मुरझाये से चेहरे पर
कुछ आड़ी, कुछ तिरछीं
कुछ हल्की, कुछ गहरी
स्याह सी लकीरें
खिचड़ी जैसे बाल
हाल से बेहाल
थका हारा तन
उदास मन
न आँखों में चमक
न मुँह पे रौनक़
ये कौन है ?
जो आज मेरे सामने
आईने में बैठा है ?
वो कहाँ गया?
जो कुछ बरस पहले
मेरे आईने में आता था
हँसता था - मुस्कुराता था
अब तो बदला बदला सा
सभी कुछ हो गया
वो न जाने किस जहाँ में खो गया ?
देखते ही देखते
सब कुछ बदल गया
कुछ खो गया -
कुछ मिल गया
आज भी लेकिन पुरानी -
कुछ खट्टी कुछ मीठी
यादों से लिपट के रहता हूँ
आसपास के कोलाहल से तंग आकर
अपने आप में सिमट के रहता हूँ
दुनिया की इस भीड़ भाड़ में भी --
अक़्सर अकेला रहता हूँ
कभी कभी निराशा का
कोई गहरा बादल छा जाता है
तो उदास मन को
और उदास कर जाता है
आँख बरसने लगती है
जी घबराता है
बंधा हुआ हो पंछी जैसे कोई पिंजरे में
अनजाने - अनदेखे झूठे बंधनों में
बंधा हुआ मन छटपटाता है
तब यकायक आशा की इक धुंधली सी -
मन के गहरे अंतस्तल के
किसी कोने में छुपी हुई -
किरण कोई लहराती है
और इन फीकी आँखों में भी
चमक सी आ जाती है
खिचड़ी जैसे बालों में
कुछ रंगत आने लगती है
मुरझाए चेहरे पे भी तब
धीरे धीरे
हल्की हल्की
मीठी सी मुस्कान
नाचने लगती है
'राजन सचदेव '
कुछ आड़ी, कुछ तिरछीं
कुछ हल्की, कुछ गहरी
स्याह सी लकीरें
खिचड़ी जैसे बाल
हाल से बेहाल
थका हारा तन
उदास मन
न आँखों में चमक
न मुँह पे रौनक़
ये कौन है ?
जो आज मेरे सामने
आईने में बैठा है ?
वो कहाँ गया?
जो कुछ बरस पहले
मेरे आईने में आता था
हँसता था - मुस्कुराता था
अब तो बदला बदला सा
सभी कुछ हो गया
वो न जाने किस जहाँ में खो गया ?
देखते ही देखते
सब कुछ बदल गया
कुछ खो गया -
कुछ मिल गया
आज भी लेकिन पुरानी -
कुछ खट्टी कुछ मीठी
यादों से लिपट के रहता हूँ
आसपास के कोलाहल से तंग आकर
अपने आप में सिमट के रहता हूँ
दुनिया की इस भीड़ भाड़ में भी --
अक़्सर अकेला रहता हूँ
कभी कभी निराशा का
कोई गहरा बादल छा जाता है
तो उदास मन को
और उदास कर जाता है
आँख बरसने लगती है
जी घबराता है
बंधा हुआ हो पंछी जैसे कोई पिंजरे में
अनजाने - अनदेखे झूठे बंधनों में
बंधा हुआ मन छटपटाता है
तब यकायक आशा की इक धुंधली सी -
मन के गहरे अंतस्तल के
किसी कोने में छुपी हुई -
किरण कोई लहराती है
और इन फीकी आँखों में भी
चमक सी आ जाती है
खिचड़ी जैसे बालों में
कुछ रंगत आने लगती है
मुरझाए चेहरे पे भी तब
धीरे धीरे
हल्की हल्की
मीठी सी मुस्कान
नाचने लगती है
'राजन सचदेव '
Effective reflection of the reality of life
ReplyDelete