मैं सोचता हूँ ज़माने को क्या हुआ या 'रब
किसी के दिल में मुहब्बत नहीं किसी के लिये
चमन में फूल भी हर एक को नहीं मिलते
बहार आती है लेकिन किसी किसी के लिये
उन्हीं के शीशा -ए -दिल चूर चूर हो के रहे
तड़प रहे थे जो दुनिया में दोस्ती के लिये
हमारी ख़ाक को दामन से झाड़ने वाले
सब इस मुक़ाम से गुज़रेंगे ज़िंदगी के लिये
हमारे बाद रहेगा अँधेरा महफ़िल में
चिराग़ लाख जलाओगे रौशनी के लिये
(Writer unknown)
किसी के दिल में मुहब्बत नहीं किसी के लिये
चमन में फूल भी हर एक को नहीं मिलते
बहार आती है लेकिन किसी किसी के लिये
उन्हीं के शीशा -ए -दिल चूर चूर हो के रहे
तड़प रहे थे जो दुनिया में दोस्ती के लिये
हमारी ख़ाक को दामन से झाड़ने वाले
सब इस मुक़ाम से गुज़रेंगे ज़िंदगी के लिये
हमारे बाद रहेगा अँधेरा महफ़िल में
चिराग़ लाख जलाओगे रौशनी के लिये
(Writer unknown)
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