Monday, January 15, 2018

ख़्वाहिशों की कोई इन्तहा नहीं

इन्सान की चाहत है कि उड़ने को पर मिलें 
परिंदे सोचते हैं कि रहने को घर मिलें 
                              'अज्ञात (Unknown)

इन्सां की ख़्वाहिशों की कोई इन्तहा नहीं 
दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ क़फ़न  के बाद 
                           'अहमद फ़राज़ '

अङ्गम गलितं पलितं मुण्डम - दशन विहीना जातम तुण्डं 
वृद्धोयाती गृहीत्वा दण्डं - तदपि न मुंचति आशा पिण्डम 
                                                    ' आदि शंकराचार्य '

अर्थात:

शरीर के सब अंग गलने लगे (कमज़ोर हो गए ) सिर बालों से रहित - चेहरा पीला पड़ गया 
मुँह दाँतों  से ख़ाली  हो गया 
बुढ़ापा आ गया - चलने के लिए हाथ में लाठी पकड़नी पड़  गई 
लेकिन आशा तब भी पीछा नहीं छोड़ती 




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Jo Bhajay Hari ko Sada जो भजे हरि को सदा सोई परम पद पाएगा

जो भजे हरि को सदा सोई परम पद पाएगा  Jo Bhajay Hari ko Sada Soyi Param Pad Payega