जब हमें अंततः यह समझ आ जाता है कि जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं है, तो हम अधिक सहिष्णु, धैर्यवान और कम आलोचनात्मक हो जाते हैं।
संसार की हर वस्तु और परिस्थिति की क्षणभंगुर प्रकृति को पहचान कर उसे स्वीकार कर लेना हमें आक्रोश से बचाता है - अपनी एवं दूसरों की कमियों अथवा ख़ामियों को स्वीकार करने और जीवन को अधिक करुणा के साथ देखने में मदद करता है।
जब हमें वास्तव में यह अहसास हो जाता है कि सुख और दुख, सफलता और विफलता, रिश्ते और परिस्थितियाँ सभी अस्थायी हैं, तो हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है।
हम संसार को एक नए दृष्टिकोण से देखने लगते हैं।
हमें यह समझ में आ जाता है कि हर इक चीज़ और हर एक परिस्थिति परिवर्तनशील है और सब कुछ निरंतर बदल रहा है। जैसे समय के साथ हम - हमारे विचार और स्वभाव बदलते रहते हैं, वैसे ही हमारे आस-पास के लोग और उनके विचार भी बदलते रहता हैं।
यह समझ अथवा ज्ञान हमारे हृदय को कोमल और विशाल बनाती है, और हम दूसरों की कमजोरियों और ग़लतियों को अधिक सहनशीलता से स्वीकार करने लगते हैं और अपने मन में उनके लिए कोई ग़लत अवधारणा कायम कर के जल्दी में कोई निर्णय नहीं लेते।
अस्थायित्व और नश्वरता के सिद्धांत को अपनाकर, हम स्वयं को अनावश्यक उद्वेग और पीड़ा से मुक्त कर के आंतरिक शांति का द्वार खोल सकते हैं।
" राजन सचदेव "
बात तो सही और सच्ची है। परंतु बहुत मुश्किल लगता है। आशीर्वाद बख़्शो जी, जीवन में ऐसा कर पाऊं जी। धन निरंकार जी।
ReplyDeleteमैं तो ये सब अपने लिए - स्वयं को समझाने और याद करवाने के लिए लिखता हूँ जी औरों को समझाने के लिए नहीं - इसीलिए मैंने "आप" नहीं बल्कि "हम" शब्द का उपयोग किया है 🙏🙏🙏
DeleteVery true. Bahut hee Uttam aur shikhshadayak Bachan ji.🙏
ReplyDeleteYes that’s right 🙏🏿
ReplyDelete🙏
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