतिदिन इस मंत्र का पाठ करने से और ज्योति को प्रणाम करने से -
जीवन में कल्याण होगा - शरीर आरोग्य रहेगा और धन सम्पदा की प्राप्ति होगी।
शत्रु की बुद्धि का विनाश हो जाएगा अर्थात आपके शत्रु कमज़ोर हो जाएंगे।
परन्तु विचार करने वाली बात ये है कि धर्म शास्त्रों का सम्बन्ध शरीर से नहीं बल्कि आत्मा एवं मन से है। इसलिए इन मंत्रों का अर्थ भी आध्यात्मिक द्रिष्टि से ही करना चाहिए - सांसारिक द्रिष्टि से नहीं।
पुरातन हिन्दू शास्त्रों में ऐसे असंख्य मंत्र मिलेंगे जो ये समझाते हैं कि ज्ञान का दीपक जलने के बाद - प्रज्वलित होने के बाद एक ज्ञानी मनुष्य के जीवन में क्या परिवर्तन आता है। इस मंत्र में भी पुरातन ऋषियों ने यही समझाया है - -
शुभम् करोति कल्याणं - -
जिसके हृदय में ज्ञान की ज्योति जल जाती है वह हमेशा शुभ कार्य करता है - कल्याण कारी कार्य करता है अर्थात कभी कोई बुरा काम नहीं करता - न किसी का बुरा सोचता है और न ही किसी का बुरा करता है।
आरोग्यं - -
ज्ञान रूपी दीपक की ज्योति मन को आरोग्य करती है - अर्थात काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार एवं मत्सर इत्यादि रोग नष्ट हो जाते हैं।
मन आरोग्य हो तो शरीर भी बहुत हद तक आरोग्य - अर्थात रोग रहित ही रहता है।
धन संपदाम् - -
अर्थात ज्ञान का दीपक धन सम्पदा भी प्रदान करता है -
जब भी - जहां भी धन सम्पदा का नाम आता है तो हमारा ध्यान सहज ही सांसारिक धन सम्पदा की तरफ चला जाता है। लेकिन धर्म शास्त्रों का संबध सांसारिक अथवा शारीरिक सम्पदा से नहीं बल्कि आध्यात्मिक सम्पदा से है। ज्ञान का दीपक मन की सम्पदा अर्थात विनम्रता, विश्वास, सबर, धैर्य, सन्तोष एवं शांति आदि की सम्पदा प्रदान करता है।
गोधन, गजधन, बाजधन और रतन धन खान
जब आवै संतोष धन - सब धन धूरि समान
ज्ञानी अपने मन में धीरज, सब्र, संतोष एवं विनम्रता की सम्पदा इकट्ठी करता है और ज्ञान को सन्मुख रखते हुए - धर्म का ध्यान रखते हुए मेहनत और ईमानदारी के साथ धन कमाते हुए संसार में भी सुख एवं शांति पूर्वक रहता है।
शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीपम् ज्योति नमोस्तुते - -
ज्ञान का दीपक जलता है तो अपने मन से शत्रुता का भाव नष्ट हो जाता है - सभी अपने बन जाते हैं।
"न कोई बैरी नाहि बेगाना, सकल संग हम कउ बन आई" का भाव पैदा हो जाता है।
उपरोक्त मंत्र में जहां ज्ञान रुपी ज्योति की महिमा का वर्णन है वहीं कृतज्ञता का भाव भी है कि जिस ज्योति के जलने से मन और बुद्धि से शत्रुता का भाव नष्ट हो जाता है ऐसे ज्ञान रूपी दीपक की ज्योति को नमन है।
इन मंत्रों का महत्त्व केवल पढ़ने अथवा पाठ करने में नहीं बल्कि इनका सही अर्थ समझ कर इन पर आचरण करने में है।
' राजन सचदेव '
शुभम् करोति कल्याणं, आरोग्यं धन संपदाम्।
शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीपम् ज्योति नमोस्तुते।।
साधारणतया कुछ लोग इस का अर्थ इस प्रकार करते हैं कि प्रतिदिन इस मंत्र का पाठ करने से और ज्योति को प्रणाम करने से -
जीवन में कल्याण होगा - शरीर आरोग्य रहेगा और धन सम्पदा की प्राप्ति होगी।
शत्रु की बुद्धि का विनाश हो जाएगा अर्थात आपके शत्रु कमज़ोर हो जाएंगे।
परन्तु विचार करने वाली बात ये है कि धर्म शास्त्रों का सम्बन्ध शरीर से नहीं बल्कि आत्मा एवं मन से है। इसलिए इन मंत्रों का अर्थ भी आध्यात्मिक द्रिष्टि से ही करना चाहिए - सांसारिक द्रिष्टि से नहीं।
पुरातन हिन्दू शास्त्रों में ऐसे असंख्य मंत्र मिलेंगे जो ये समझाते हैं कि ज्ञान का दीपक जलने के बाद - प्रज्वलित होने के बाद एक ज्ञानी मनुष्य के जीवन में क्या परिवर्तन आता है। इस मंत्र में भी पुरातन ऋषियों ने यही समझाया है - -
शुभम् करोति कल्याणं - -
जिसके हृदय में ज्ञान की ज्योति जल जाती है वह हमेशा शुभ कार्य करता है - कल्याण कारी कार्य करता है अर्थात कभी कोई बुरा काम नहीं करता - न किसी का बुरा सोचता है और न ही किसी का बुरा करता है।
आरोग्यं - -
ज्ञान रूपी दीपक की ज्योति मन को आरोग्य करती है - अर्थात काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार एवं मत्सर इत्यादि रोग नष्ट हो जाते हैं।
मन आरोग्य हो तो शरीर भी बहुत हद तक आरोग्य - अर्थात रोग रहित ही रहता है।
धन संपदाम् - -
अर्थात ज्ञान का दीपक धन सम्पदा भी प्रदान करता है -
जब भी - जहां भी धन सम्पदा का नाम आता है तो हमारा ध्यान सहज ही सांसारिक धन सम्पदा की तरफ चला जाता है। लेकिन धर्म शास्त्रों का संबध सांसारिक अथवा शारीरिक सम्पदा से नहीं बल्कि आध्यात्मिक सम्पदा से है। ज्ञान का दीपक मन की सम्पदा अर्थात विनम्रता, विश्वास, सबर, धैर्य, सन्तोष एवं शांति आदि की सम्पदा प्रदान करता है।
गोधन, गजधन, बाजधन और रतन धन खान
जब आवै संतोष धन - सब धन धूरि समान
ज्ञानी अपने मन में धीरज, सब्र, संतोष एवं विनम्रता की सम्पदा इकट्ठी करता है और ज्ञान को सन्मुख रखते हुए - धर्म का ध्यान रखते हुए मेहनत और ईमानदारी के साथ धन कमाते हुए संसार में भी सुख एवं शांति पूर्वक रहता है।
शत्रु बुद्धि विनाशाय, दीपम् ज्योति नमोस्तुते - -
ज्ञान का दीपक जलता है तो अपने मन से शत्रुता का भाव नष्ट हो जाता है - सभी अपने बन जाते हैं।
"न कोई बैरी नाहि बेगाना, सकल संग हम कउ बन आई" का भाव पैदा हो जाता है।
उपरोक्त मंत्र में जहां ज्ञान रुपी ज्योति की महिमा का वर्णन है वहीं कृतज्ञता का भाव भी है कि जिस ज्योति के जलने से मन और बुद्धि से शत्रुता का भाव नष्ट हो जाता है ऐसे ज्ञान रूपी दीपक की ज्योति को नमन है।
इन मंत्रों का महत्त्व केवल पढ़ने अथवा पाठ करने में नहीं बल्कि इनका सही अर्थ समझ कर इन पर आचरण करने में है।
' राजन सचदेव '
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