Thursday, January 25, 2018

सब को ये ग़ुमां है कि हम Sab ko ye guman hai ki hum

सब को ये ग़ुमां है  कि हम भी हैं कोई चीज़  
मुझको है ये नाज़  कि मैं कुछ भी नहीं हूँ 

Sab ko ye guman hai ki hum bhi hain koi cheez 
Mujhko hai ye naaz ki main kuchh bhi nahin hoon 


1 comment:

नदी और सागर

युगों युगों से पर्वतों से नदियाँ बहती आई हैं चट्टानें भी  रास्ता  उनका  न रोक पाई हैं  नाचती उछलती और शोर मचाती हुई  अपना रास्ता वो ख़ुद-ब-ख़ु...