Monday, June 12, 2017

गाँव के दो भाई

एक बहुत पुरानी कथा है । किसी गांव में दो भाई रहते थे । दोनों मिल कर सांझी खेती करते थे ।
बडे की शादी हो गई थी । उसके दो बच्चे भी थे । लेकिन छोटा भाई अभी कुंवारा था । 

एक बार जब उनके खेत में गेहूं की फसल पककर तैयार हो गई तो दोनों ने मिलकर फसल काटी और गेहूं तैयार किया। इसके बाद दोनों 
ने आधा-आधा गेहूं बांट लिया। अब उन्हें ढोकर घर ले जाना बचा था । रात हो गई थी, इसलिए यह काम अगले दिन ही हो पाता। दोनों ने 
रात में फसल की रखवाली के लिए खलिहान पर ही रुकना उचित समझा । 
दोनों को भूख भी लगी थी। लेकिन अगर दोनों एकसाथ चले जाएँ तो गेहूँ के चोरी हो जाने का डर था। इसलिए उन्हों ने बारी-बारी से  घर 
जाने का फ़ैसला किया । पहले बड़ा भाई खाना खाने घर चला गया । छोटा भाई खलिहान पर ही रुक गया । बड़े भाई के जाने के बाद वह 
सोचने लगा - भैया की शादी हो गई है, उनका परिवार है, बच्चे हैं, इसलिए उन्हें ज्यादा अनाज की जरूरत होगी। यह सोचकर उसने 
अपने ढेर से दो टोकरी गेहूं निकालकर बड़े भाई के ढेर में मिला दिया । 
थोड़ी देर में बड़ा भाई खाना खाकर लौट आया तो छोटा भाई खाना खाने घर चला गया । 
बड़ा भाई सोचने लगा - मेरा तो परिवार है, बच्चे हैं, वे मेरा ध्यान रख सकते हैं । लेकिन मेरा छोटा भाई तो एकदम अकेला है, इसे तो देखने 
वाला कोई नहीं है । इसे मुझसे ज्यादा गेहूं की जरूरत पड़ सकती है । ये सोच कर उसने अपने ढेर से दो टोकरी गेहूं उठा कर छोटे भाई के 
गेहूं के ढेर में मिला दिया!

इस तरह दोनों के गेहूं की कुल मात्रा में तो कोई कमी नहीं आई। 
लेकिन हाँ  -  दोनों के आपसी प्रेम और भाईचारे में थोड़ी और वृद्धि जरूर हो गई ।


4 comments:

  1. Beautiful, uncle ji! Dhan Nirankar Ji!

    ReplyDelete
  2. What a great inspirational awareness. DHJ Prem

    ReplyDelete
  3. Small steps in life can lead to great change in character and behavior .. nice inspiration
    Kind Regards
    Kumar

    ReplyDelete
  4. I heard someone say in a vichar at a samagam that we should increase our "margins." It really stuck me that it doesn't take much to be a little more compassionate, a little more considerate, a little more..... of whatever we are experiencing but it goes a long way. Thank you for sharing.

    ReplyDelete

हज़ारों ख़ामियां मुझ में हैं - मुझको माफ़ कीजिए

हज़ारों ख़ामियां मुझ में  हैं   मुझको माफ़ कीजिए मगर हुज़ूर - अपने चश्मे को भी साफ़ कीजिए  मिलेगा क्या बहस-मुबाहिसों में रंज के सिवा बिला वजहा न ...