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पहली बात तो यह है कि हमें ऐसा करने की आवश्यकता क्या है?
लोग Product चाहते हैं - वस्तु चाहते हैं। अगर कोई वस्तु उनके मतलब की न हो तो वो केवल किसी के अनुनय विनय करने से ही उसे लेने के लिए तैयार नहीं हो जाते। वह केवल बातों या तर्क को नहीं बल्कि उस वस्तु की उपयोगिता एवं परिणाम को देखते हैं।
एक कुँए या नदी को लोगों को पानी पीने के लिए आग्रह करने की आवश्यकता नहीं है।
लोग स्वाभाविक रुप से - अपने आप ही उनके पास आते हैं - बशर्ते उनका पानी शुद्ध और मीठा हो।
इसी तरह, जो लोग आध्यात्मिक मार्ग पर अपने प्रयास के माध्यम से प्रबुद्ध हो गए हैं - जिन्हों ने समानता की अवस्था प्राप्त कर ली है - लोग स्वाभाविक रुप से, अपने आप ही उनकी ओर आकर्षित होने लगते हैं।
लोग अनुनय विनय के कारण नहीं, बल्कि स्वाभाविक रुप से उनके पास आने लगते हैं - बशर्ते वे वही हों जो वो होने का दावा करते हैं।
जब हमें किसी चीज़ की ज़रुरत होती है, तो हम उस स्रोत को खोजने की कोशिश करते हैं, जिसके पास हमारी ज़रुरत का सामान हो।
यदि हम कोई किताब पढ़ना चाहते हैं, तो उसे खोजने के लिए हम किसी फुटवियर स्टोर अर्थात जूतों की दुकान पर नहीं जाते हैं।
अगर हम कुछ ज्ञान चाहते हैं, तो हम एक ज्ञानी - एक जानकार व्यक्ति को खोजने की कोशिश करते हैं - जो हमसे अधिक जानता हो - जो हमसे बेहतर हो।
इसी तरह, यदि हमें आध्यात्मिक मार्गदर्शन की आवश्यकता है, तो हम उन लोगों की तलाश करेंगे, जो हमसे बेहतर और आध्यात्मिक रुप से उच्चतर हैं - जिन्हों ने वह अवस्था प्राप्त कर ली है जिसे हम प्राप्त करना चाहते हैं।
यदि हमारे रिश्तेदार, संबंधी और मित्रगण हमारे आध्यात्मिक पथ पर हमारा साथ देने का विकल्प नहीं चुनते हैं, तो उनके पीछे भागने से कोई फायदा नहीं। अगर वे उन गुणों को हमारे अंदर नहीं देखते - तो चाहे हम उनसे कुछ भी कहते रहें - कितनी भी प्रेरणा देते रहें - वे हमारी बात नहीं सुनेंगे।
इसलिए उन्हें समझाने और मनाने की जगह स्वयं को बदलने की प्रक्रिया पर ध्यान देना ज़्यादा अच्छा है।
जब वे हमारे जीवन में उस परिवर्तन को देखेंगे, तो बिना किसी अनुनय-विनय या समझाने-बुझाने के वह स्वयं ही हमारे पास आ जाएंगे।
जब हमें किसी चीज़ की ज़रुरत होती है, तो हम उस स्रोत को खोजने की कोशिश करते हैं, जिसके पास हमारी ज़रुरत का सामान हो।
यदि हम कोई किताब पढ़ना चाहते हैं, तो उसे खोजने के लिए हम किसी फुटवियर स्टोर अर्थात जूतों की दुकान पर नहीं जाते हैं।
अगर हम कुछ ज्ञान चाहते हैं, तो हम एक ज्ञानी - एक जानकार व्यक्ति को खोजने की कोशिश करते हैं - जो हमसे अधिक जानता हो - जो हमसे बेहतर हो।
इसी तरह, यदि हमें आध्यात्मिक मार्गदर्शन की आवश्यकता है, तो हम उन लोगों की तलाश करेंगे, जो हमसे बेहतर और आध्यात्मिक रुप से उच्चतर हैं - जिन्हों ने वह अवस्था प्राप्त कर ली है जिसे हम प्राप्त करना चाहते हैं।
यदि हमारे रिश्तेदार, संबंधी और मित्रगण हमारे आध्यात्मिक पथ पर हमारा साथ देने का विकल्प नहीं चुनते हैं, तो उनके पीछे भागने से कोई फायदा नहीं। अगर वे उन गुणों को हमारे अंदर नहीं देखते - तो चाहे हम उनसे कुछ भी कहते रहें - कितनी भी प्रेरणा देते रहें - वे हमारी बात नहीं सुनेंगे।
इसलिए उन्हें समझाने और मनाने की जगह स्वयं को बदलने की प्रक्रिया पर ध्यान देना ज़्यादा अच्छा है।
जब वे हमारे जीवन में उस परिवर्तन को देखेंगे, तो बिना किसी अनुनय-विनय या समझाने-बुझाने के वह स्वयं ही हमारे पास आ जाएंगे।
'राजन सचदेव'
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