इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिलें
परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिलें
'अज्ञात (Unknown)
इन्सां की ख़्वाहिशों की कोई इन्तहा नहीं
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ क़फ़न के बाद
'अहमद फ़राज़ '
अङ्गम गलितं पलितं मुण्डम - दशन विहीना जातम तुण्डं
वृद्धोयाती गृहीत्वा दण्डं - तदपि न मुंचति आशा पिण्डम
' आदि शंकराचार्य '
अर्थात:
शरीर के सब अंग गलने लगे (कमज़ोर हो गए ) सिर बालों से रहित - चेहरा पीला पड़ गया
मुँह दाँतों से ख़ाली हो गया
बुढ़ापा आ गया - चलने के लिए हाथ में लाठी पकड़नी पड़ गई
लेकिन आशा तब भी पीछा नहीं छोड़ती
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