क्योंकि चिंता करने से कुछ बदलता तो है नहीं।
बल्कि चिंता करने से हम और अधिक चिंतित, असहज, परेशान और उत्तेजित हो जाते हैं ।
जब कोई काम सही नहीं होता - जब परिस्थितियां अनुकूल नहीं होती - जब कोई काम उम्मीद और अपेक्षा के अनुसार नहीं होता तो चिंतित होना स्वाभाविक है।
कभी कभी तो हम इतने चिंतित और परेशान हो जाते हैं कि हम किसी और चीज के बारे में सोच भी नहीं सकते। बस वही चिंता हमारे दिमाग़ में घूमती रहती है।
लेकिन चिंता करने से परिस्थितियां और परिणाम बदल नहीं जाते।
लेकिन चिंता करने से परिस्थितियां और परिणाम बदल नहीं जाते।
मैंने अपने जीवन में कई बार अनुभव किया है कि जब भी चिंता करने के बजाय शांत बैठ कर - ध्यान और सुमिरन करते हुए मन को शांत और स्थिर कर लिया - तो हर समस्या का समाधान - हर प्रश्न का जवाब एक सूक्ष्म रुप में इस तरह से मिला जैसे कोई कान में फुसफुसा कर कुछ कह रहा हो।
लेकिन, ऐसे संदेश प्राप्त करने के लिए हर प्रकार के विचार और चिंताओं से - किसी भी आशा और अपेक्षाओं से मुक्त होना पड़ेगा और अन्तःस्तल की आवाज़ सुनने के लिए तैयार रहना होगा।
कुछ लोग कहते हैं - प्रभु से बात करो - उसे अपनी परेशानियां बताओ और आपको समाधान मिल जाएगा।
मेरा अनुभव कहता है - बात मत करो - कुछ मत कहो
बस ध्यान से सुनो - और आपको जवाब मिल जाएगा।
ईश्वर सर्वव्यापक, सर्वशक्तिमान एवं सर्वज्ञ है।
उसे कुछ भी कहने या समझाने की ज़रुरत नहीं - वह पहले से ही सब कुछ जानता है।
हमें ज़रुरत है - दृढ़ विश्वास और भरोसे की।
' राजन सचदेव '
चिंता और चिता... चिता मृतक शरीर को जलाती है लेकिन चिंता जीते जी मनुष्य को जलाती है। इसलिए चिंता नही चिंतन करें
ReplyDeleteVery true 🙏
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