Tuesday, October 2, 2018

भगवान् कृष्ण और पिशाच

                                        भगवान् कृष्ण और पिशाच
                                   (एक प्रचलित कथा पर आधारित)

एक बार भगवान श्री कृष्ण, बड़े भाई बलराम एवं मित्र सात्यकि रात्रि के समय रास्ता भटक गये ! सघन वन था ! निर्णय हुआ कि वहीं रात्रि में विश्राम किया जाय ! ये तय हुआ कि तीनो बारी-बारी जाग कर पहरा देंगे !
सबसे पहले सात्यकि जागे बाकी दोनो सो गये ! 
कुछ देर के बाद एक पिशाच पेड़ से उतरा और सात्यकि को युद्ध के लिए ललकारने लगा !पिशाच की ललकार सुन कर सात्यकि अत्यंत क्रोधित हो गये ! दोनो में युद्ध होने लगा ! जैसे -जैसे पिशाच क्रोध करता सात्यकि दुगने क्रोध से लड़ने लगते ! सात्यकि जितना अधिक क्रोध करते उतना ही पिशाच का आकार बढ़ता जाता ! युद्ध में सात्यकि को बहुत चोटें आईं ! वो धरती पर गिर गए और पिशाच चला गया ! 
एक प्रहर बीत गया अब बलराम दाऊ जागे ! सात्यकि ने उन्हें कुछ न बताया और सो गये ! बलराम को भी पिशाच की ललकार सुनाई दी, और वह क्रोध-पूर्वक पिशाच से भिड़ गये ! जितना वो क्रोध करते, पिशाच का आकार उतना ही बढ़ जाता ! लड़ते हुए एक प्रहर बीत गया और उनका भी सात्यकि जैसा हाल हुआ !

अब श्री कृष्ण के जागने की बारी थी ! दाऊ बलराम ने भी उन्हें कुछ न बताया और सो गये ! श्री कृष्ण के सामने भी पिशाच की चुनौती आई ! पिशाच जितने अधिक क्रोध से श्री कृष्ण को ललकारता श्री कृष्ण उतने ही शांत-भाव से मुस्करा देते; और पिशाच का आकार घट जाता ! अंत में वह एक चींटी जितना रह गया जिसे श्री कृष्ण ने अपने पटुके के छोर में बांध लिया !
प्रात:काल सात्यकि व बलराम ने अपनी दुर्गति की कहानी श्री कृष्ण को सुनाई तो श्री कृष्ण ने मुस्करा कर उस कीड़े को दिखाते हुए कहा - यही है वह क्रोध-रूपी पिशाच जिसके साथ तुम युद्ध करते रहे ! जितना तुम क्रोध करते थे इसका आकार उतना ही बढ़ जाता था ! परन्तु जब मैंने इसके क्रोध का जवाब क्रोध से न देकर , शांत-भाव से दिया तो यह हतोत्साहित हो कर दुर्बल और छोटा होता गया ! 

अतः - क्रोध पर विजय पाने के लिये क्रोध से नहीं, बल्कि संयम से काम लें तो क्रोध स्वयम ही समाप्त हो जाएगा !



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Jo Bhajay Hari ko Sada जो भजे हरि को सदा सोई परम पद पाएगा

जो भजे हरि को सदा सोई परम पद पाएगा  Jo Bhajay Hari ko Sada Soyi Param Pad Payega