अभिमान को कभी आने मत दो -
और स्वाभिमान को कभी जाने मत दो ।
लेकिन अभिमान और स्वाभिमान का भेद और इनके अंतर को समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अभिमान कभी व्यक्ति को ऊपर उठने नहीं देता - ऊँचाई तक पहुँचने नहीं देता।
क्योंकि जो व्यक्ति हमेशा स्वयं में ही उलझा रहे - हमेशा स्वयं को ही सही और अपने आप को दूसरों से उत्तम मानता रहे तो उसके आगे बढ़ने और ऊपर उठने के रास्ते बंद हो जाते हैं।
वहीं स्वाभिमान व्यक्ति को कभी गिरने नहीं देता — क्योंकि वह विनम्रता तथा आत्मसम्मान में संतुलन बनाए रखता है।
लेकिन कई बार अभिमान और स्वाभिमान के बीच का अंतर इतना सूक्ष्म होता है कि उसे पहचान पाना सरल नहीं होता।
कभी हम सोचते हैं कि हम स्वाभिमान की रक्षा कर रहे हैं - पर वास्तव में अभिमान से ग्रस्त हो जाते हैं।
और कभी अभिमान त्यागने की प्रक्रिया में अपना स्वाभिमान भी खो बैठते हैं।
इसलिए आवश्यक है कि हम निरंतर सजग रहें और इन दोनों के सूक्ष्म अंतर को बारीकी से समझकर सावधानीपूर्वक चुनने का प्रयत्न करें।
कहीं ऐसा न हो कि हम अभिमान छोड़ते छोड़ते स्वाभिमान भी भी खो दें -
या स्वाभिमान समझ कर वास्तव में अभिमान ग्रस्त हो जाएं और अनजाने में ही पतन के मार्ग पर चल पड़ें।
अभिमान से दूर रहें, पर स्वाभिमान को हमेशा संभाले रखें।
इनके संतुलन में ही सच्चा उत्थान और जीवन की गरिमा निहित है।
" राजन सचदेव "
Like it but can you elaborate more how to differentiate between Those two situations
ReplyDelete👏👏👏🙏 ekdum such or bahut simple 🙏
ReplyDeleteIt's reality of life dhan nirankar ji
ReplyDeleteअभिमान और स्वाभिमान के अंतर को समझना वास्तव में बहुत जटिल कार्य है। ये एक ऐसा युद्ध है, जो कि हर व्यक्ति स्वयं से लड़कर स्वयं से जीत सकता है। इसमें किसी दूसरे का कोई हस्तक्षेप हो ही नहीं सकता।
ReplyDeleteशुक्रिया राजन जी 🙏