Wednesday, December 2, 2020

मृत्यु जीवन का अंत नहीं है

पश्चिमी विचारधारा के अनुसार, समय एक सीधी रेखा में चलता है।

लेकिन प्राचीन भारतीय विद्वानों का मानना ​​था कि समय सीधी रेखा में नहीं बल्कि एक चक्र में चलता है।
इसीलिए प्राचीन समय से ही भारत में साधारण वार्तालाप की भाषा में भी समय-चक्र एवं काल-चक्र इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता रहा है जो इस मान्यता की पुष्टि करता है।  

क्योंकि पश्चिमी विचारकों का मत था कि समय सीधी रेखा में चलता है - केवल आगे बढ़ता है और किसी भी रुप में वापिस नहीं होता, इसलिए सभी पश्चिमी धर्म एक ही जीवनकाल में विश्वास करते हैं अर्थात जीवन जन्म से प्रारम्भ हो कर मृत्यु में समाप्त हो जाता है। 
मृत्यु को धरती पर जीवन का पूर्ण विराम माना जाता है।  
उनका मानना ​​है कि जब पृथ्वी पर जीवन समाप्त हो जाता है, तो लोग स्वर्ग - या नरक में चले जाते हैं - और अनंत काल तक वहीं बने रहते हैं।

प्राचीन भारतीय विद्वानों ने प्रकृति का अवलोकन किया और देखा कि प्रकृति की हर गतिविधि एक चक्र की तरह होती है - प्रकृति का हरेक काम एक चक्र (cycle) में होता है। सूर्य, चंद्र, तारे - दिन और रात - सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम - सभी नियोजित क्रम  में आते हैं और निश्चित व्यवस्था के अनुसार निर्धारित चक्रों में चलते हैं - जिसकी पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी करता है।

प्राचीन भारतीयों ने सोचा कि चूंकि प्रकृति में सब कुछ एक पहिए - एक चक्र की तरह घूमता है - इसलिए, जीवन भी एक चक्र अर्थात Circular cycle में आना और जाना चाहिए। यदि ऐसा है तो जन्म और मृत्यु भी अवश्य ही एक चक्र की भांति बार बार आते जाते रहते होंगे इसलिए, उन्होंने पुनर्जन्म के सिद्धांत की स्थापना की।

उन्होंने यह भी देखा कि कोई भी वस्तु - जिसे विज्ञान में पदार्थ के रुप में जाना जाता है - पूरी तरह से नष्ट नहीं होती है। केवल उनका रुप या आकार ही बदलता है। जब पौधे और जानवर मर जाते हैं, तो वे अंततः राख और फिर खाद में बदल जाते हैं और फिर से जीवंत पौधों का अंग बन जाते हैं।
पानी गर्म हो कर वाष्प बन कर उड़ जाता है - बादल बन जाता है और फिर बारिश के रुप में फिर से धरती पर वापस आ जाता है।

प्राचीन ऋषियों ने सोचा की यदि प्रकृति नष्ट नहीं होती तो चेतना भी नष्ट नहीं हो सकती - यह भी अवश्य ही एक नए रुप  में - नए शरीर में वापस आ जाती है - और जीवन नए सिरे प्रारम्भ हो जाता है।  
इस तरह जन्म और मृत्यु एक चक्र की भांति घूमते रहते है - आते जाते रहते हैं।

वैज्ञानिक अब पीढ़ी-दर-पीढ़ी डी.एन.ए. की निरंतरता (Continuity of DNA) में विश्वास करते हैं - जिसका कुछ सदियों पहले उन्हें ज्ञान नहीं था।
इसी तरह, आज वे चेतना की निरंतरता में विश्वास नहीं करते - लेकिन हो सकता है कि निकट भविष्य में उन्हें इस बात का प्रमाण भी मिल जाए कि पदार्थ की तरह, चेतना भी कभी नष्ट नहीं होती।

भारतीय विचारधारा के अनुसार, जीवन चक्र के रुप में व्यक्त होता है।
प्रकृति पुराने और थके हुए जीवन को समाप्त कर के उसे फिर एक नए सिरे से शुरु कर देती है - एक नए जीवन-चक्र के रुप में।
जब नया चक्र शुरु होता है, तो उसमें एक ताजगी होती है - उत्साह होता है।
आशा का नया प्रादुर्भाव होता है। 
नई ताजा ऊर्जा पैदा होती है - जहां से पिछले जीवन में समाप्त हुई थी, वहीं से और आगे बढ़ने के लिए - उच्च चेतना के नए स्तरों की ओर - शारीरिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रुप तरक्की करने के लिए - प्रकृति एक नया अवसर प्रदान करती है।

भारतीय शास्त्रों के अनुसार मृत्यु - जीवन का अंत नहीं है।
यह एक नया प्रारम्भ - एक नई शुरुआत है।
                   ' राजन सचदेव '

3 comments:

Difference between Abhiman and Svaabhiman (Self-respect and Ego)

Q: Please elaborate more on how to differentiate between Abhiman and Svaabhiman - Self-respect and Ego               ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~...