Monday, January 24, 2022

ईर्ष्या से छुटकारा कैसे पाएं

ईर्ष्या से छुटकारा पाने के लिए सबसे पहले, हमें इसका कारण खोजना होगा।
ईर्ष्या क्यों होती है ?
हम किस से - और क्यों ईर्ष्या करते हैं ?

                     ईर्ष्या का मूल कारण स्वामित्व की भावना है।

जब हम देखते हैं कि जो हम चाहते हैं वो दूसरों के पास है
जो हमारे पास होना चाहिए वो औरों के पास है - तो हमें उनसे ईर्ष्या होने लगती है।
हम ईर्ष्यालु हो जाते हैं।

जब हम कुछ विशिष्ट प्रतिभा वाले लोगों को देखते हैं - ऐसी प्रतिभा जो हमारे पास नहीं है -
जब हम  देखते हैं कि जो हम करना चाहते हैं - वो दूसरे लोग कर रहे हैं -
जिसका श्रेय हम लेना चाहते हैं, वो दूसरे ले रहे हैं -
तो हमें उनसे ईर्ष्या होने लगती है। 

जब किसी की प्रशंसा - किसी की तारीफ़ हो रही हो तो हमें जलन होती है -
क्योंकि हम चाहते हैं कि लोग हमारी प्रशंसा करें।
हम नहीं चाहते कि कोई और व्यक्ति आकर्षण का केंद्र बने - 
हम नहीं चाहते कि लोगों का ध्यान किसी और व्यक्ति की तरफ हो और उस की तारीफ़ हमसे ज्यादा हो। 

सच तो यह है कि असल में हम जानते हैं कि वो गुण - वो प्रतिभा हमारे पास नहीं है - 
और चाहते हैं कि वो गुण हमारे पास भी हों। 

या फिर हम सोचते हैं कि हमारे पास भी वो गुण तो हैं लेकिन हमें अपनी प्रतिभा दिखाने का कोई मौका - कोई अवसर नहीं मिला। 
जो अवसर - जो मौके उन्हें मिले या मिलते हैं - वो हमें मिलने चाहिएं। 
अर्थात - जो कुछ भी औरों के पास है उस सब का स्वामी हमें होना चाहिए। 

ईर्ष्या से मुक्त होने के लिए इस स्वामित्व की भावना से मुक्त होना पड़ेगा।
क्योंकि स्वामित्व की भावना मन में असुरक्षा पैदा करती है - जो नहीं है उसे पाने की इच्छा और जो है उसे खोने का डर। 
चाहे वह कोई वस्तु हो या कोई पद - या अन्य लोगों पर हमारा अधिकार और उन पर नियंत्रण और कंट्रोल - अगर नहीं है तो पाने की इच्छा और अगर है तो उसे खोने का डर - दोनों हालतों में हम अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं 
और जिनके पास है उन से ईर्ष्या करने लगते हैं। 

लेकिन सच्चे ज्ञानी किसी भी प्रकार की स्वामित्व की भावना से मुक्त होते हैं -
और इसलिए वो ईर्ष्या से भी मुक्त होते हैं। 
वे जानते हैं कि संसार की हर वस्तु और परिस्थिति परिवर्तन के नियम के अधीन है। 
वे जानते हैं कि सब कुछ क्षण भंगुर है - बदल जाने वाला है।  

इसलिए, वे न तो किसी चीज को पकड़ कर रखते हैं और न ही किसी व्यक्ति विशेष अथवा लोगों को। 
उनके मन में किसी वस्तु - किसी परिस्थिति और अन्य लोगों पर स्वामित्व का भाव नहीं होता - 
उन पर अधिकार एवं नियंत्रण - उन पर अपना कण्ट्रोल रखने की भावना नहीं होती और इसलिए वे ईर्ष्या से मुक्त रहते हैं।
                                  ' राजन सचदेव ' 

8 comments:

  1. ज्ञान को गहरा करने में मदद करने के लिए धन्यवाद।������

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  2. GAZAB KA NIRIKSHN KIYA HAI
    BILKUL MOOL KARN PR CHOT KI H APJI NE

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  3. Live topic uncle ji

    Everyday we go through this

    Thanks for providing solutions also

    Dhan nirankar uncle ji

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  4. इर्ष्या या मस्ती व्यक्ति के मूल स्वभाव में होती है जिस प्रकार कुच्छ प्रतिभाएं मनुष्य लेकर जन्मता है उसी प्रकार इर्ष्या भी उसके अंदर ही होती है जो कुच्छ समय के लिए किसी मस्त की संगत से दब तो सकती है पर बीज समाप्त नहीं किया जा सकता है नहीं तो क्या कारण था कृष्ण को केवल पांडव ही समझ पाये और अन्य जीवन भर कृष्ण की बुराई ही करते रहे

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  5. इर्ष्या व्यवस्था से तथा आसपास के माहौल से भी पैदा हो जाती है अन्याय से भी पैदा हो जाती है। पर मन मे घर कर जाती है तो व्यक्ति का पतन निश्चित होना तय हो जाता है।

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  6. जीवन की गहरी सच्चाई ,और उसका मूल मंत्र ,बहुत खूब

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  7. Bhakti ke rah pe irsha dvesh ahenkar aadi cheezy Piche shod ke Nirankar ke dar par samarprit Rehna chahiye aur Satguru ke Kahe pe chalte Rehna chahiye
    ..... Dhan Nirankar ji 🙏🙏

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