ईर्ष्या से छुटकारा पाने के लिए सबसे पहले, हमें इसका कारण खोजना होगा।
ईर्ष्या क्यों होती है ?
हम किस से - और क्यों ईर्ष्या करते हैं ?
ईर्ष्या का मूल कारण स्वामित्व की भावना है।
जब हम देखते हैं कि जो हम चाहते हैं वो दूसरों के पास है -
जो हमारे पास होना चाहिए वो औरों के पास है - तो हमें उनसे ईर्ष्या होने लगती है।
हम ईर्ष्यालु हो जाते हैं।
जब हम कुछ विशिष्ट प्रतिभा वाले लोगों को देखते हैं - ऐसी प्रतिभा जो हमारे पास नहीं है -
जब हम देखते हैं कि जो हम करना चाहते हैं - वो दूसरे लोग कर रहे हैं -
जिसका श्रेय हम लेना चाहते हैं, वो दूसरे ले रहे हैं -
तो हमें उनसे ईर्ष्या होने लगती है।
जब किसी की प्रशंसा - किसी की तारीफ़ हो रही हो तो हमें जलन होती है -
क्योंकि हम चाहते हैं कि लोग हमारी प्रशंसा करें।
हम नहीं चाहते कि कोई और व्यक्ति आकर्षण का केंद्र बने -
हम नहीं चाहते कि लोगों का ध्यान किसी और व्यक्ति की तरफ हो और उस की तारीफ़ हमसे ज्यादा हो।
सच तो यह है कि असल में हम जानते हैं कि वो गुण - वो प्रतिभा हमारे पास नहीं है -
और चाहते हैं कि वो गुण हमारे पास भी हों।
या फिर हम सोचते हैं कि हमारे पास भी वो गुण तो हैं लेकिन हमें अपनी प्रतिभा दिखाने का कोई मौका - कोई अवसर नहीं मिला।
जो अवसर - जो मौके उन्हें मिले या मिलते हैं - वो हमें मिलने चाहिएं।
अर्थात - जो कुछ भी औरों के पास है उस सब का स्वामी हमें होना चाहिए।
ईर्ष्या से मुक्त होने के लिए इस स्वामित्व की भावना से मुक्त होना पड़ेगा।
क्योंकि स्वामित्व की भावना मन में असुरक्षा पैदा करती है - जो नहीं है उसे पाने की इच्छा और जो है उसे खोने का डर।
चाहे वह कोई वस्तु हो या कोई पद - या अन्य लोगों पर हमारा अधिकार और उन पर नियंत्रण और कंट्रोल - अगर नहीं है तो पाने की इच्छा और अगर है तो उसे खोने का डर - दोनों हालतों में हम अपने आप को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं
और जिनके पास है उन से ईर्ष्या करने लगते हैं।
लेकिन सच्चे ज्ञानी किसी भी प्रकार की स्वामित्व की भावना से मुक्त होते हैं -
और इसलिए वो ईर्ष्या से भी मुक्त होते हैं।
वे जानते हैं कि संसार की हर वस्तु और परिस्थिति परिवर्तन के नियम के अधीन है।
वे जानते हैं कि सब कुछ क्षण भंगुर है - बदल जाने वाला है।
इसलिए, वे न तो किसी चीज को पकड़ कर रखते हैं और न ही किसी व्यक्ति विशेष अथवा लोगों को।
उनके मन में किसी वस्तु - किसी परिस्थिति और अन्य लोगों पर स्वामित्व का भाव नहीं होता -
उन पर अधिकार एवं नियंत्रण - उन पर अपना कण्ट्रोल रखने की भावना नहीं होती और इसलिए वे ईर्ष्या से मुक्त रहते हैं।
' राजन सचदेव '
ज्ञान को गहरा करने में मदद करने के लिए धन्यवाद।������
ReplyDeleteDhan nirankar ji 🙏🎉 Santo
ReplyDeleteGAZAB KA NIRIKSHN KIYA HAI
ReplyDeleteBILKUL MOOL KARN PR CHOT KI H APJI NE
Live topic uncle ji
ReplyDeleteEveryday we go through this
Thanks for providing solutions also
Dhan nirankar uncle ji
इर्ष्या या मस्ती व्यक्ति के मूल स्वभाव में होती है जिस प्रकार कुच्छ प्रतिभाएं मनुष्य लेकर जन्मता है उसी प्रकार इर्ष्या भी उसके अंदर ही होती है जो कुच्छ समय के लिए किसी मस्त की संगत से दब तो सकती है पर बीज समाप्त नहीं किया जा सकता है नहीं तो क्या कारण था कृष्ण को केवल पांडव ही समझ पाये और अन्य जीवन भर कृष्ण की बुराई ही करते रहे
ReplyDeleteइर्ष्या व्यवस्था से तथा आसपास के माहौल से भी पैदा हो जाती है अन्याय से भी पैदा हो जाती है। पर मन मे घर कर जाती है तो व्यक्ति का पतन निश्चित होना तय हो जाता है।
ReplyDeleteजीवन की गहरी सच्चाई ,और उसका मूल मंत्र ,बहुत खूब
ReplyDeleteBhakti ke rah pe irsha dvesh ahenkar aadi cheezy Piche shod ke Nirankar ke dar par samarprit Rehna chahiye aur Satguru ke Kahe pe chalte Rehna chahiye
ReplyDelete..... Dhan Nirankar ji 🙏🙏