ये बात भी पूछो कभी ख़ुद से अकेले में
आए थे क्या लेने इस दुनिया के मेले में
मिल जाएँगी मिट्टी में ये हकूमतें इक दिन
मिल जाएगा ये जिस्म भी मिट्टी के ढ़ेले में
चलते चले जाते हैं अपनी ही धुन में लोग
रुकता नहीं कोई किसी की ख़ातिर रेले में
'रब के बंदे' होने का दावा जो करते हैं
धोखा क्यों करते हैं - वो पैसे धेले में ?
निकला हूँ मैं मुश्किल से रस्मों की दलदल से
अब फिर से न डालो मुझे तुम इस झमेले में
ये ज़िंदगी मिली है कुछ करने को 'राजन '
उलझे न रह जाएँ कहीं दो दिन के मेले में
'राजन सचदेव '
पेरणा स्तोत्र: - -
" घर लौट के रोएँगे, माँ-बाप अकेले में
मिटटी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में "
शायर : क़ैसर जाफ़री - गायक उस्ताद रईस खान
रेले में ----------- भीड़ में
पैसे-धेले में -------- रुपये पैसे - धन के मामले में
(1950 से पहले की करंसी में - पाई, धेला, पैसा , टका, आन्ना इत्यादि होते थे -
एक रूपये में 16 आन्ने होते थे )
आए थे क्या लेने इस दुनिया के मेले में
मिल जाएँगी मिट्टी में ये हकूमतें इक दिन
मिल जाएगा ये जिस्म भी मिट्टी के ढ़ेले में
चलते चले जाते हैं अपनी ही धुन में लोग
रुकता नहीं कोई किसी की ख़ातिर रेले में
'रब के बंदे' होने का दावा जो करते हैं
धोखा क्यों करते हैं - वो पैसे धेले में ?
निकला हूँ मैं मुश्किल से रस्मों की दलदल से
अब फिर से न डालो मुझे तुम इस झमेले में
ये ज़िंदगी मिली है कुछ करने को 'राजन '
उलझे न रह जाएँ कहीं दो दिन के मेले में
'राजन सचदेव '
पेरणा स्तोत्र: - -
" घर लौट के रोएँगे, माँ-बाप अकेले में
मिटटी के खिलौने भी सस्ते न थे मेले में "
शायर : क़ैसर जाफ़री - गायक उस्ताद रईस खान
रेले में ----------- भीड़ में
पैसे-धेले में -------- रुपये पैसे - धन के मामले में
(1950 से पहले की करंसी में - पाई, धेला, पैसा , टका, आन्ना इत्यादि होते थे -
एक रूपये में 16 आन्ने होते थे )
❤
ReplyDeleteVery meaningful
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