Monday, March 29, 2021

फ़ख़र बकरे ने किया Fakhar bakray nay kiya

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फ़ख़र बकरे ने किया मेरे सिवा कोई नहीं
मैं ही मैं हूं इस जहां में, दूसरा कोई नहीं

मैं मैं जब ना तर्क की उस महवे-असबाब ने
फेर दी चल कर छुरी गर्दन पे तब कस्साब ने

ख़ून - गोश्त - हड्डियां - जो कुछ था जिस्मे सार में
लुट गया कुछ पिस गया कुछ बिक गया बाज़ार में

रह गईं आंतें फ़क़त  मैं - मैं सुनाने के लिए
ले गया नद्दाफ उसे धुनकी बनाने के लिए

ज़र्ब के झोंकों से जब वो आंत घबराने लगी
मैं के बदले तू ही तू ही की सदा आने लगी

फ़ख़र               =  Pride, Arrogance, Egotism
महवे-असबाब  =  Self-Engrossed - Immersed, absorbed in self-interest 
कस्साब            =  Butcher 
आंतें                 =  intestines 
नद्दाफ              =  Cotton Comber (person who separates cotton from seeds) 
ज़र्ब                  =  Blow, hitting, to hit, collision, impact, etc. (also used in mathematics to multiply)


Fakhar bakray nay kiya meray sivaa koyi nahin 
Main hee main hoon is jahaan mein, doosraa koyi nahin 

Main main jab na tark kee us mahave-asbaab nay
Pher dee chal kar chhuri gardan pay tab kassaab nay

Khoon, gosht, haddiyaan jo kuchh tha jisme saar mein 
Lut gaya kuchh pis gaya kuchh bik gaya bazaar mein 

Reh gayin aanten faqat main, main sunaanay kay liye
Lay gayaa naddaaf usay dhunki banaanay kay liye 

Zarb kay jhonkon say jab vo aant ghabraanay lagee 
Main kay badlay Tu hi Tu hi ki sadaa aanay lagee 

Fakhar = Pride, Arrogance, Egotism
Mahave-asbaab = Self-Engrossed - Immersed, absorbed in self-interest
Kassaab = Butcher 
Aanten = intestines 
Naddaaf = Cotton Comber (person who separates cotton from seeds)
Zarb = Blow, hitting, to hit, collision, impact, etc. (also used in mathematics to multiply)

9 comments:

  1. Very nice poem Rajan jee.. thanks 🙏🙏

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  2. Beautiful message with a learning opportunity 🙏🙏

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  3. Dhan Nirankar.
    Touched the heart 🙏🙏🙏🙏

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  4. This poem is originally yours??

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    1. No it is not mine.... that is why I did not sign or put my name in this post

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  5. I have been looking for this poem for some time. Do you know who wrote it? Is it by Kabir-das?

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    1. Author is unknown - Many Sufi qawwali singers have been adding/singing this nazm (poem) in their qawalis
      But as per my understanding, it's not by Sant Kabeer ji.

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  6. फख्र (घमंड) बकरे ने किया
    मेरे सिवा कोई नहीं
    मैं ही मैं हू
    दुनिया में दूसरा कोई नहीं
    मैं का फिर सुन कर सुख़न
    जल्द कर दिया जल्लाद ने
    फेर दी हलकुन (गर्दन) पे छुरी
    एक दिन सैय्यद ने
    मास हड्डी और चमड़ा
    जो भी था उसके ज़ार (शरीर) मे
    कुछ लुट गया, कुछ फिक्क गया
    कुछ बिक गया बाज़ार में
    सिर्फ आँते रह गई
    मैं मैं सुनाने के लिए
    और ले गया धुनका (रुई धुनने वाला)
    उसकी धुनकी (रूई धुनने का एक प्रसिद्ध उपकरण, फटका) बनाने के लिए
    ज़र्ब (मार) सोट्टे की पड़ी
    ताँत (आंतड़ी) घबराने लगी
    और मैं के बदले
    तू ही तू की सदा (आवाज़) आने लगी

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