Sunday, September 27, 2020

नियमों और परंपराओं को समझें और अनुसरण करें 

परंपराओं को मानना अच्छा है - नियमों का पालन करना ही चाहिए 
लेकिन उनका मतलब - उनके अर्थ को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए।

हर नियम, रस्म और परंपरा को शुरु करने के पीछे कोई न कोई कारण होता है।
कुछ पुरानी रस्में और परंपराएं सदियों पहले अपने समय, स्थान और स्थिति के अनुसार सही थीं, लेकिन हो सकता है कि वर्तमान समय में वह प्रासंगिक या उपयोगी न हों। बिना कारण को समझे, आँख बंद करके उनका अनुसरण करने से कोई ख़ास फायदा नहीं होता।
लेकिन आमतौर पर, हम यही करते हैं - आँख बंद करके उनका पालन करते हैं।
मुझे एक ऐसी घटना याद आती है जो बहुत पहले पटियाला में एक सत्संग के दौरान हुई थी।
संत अमर सिंह जी एक रविवार की सुबह भवन में अपना प्रवचन दे रहे थे। सभी लोग बड़ी तन्मयता से उनके विचार सुन रहे थे। जैसा कि परंपरा है, विचार के दौरान नमस्कार को रोक दिया गया था और सेवादल के सदस्य भी विचार सुनने के लिए बैठ गए थे।
अचानक एक बुजुर्ग माता जी बीच रास्ते से होते हुए नमस्कार करने के लिए स्टेज के बहुत पास तक पहुंच गईं।
तभी सेवादल के कुछ भाइयों और बहनों ने उसे देखा, और वे जल्दी से उसे रोकने के लिए दौड़े और उसे बैठ जाने के लिए कहा। लेकिन उस माता ने कहा कि वह नमस्कार करना चाहती है। सेवादल के सदस्य उसे बैठने के लिए कहते रहे, और वह नमस्कार करने के लिए आग्रह करती रहीं। सेवादल की दो बहनों ने उसके हाथ पकड़ कर उसे बैठाने की कोशिश की, जबकि कुछ अन्य सेवादार चिल्लाने लगे -
 'माता जी - बैठ जाओ - विचार हो रही है - बैठ जाओ'।
संत अमर सिंह जी ने अपना प्रवचन रोक दिया और कहा
'कोई बात नहीं - आने दो - करने दो नमस्कार।
और उन्होंने सभी सेवादल के सदस्यों को भी बैठ जाने के लिए कहा।
नमस्कार करने के बाद, बुजुर्ग महिला भी बैठ गई।
पिता जी - अर्थात संत अमर सिंह जी ने अपना प्रवचन फिर से शुरु किया और कहा:
नियम और परंपराएं किसी कारण से बनाई जाती हैं।
हमें सिर्फ नियमों से चिपके रहने की बजाय, उनके पीछे के अर्थ और कारण को समझना चाहिए।
क्या आप जानते हैं कि विचार के समय नमस्कार करने पर पाबंदी क्यों है?
ये नियम इसलिए बनाया गया था ताकि विचार के दौरान शांति बनी रहे - बोलने और सुनने में कोई बाधा - कोई विघ्न न हो। 
किसी प्रकार की कोई हलचल - कोई उत्तेजना, कोई खलबली न हो।
ताकि बोलने वाले - वक्ता बिना किसी विघ्न के बोल सकें, और श्रोतागण अपना ध्यान बोलने वाले के विचारों पर केंद्रित कर सकें।
लेकिन अभी जो हुआ उसके बारे में ज़रा ध्यान से सोचिए।
इस माता के नमस्कार करने से इतनी बाधा न होती जितनी हलचल सेवादारों ने इसे रोकने में पैदा कर दी। 
या तो पहले ही ध्यान रखते और दरवाज़े के पास ही इन्हें ये बात समझा कर पीछे बिठा देते।
लेकिन अगर पहले किसी का ध्यान उस पर नहीं गया, और वह स्टेज तक आ ही गयीं तो उसे एक हल्का सा इशारा करने के बाद, अनदेखा कर देते और अपना ध्यान सुनने में लगाए रखते।
इस माता के नमस्कार करने से तो थोड़ी सी रुकावट होती लेकिन आप लोगों ने तो इतनी खलबली मचा दी - इतना हंगामा - इतना शोर-गुल कर दिया कि सबका ही ध्यान भंग हो गया।
गुरुमुख होए तो चेतन।
नियमों और परंपराओं का पालन करने में थोड़ी समझदारी और चेतनता का भी उपयोग करना चाहिए। आंख मूंदकर अनुसरण करने के बजाय वास्तविक अर्थ को समझने की कोशिश करें। सिर्फ शब्दों को नहीं, भाव को भी समझने की कोशिश किया करो।"

पिता अमर सिंह जी हमेशा एक शिक्षक - एक Teacher की तरह हर बात विस्तार से समझाया और सिखाया करते थे - और कभी कभी तो सख़्ती से भी। 
इसीलिए बाबा गुरबचन सिंह जी कहा करते थे कि पटियाला गुरमत की यूनिवर्सिटी है - क्योंकि संत अमर सिंह जी वहां रहते हैं।
                                                                     ' राजन सचदेव '

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