यदि हम चाहें तो अपने जीवन और आस पास के परिवेश - परिस्थितियों और माहौल को बदल सकते हैं और एक नया जीवन जी सकते हैं।
कैसे?
अपने सोचने के ढंग को बदलकर।
लेकिन, सोचने के ढंग को बदलने और सुधारने के लिए - जागरुकता की आवश्यकता है।
हमें स्वयं के बारे में बनाई हुई अपनी धारणा को बदलना पड़ेगा - वह छवि जो हमने अपने लिए अपने मन में बना रखी है, उसे बदलना पड़ेगा।
समस्या यह है कि हम अधिकतर हर चीज को अपने दृष्टिकोण से देखते हैं और अपने ढंग से उसका विश्लेषण करते हैं। स्वयं को हर चीज - हर घटना के केंद्र में रखकर - हम अपने आप को हर परिस्थिति में केंद्र मान कर सोचते हैं।
हम चाहते हैं कि हर बात, हर घटना हमारे हित में और हमारे हिसाब से होनी चाहिए ।
यदि हम अपने जीवन में सुधार करना चाहते हैं, तो हमें इस दृष्टिकोण को बदलने की आवश्यकता है।
हमें अपने आप को निष्पक्ष रुप से देखना शुरु करना होगा।
जैसा कि भारत के प्राचीन शास्त्र भगवद गीता और उपनिषद कहते हैं - साक्षी बनो।
जब हम साक्षी बनकर - दूर से - एक बाहरी व्यक्ति के रुप में अपने आप को देखेंगे तो ही हम अपनी वास्तविक तस्वीर देख पाएंगे।
और उसके बाद ही - हम अपने आप को ऊपर उठा सकते हैं - बेहतर बना सकते हैं।
' राजन सचदेव '
Very true
ReplyDeleteSatbachan ji
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