Wednesday, October 3, 2018

ये दबदबा ये हक़ूमत... Ye Dabdabaa, Ye Haqoomat...

उधर वो हाथों के पत्थर बदलते रहते हैं 
इधर भी अहल-ए-जुनूँ सर बदलते रहते हैं 

बदलते रहते हैं पोशाक दुश्मन-ए-जानी 
मगर जो दोस्त हैं पैकर बदलते रहते हैं 

हम एक बार जो बदले तो आप रूठ गए 
मगर जनाब तो अक्सर बदलते रहते हैं 

ये दबदबा ये हुकूमत ये नश्शा-ए-दौलत
किराये -दार हैं सब घर बदलते रहते हैं 

                  "बेकल उत्साही "


Udhar vo haathon kay pathar badaltay rehtay hain 
Idhar bhi Ehalay junun sar badaltay rehtay hain

Badaltay rehtay hain poshaak dushman-e-jaanee 
Magar jo dost hain paikar badaltay rehtay hain 

Ham ek baar jo badlay to aap rooth gaye 

magar janaab to aksar badaltay rehtay hain 

Ye dabdabaa, ye haqoomat, ye nahsaa-e-daulat
Kiraaye-daar hain sab, ghar badaltay rehtay hain 

                   "Bekal Utsaahi"

पैकर  Paikar    -------    शरीर, आकार  Body, Appearance, Face
Kiraaye-daar  --------- Tenants , Temporary residents 

1 comment:

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