Friday, October 19, 2018

परवरदिगारे-आलम की रहमत पे अक़ीदा भी है

Yesterday, while driving, a Mercedes was waiting at the red light in front of my car 
I saw a homeless person approaching the driver and asking for some money. 
The driver of Mercedes signaled him to get lost. 
Suddenly a Sher came to my mind and then the whole Ghazal later.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ ~~~~~~~~~~~~~~~~
एक ही शहर में शहनशाह भी है, गदा भी है        
अमीर की अना भी है - ग़रीब की सदा भी है          

यूं तो गूंजते हैं महफिलों में कहकहे मगर  

मुस्कुराती आँख में इक अश्क़ पोशीदा भी है            

बेवजह  होती  नहीं  हैं  दोस्तों  में  रंजिशें 

रंजिशें हैं दिल में तो आख़िर कोई वजा भी है 

चाह कर भी हो नहीं पाती है आख़िर बात क्यों 
शायद ग़लतफ़हमियों का दरमियाँ परदा भी है 

क्या हुआ, कि ख़त्म दिलों से आशनाई हो गई 

हुई जो तर्क़ - तो कुछ बाइसे तर्क़े वफ़ा भी है 

"हुज़ूर - मुझे आपकी  सूरत भी गंवारा  नहीं "
बात में तल्ख़ी है उसकी  -अदब का लहजा भी है 

यूँ ही बेमतलब नहीं होती कभी ख़ामोशियाँ   

ख़ामुशी में छुपा कोई तूफ़ान शोरीदा भी है

क्यों मगर उठते हैं दिल में वलवले 'राजन' अगर 

परवरदिगारे-आलम की रहमत पे अक़ीदा भी है                    
                            "राजन सचदेव "

गदा  (भिखारी)  सदा  (प्रार्थना)  पोशीदा  (Hidden )  तर्क़  (तोड़ना ,टूटना)  तल्ख़ (कड़वी Bitter )
बाइसे-तर्क़े-वफ़ा (वफ़ा, मोहब्बत टूटने या ख़त्म होने का कारण)  शोरीदा (शोर) अक़ीदा (विश्वास)

No comments:

Post a Comment

हज़ारों ख़ामियां मुझ में हैं - मुझको माफ़ कीजिए

हज़ारों ख़ामियां मुझ में  हैं   मुझको माफ़ कीजिए मगर हुज़ूर - अपने चश्मे को भी साफ़ कीजिए  मिलेगा क्या बहस-मुबाहिसों में रंज के सिवा बिला वजहा न ...