Friday, September 18, 2020

कोई अपना बिछड़ जाए तो

कल फिर एक शोक संदेश मिला कि एक और नौजवान सेवादार महात्मा कोविड (COVID) के कारण संसार से विदा हो गए। 

जब बच्चों के सामने - उन के हाथों में माता पिता एवं बुज़ुर्ग लोग संसार से जाते हैं - तो दुःख तो तब भी होता है लेकिन इसे संसार का - प्रकृति का नियम मान कर स्वीकार कर लिया जाता है। 
लेकिन जब माता पिता के हाथों - उनके सामने उनकी संतान इस तरह से चली जाए तो उस दुःख को ब्यान करना किसी के बस की बात नहीं।  
संत स्वभाव के लोग इसे प्रभु इच्छा मान कर स्वीकार तो कर लेते हैं - लेकिन फिर भी उनके जीवन में एक अभाव - एक शून्य सा बना ही रहता है।
स्वभाविक है कि ऐसे समय में बड़े बड़े संत महात्मा एवं गुरुओं को भी दुःख में भावुक होते देखा और सुना गया है। 
सहज ही मन में ये प्रार्थना उठती है कि निरंकार प्रभु किसी को भी ऐसा समय न दिखाए। 
लेकिन जिन माता-पिता के साथ ऐसा हुआ - उनकी मानसिक दशा को अनुभव करते हुए चंद पंक्तियाँ ज़हन में आईं - 
एक ग़ज़ल के रुप में: 
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चला जाए जिगर का लाल ये सदमा कम नहीं होता 
कोई अपना बिछड़ जाए तो किस को ग़म नहीं होता 

बहुत हैं चारागर दुनिया में हर इक मर्ज़ के लेकिन 
जिगर के ज़ख्म का यारो  कोई मरहम नहीं होता 

बदलते रहते हैं मौसम बहारों के - ख़िज़ाओं के 
पर आँखों के बरसने का कोई मौसम नहीं होता

सभी रिश्ते,सभी नाते हैं जब तक सांस चलती है  
फिर उसके बाद तो 'राजन कोई हमदम नहीं होता  
                                        
दबे लफ़्ज़ों में सच की हामी तो भरते हैं सब देखो 
मगर महफ़िल में कहने का किसी में दम नहीं होता 
                                            ' राजन सचदेव ' 

चारागर    -     इलाज़ करने वाले - Doctors 

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When the mind is clear

When the mind is clear, there are no questions. But ... When the mind is troubled, there are no answers.  When the mind is clear, questions ...