कुछ दिन पहले चंडीगढ़ से एक सज्जन ने एक मैसेज भेजा :
Aap g ne mox praptee kee jo baat likhee he...pls explain -
-- इस बारे में लिखें कि:
'मोक्ष क्या है?'
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
मोक्ष का अर्थ है मुक्ति, या स्वतंत्रता -
भय से मुक्ति - दुःख, और चिंता से मुक्ति- दासता या ग़ुलामी से मुक्ति।
प्राचीन हिंदू शास्त्रों के अनुसार मोक्ष किसी अन्य लोक या ग्रह में स्थित नहीं है।
यह मन की स्थिति है।
मोक्षस्य न हि वासोअस्ति न ग्रामान्तरमेव वा
अज्ञान हृदय-ग्रन्थि नाशो मोक्ष इति स्मृतः
"शिव गीता 13 - 32"
अर्थ:
'मोक्ष किसी अन्य लोक में स्थित नहीं है - किसी और ग्रह पर या अस्तित्व के किसी और रुप में नहीं है
और न ही यह किसी विशेष स्थान, शहर या गांव से संबंधित है अर्थात ऐसा नहीं है कि किसी विशेष स्थान पर जाने से मोक्ष मिल जाएगा।
हृदय से अज्ञान की ग्रंथि का विनाश - अज्ञान और मिथ्या विश्वास के बादल जो ज्ञान को ढंक लेते हैं - उनका उन्मूलन - उनका नाश हो जाना ही मोक्ष है।'
दूसरे शब्दों में, यह एक भ्रम है - भ्रांति है कि हम मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त करेंगे और अस्तित्व के किसी अलग स्तल पर जाकर आनंद से रहेंगे।
शास्त्रों के अनुसार पूर्ण आत्मज्ञान द्वारा मायासम्बन्ध से रहित होकर अपने शुद्ध ब्रह्मस्वरूप का बोध प्राप्त करना मोक्ष है ।
तात्पर्य यह है कि आत्मज्ञान प्राप्त करके हृदय में ज्ञान के दीपक का निरंतर प्रकाश - सब प्रकार के सुख दुःख और मोह आदि का छूट जाना और भय और दासत्व भाव से मुक्त मनःस्थिति को ही मोक्ष पद कहा जाता है।
' राजन सचदेव '
Aap g ne mox praptee kee jo baat likhee he...pls explain -
-- इस बारे में लिखें कि:
'मोक्ष क्या है?'
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मोक्ष का अर्थ है मुक्ति, या स्वतंत्रता -
भय से मुक्ति - दुःख, और चिंता से मुक्ति- दासता या ग़ुलामी से मुक्ति।
प्राचीन हिंदू शास्त्रों के अनुसार मोक्ष किसी अन्य लोक या ग्रह में स्थित नहीं है।
यह मन की स्थिति है।
मोक्षस्य न हि वासोअस्ति न ग्रामान्तरमेव वा
अज्ञान हृदय-ग्रन्थि नाशो मोक्ष इति स्मृतः
"शिव गीता 13 - 32"
अर्थ:
'मोक्ष किसी अन्य लोक में स्थित नहीं है - किसी और ग्रह पर या अस्तित्व के किसी और रुप में नहीं है
और न ही यह किसी विशेष स्थान, शहर या गांव से संबंधित है अर्थात ऐसा नहीं है कि किसी विशेष स्थान पर जाने से मोक्ष मिल जाएगा।
हृदय से अज्ञान की ग्रंथि का विनाश - अज्ञान और मिथ्या विश्वास के बादल जो ज्ञान को ढंक लेते हैं - उनका उन्मूलन - उनका नाश हो जाना ही मोक्ष है।'
दूसरे शब्दों में, यह एक भ्रम है - भ्रांति है कि हम मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त करेंगे और अस्तित्व के किसी अलग स्तल पर जाकर आनंद से रहेंगे।
शास्त्रों के अनुसार पूर्ण आत्मज्ञान द्वारा मायासम्बन्ध से रहित होकर अपने शुद्ध ब्रह्मस्वरूप का बोध प्राप्त करना मोक्ष है ।
तात्पर्य यह है कि आत्मज्ञान प्राप्त करके हृदय में ज्ञान के दीपक का निरंतर प्रकाश - सब प्रकार के सुख दुःख और मोह आदि का छूट जाना और भय और दासत्व भाव से मुक्त मनःस्थिति को ही मोक्ष पद कहा जाता है।
' राजन सचदेव '
🙏🏼🙏🏼
ReplyDeleteDhan nirankar Ji
ReplyDeleteबख़्शीश साहेब. धन निरंकार जी
ReplyDeleteNice ji. Please throw some light on lok, parlok.
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