Saturday, June 3, 2017

प्रेम न बाड़ी ऊपजै

प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।

जब मैं था तब हरि‍ नहीं, अब हरि‍ है मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।

जिन ढूँढा तिन पाया , गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय।
जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।।

सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप।
जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप।। 

दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान 
'तुलसी ' दया न छोड़िये जब लग घट महिं प्राण 

ग्रंथ  पंथ  सब  जगत के - बात  बतावें  तीन 
राम हृदय - मन में दया - तन सेवा में लीन 



3 comments:

  1. School main Hindi class kee yaad dila Dee. Thankyou. Good recollections.

    ReplyDelete
  2. Very nice.....It all lines are very necessary for saint life....Also those who want success and peace in life....

    ReplyDelete

When the mind is clear

When the mind is clear, there are no questions. But ... When the mind is troubled, there are no answers.  When the mind is clear, questions ...