लेकिन उसे महसूस करने और जीवन का अंग बनाने के लिए अनुभव की आवश्यकता होती है।
और अनुभव - सिर्फ़ पढ़ने या सुनने से नहीं - पथ पर चलने से ही मिलेगा
इसलिए चलते रहिए -
लेकिन यह भी याद रहे कि जाना कहाँ है - किस रास्ते से - किस ओर - किस दिशा की तरफ चलना है।
मंज़िल तक पहुँचने के लिए रास्ते और दिशा का सही ज्ञान होना भी आवश्यक है।
ग़लत रास्ते पर चलने से मंज़िल नहीं मिलती - बल्कि हम मंज़िल से दूर निकल जाते हैं ।
यदि आध्यात्मिकता एवं आत्मिक शांति हमारा लक्ष्य है तो आवश्यक है कि हमारी सोच भी आत्मिक स्तर पर होनी चाहिए - न कि शारीरक और सांसारिक स्तर पर।
' राजन सचदेव '
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