Sunday, December 13, 2020

मौत की चर्चा क्यों ?

आज सुबह के ब्लॉग में लिखे एक शेर के जवाब में एक महात्मा का मैसेज मिला :
धन निरंकार संत जी,
आप हमेशा मौत के बारे में ही क्यों लिखते हैं ? जीवन के बारे में क्यों नहीं लिखते ?
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पहली बात -
मेरे अधिकतर लेख तो जीवन के बारे में ही होते हैं - लेकिन क्योंकि उनमें से अधिकांश English में होते हैं
इसलिए शायद वह हिंदी और पंजाबी पाठकों तक नहीं पहुंच पाते।

और दूसरी बात यह है कि मौत एक अपरिहार्य तथ्य - एक अटल सच्चाई है जिसे नकारा नहीं जा सकता।
इसीलिए सभी धर्म ग्रंथों ने मृत्यु को हमेशा याद रखने पर ज़ोर दिया है।

भगवान कृष्ण ने भगवद गीता के आरम्भ में ही अर्जुन को यह बात समझाने का प्रयास किया
                              जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु (2 -27)
अर्थात जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। 
समझ लो कि सब मरे ही हुए हैं - क्योंकि यदि भविष्य की दृष्टि से देखें - भविष्य में सौ डेढ़-सौ साल आगे जाकर देखें तो आज हमें जो भी दिखाई दे रहे हैं सब मरे हुए होंगे - मृत्यु को प्राप्त हो चुके होंगे। इसलिए मृत्यु से डरने की ज़रुरत नहीं है। 

जब मेरी माता जी को एहसास हुआ कि उनका अंतिम समय निकट है तो उन्होंने मुझे फ़ोन करके भारत आने के लिए कहा। मैं अगले दिन ही वहां उनके पास पहुँच गया। मुझे परेशान देख कर उन्होंने कहा - घबराने और डरने की कोई बात नहीं है। याद है कि बचपन में तुम्हें कहा जाता था कि परीक्षा से डरो नहीं - बल्कि ठीक से तैयारी करो।ठीक से तैयारी हो जाएगी तो परीक्षा का डर नहीं रहेगा।
बस इसी तरह मौत से डरने की ज़रुरत नहीं।
मैंने इसीलिए तुम्हें यहाँ बुलाया है कि मेरे इस नए सफ़र की तैयारी में मेरी सहायता करो और किसी डर - भय के बिना मुझे विदा करो।

हालाँकि भारत के सभी धर्म ग्रंथों ने बार बार इस बात का - अर्थात मौत से न डरने का ज़िकर किया है लेकिन बड़ी हैरानी की बात है कि अक़सर भारत के लोगों में ही मौत का ज़्यादा डर पाया जाता है।अमेरिका में आकर पहले पहल ये देख कर मुझे बहुत हैरानी हुई कि यहां के लोग - अर्थात क्रिश्चियन और कुछ मुस्लिम लोग भी जीते जी ही अपनी क़बर का इंतज़ाम स्वयं ही कर लेते हैं।
एक बार हमारे एक मित्र कंवर सधवाल जी ने बताया कि उनके एक अन्य ईसाई मित्र अपनी ही क़बर के लिए जगह खरीदने गए थे। 
वापिस आ कर कहने लगे कि जगह पसंद नहीं आई। 
कारण पूछने पर कहने लगे कि वो जगह हाईवे के बहुत क़रीब है। मुझे शांति पसंद है और वहां हमेशा गाड़ियों का शोर रहेगा। मैं आराम से सो नहीं पाऊंगा। इसलिए कोई और जगह देखूंगा। 

सुन कर पहले तो हंसी आई कि मौत के बाद क़बर में क्या कहीं शोर सुनाई देगा?
लेकिन फिर ध्यान आया कि स्वस्थ होते हुए भी पचास साल की उमर में ही उन्हें मौत का एहसास है और वह बिना किसी ख़ौफ़ के अपनी क़बर का इंतज़ाम कर रहे हैं। हमारे यहाँ तो मौत का नाम लेते ही लोग कांप जाते हैं और कहने लगते हैं कि ऐसी अशुभ बातें मत करो। 

शेख फ़रीद के कथन अनुसार :
                फ़रीदा गोर निमाणी सद्द करे निघरिआं घर आओ 
                सर पर एत्थे आवणा मौतों क्या डरआओ 
 
और यह भी सत्य है कि मृत्यु याद रहे तो जीवन में अनावश्यक लोभ, ईर्ष्या और अभिमान इत्यादि समाप्त हो सकते हैं। 
और अगर समाप्त न भी हों तो कम ज़रुर हो सकते हैं। 
इसलिए हमारे बुज़ुर्ग अक़सर कहा करते थे कि :
                 ईश्वर और मौत को हमेशा याद रखो 
                                                                  ' राजन सचदेव '

5 comments:

  1. Death is the another universal truth after Nirankar... Yet fear of death largely prevails..

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  2. Ye vo saty hai jise tathiya ki zaroorat nai. 🙏

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  3. One Can Avoid Living But No one can avoid death

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  4. Absolute truth which is Almost looks gud to listen and For speech As wE are seeing in all organisations either they preach abt scene Of death after life

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