हम शैख़ न लीडर न मुसाहिब न सहाफ़ी
जो ख़ुद नहीं करते वो हिदायत न करेंगे
" फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ "
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मैं न तो कोई शेख़ (मुल्ला या मौलवी) हूँ, और न ही कोई लीडर (नेता)
न ही किसी राजा या शासक का कर्मचारी हूँ - और न ही पत्रकार।
मैं कभी भी किसी को वो करने की हिदायत नहीं दूंगा
जो मैं स्वयं नहीं करता या नहीं कर सकता।
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शेख़ = (अरबी शब्द) किसी सुल्तान द्वारा किसी अमीर जागीरदार को दिया हुआ उपनाम या ख़िताब।
जाति की तरह एक पारिवारिक उपनाम जो एक प्रतिष्ठित मुस्लिम खानदान में जन्म से संतान दर संतान चलता है।
ब्राह्मणों की तरह ही सैय्यद और शेख़ मुसलमानों में ऊंची जाति का सूचक है।
भारत और पाकिस्तान में ये मुल्ला या मौलवी का किरदार भी निभाते हैं जो अपने गाँव या नगर में मज़हब की तालीम के साथ साथ एक जज की तरह लोगों के निजी फ़ैसले भी करवाते हैं।
मुसाहिब = किसी बादशाह या राजा का ख़ास खिदमतगार, ख़ुशामदी - परामर्शदाता, या वह अधिकारी जो जरनैल के आदेशों के वितरण और अनुपालन में सहायता करते हैं।
सहाफ़ी = पत्रकार