जहाँ ख़ामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं
कटा जब शीश सैनिक का तो हम ख़ामोश रहते हैं
कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं
नई नस्लों के ये बच्चे ज़माने भर की सुनते हैं
मगर माँ बाप कुछ बोलें तो बच्चे बोल जाते हैं
बहुत ऊँची दुकानों में कटाते जेब सब अपनी
मगर मज़दूर माँगेगा तो सिक्के बोल जाते हैं
अगर मख़मल करे ग़लती तो कोई कुछ नहीं कहता
फटी चादर की ग़लती हो तो सारे बोल जाते हैं
हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं
चिराग़ों से हुई ग़लती तो सारे बोल जाते हैं
बनाते फिरते हैं रिश्ते ज़माने भर से अक्सर हम
मगर घर में ज़रुरत हो तो रिश्ते भूल जाते हैं
कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं
जहाँ ख़ामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं
(लेखक - अज्ञात )
Beautiful poem 🙏
ReplyDeleteExcellant🌸🌺🙏
ReplyDeletevah ji kamal ka vaziyah kiya hai ji
ReplyDeleteAmazing
ReplyDelete👍👍very nice poem
ReplyDeleteWAH BAHUT HI SUNDER RCHNA KMAL KI NZM
ReplyDeleteBahut sundar kavita ,aaj ki sacchai
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