दूसरों के दोष ढूँढना आसान है।
लेकिन सच्ची बुद्धिमानी तो अपनी ग़लतियाँ - अपने दोषों को पहचानने में है।
दूसरों की आलोचना और निंदा करना कठिन नहीं होता।
कोई भी कर सकता है।
लेकिन अपनी भूलों को स्वीकार करना और सुधारना सबसे कठिन काम है।
जैसा कि सद्गुरु कबीर जी कहते हैं:
"बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय
जो तन देख्या अपना, तो मुझ से बुरा न कोय।"
अपने भीतर देखने - अपनी गलतियों को स्वीकार करने
और उन्हें सुधारने का प्रयत्न करने के लिए बहुत साहस और शक्ति चाहिए।
" राजन सचदेव "
एकदम सही।
ReplyDeleteआइना देखना आसान काम नहीं है, जिगरा चाहिए होती है खुद में खोट ढूंढने के लिए।
कहे हरदेव अगर निंदा से बाज नहीं तू आएगा , निंदक भी कहलायेगा और भक्ति से भी जाएगा 🌼
ReplyDeleteबुरा जो देखन मैं चला!! One of my favorite Doha from Kabir Ji. And I use it often for muself. 🙏🙏🕉🕉
ReplyDeleteABSOLUTELY RIGHT DHAN NIRANKAR JI
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