Wednesday, February 24, 2016

मेरी नैय्या पार लगा देना

हे नाथ मेरी नैय्या तुम पार लगा देना 
अब तक तो निभाई है आगे भी निभा देना 

कहीं भीड़ में दुनिया की मैं खो भी अगर जाऊँ 
जब दूर कहीं तुम से  मैं हो भी अगर जाऊं 
हे नाथ दया करके तुम मुझ को बुला लेना 
हे नाथ मेरी नैय्या  तुम पार लगा देना 

मोह की ज़ंजीरों में,  मैं बंध भी अगर जाऊं 
माया की दलदल में, मैं फंस भी अगर जाऊं 
हे नाथ दया करके तुम मुझको बचा लेना 
हे नाथ मेरी नैय्या  तुम पार लगा देना 

कभी अपने फ़र्ज़ों से  मैं चूक अगर जाऊं 
कभी ग़लती से तुमको मैं भूल अगर जाऊं
हे नाथ कहीं तुम भी मुझ को न भुला देना 
हे नाथ मेरी नैय्या तुम पार लगा देना 

तुम ही हो मेरी दुनिया, तुम ही हो मेरी ज़िंदगी 
तुम ही हो मेरी पूजा, तुम ही हो मेरी बंदगी 
'राजन' की यही इल्तिज़ा मेरी तोड़ निभा देना
हे नाथ मेरी नैय्या तुम पार लगा देना 

(तर्ज़ : सौ बार जनम लेंगे, सौ बार फ़ना होंगे - ऐ जाने वफ़ा फिर भी हम तुम न जुदा होंगे

Note : 
इस गीत की पहली दो पंक्तियाँ बहुत साल पहले कहीं सुनी थीं और मन को छू गईं थीं 
बाकी का गीत उन्हीं पर आधारित है. 
इसलिए भाव और कुछ शब्दों का ओरिजिनल गीत के साथ मेल होना संभव है 
                               'राजन सचदेव' 




      

2 comments:

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