मौन मन को शांत करता है यह एक ऐसा मरहम है जो मन के घावों को भर कर शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
यह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि एक अनुभव है — एक ऐसा अनुभव जो भीतर की हलचल को थाम लेता है।
यह हमें उस आंतरिक शांति से परिचित कराता है जो बाहर की किसी भी परिस्थिति से प्रभावित नहीं होती।
यह आत्मा को भीतर से मजबूत बनाता है, उसे एक ऐसी दुनिया में ले जाता है जहां न कोई शोर है, न कोई चिंता
— बस एक निर्मल शांति का अनुभव है, एक गूंजती हुई निस्तब्धता, जिसमें हम स्वयं से मिलते हैं।
मौन का अर्थ है - मन का मौन।
अक़्सर मौन का अर्थ लिया जाता है न बोलना --बाहरी चुप्पी - अर्थात किसी से बात न करना।
परंतु मौन का सच्चा रुप तो मन का मौन है।
अगर जुबां से मौन व्रत रख लिया लेकिन मन में संवाद चलते रहें - मन में विचारों की उथल पुथल चलती रहे तो उसे मौन नहीं कहा जा सकता।
ऐसा मौन केवल सतही है, वह असली मौन नहीं है।
सच्चा मौन तो निर्विचार की स्थिति है।
जहां विचारों की लहरें थम जाती हैं।
ये वो अवस्था है जब मन पूरी तरह से शांत होता है, और अंतर्मन एक स्थिर झील की तरह शांत हो जाता है।
जब तक मन में विचारों की रेलगाड़ी चलती रहेगी - योजनाओं कल्पनाओं और चिंताओं की उथल पुथल चलती रहेगी - मन शांत नहीं हो सकेगा।
जब तक मौन केवल शरीर तक सीमित रहेगा, आत्मा तक नहीं पहुँचेगा।
मन के मौन का अभ्यास हमें उसी गहराई की ओर ले जाता है —
जहां हम शब्दों से परे जाकर अपने अस्तित्व की अनहद ध्वनि को सुन सकते हैं।
" राजन सचदेव "
🙏🏻🙏🏻
ReplyDelete👌👌👌🙏🙏
ReplyDeleteविचारणीय और अनुकरणीय लेख है। धन्यवाद
ReplyDeleteDhan Nirankar ji. Thank you for sharing a great thought ji. 👌🙏🙏
ReplyDelete🙏🙏
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