Wednesday, January 10, 2018

परम आनन्द

कुछ पत्थर के टुकड़ों को 
               सोने से मढ़ दिया अगर 
तो क्या किया ?
माना - कि 
बाहर का सोना तो चमकेगा, मगर 
     अंदर का पत्थर भी चमक जायेगा क्या?

 बोतल के बाहर चिपका दें 
             लेबल अमृत का अगर 
अंदर भरा हुआ है जो उस में ज़हर 
                  वो भी अमृत बन जायेगा क्या ?

बाहर जिस्मों को सजाया 
                   ख़ूब सँवारा और शिंगारा 
 सुंदर तो लगता है लेकिन -
 जीवन सुखमय क्या होगा जो मन को न निखारा?

तन और मन दोनों हों सुंदर 
            जो हो बाहर - वही हो अंदर 
निर्मल मन की बगिया में ही 
               विशुद्ध प्रेम का फूल खिलेगा 

जब ज्ञान-दीप अनवरत जलेगा 
               तब 'ऱाजन' परम आनन्द मिलेगा 

                                          ' राजन सचदेव '       

5 comments:

  1. Beautiful poem....Dhan Nirankar ji

    ReplyDelete
  2. Noble words. Whether wE sincerely wants to Attain this blissful position For soul oN the basis Of hearsayings Of the past and present

    ReplyDelete

झूठों का है दबदबा - Jhoothon ka hai dabdabaa

अंधे चश्मदीद गवाह - बहरे सुनें दलील झूठों का है दबदबा - सच्चे होत ज़लील Andhay chashmdeed gavaah - Behray sunen daleel Jhoothon ka hai dabdab...