Wednesday, February 26, 2025

भगवान शिव की छवि का प्रतीकात्मक अर्थ

                     हिंदू देवी देवताओं के प्रतीकात्मक स्वरुप - छवियाँ और उनका महत्व 

भगवान शिव, विष्णु, गणेश, सरस्वती और दुर्गा जैसे हिंदू देवताओं की छवियाँ उनके वास्तविक चित्र नहीं, बल्कि प्रतीकात्मक रुप हैं 
- ये गहरे अर्थों वाले प्रतीक होते हैं।

भारत के प्राचीन ऋषि मुनि और विद्वान गूढ़ सत्य को सरल तरीके से समझाने के लिए रुपकों और प्रतीकों का उपयोग करते थे। इसलिए, हिंदू दर्शन को वास्तव में समझने के लिए, इसके प्रतीकवाद को समझना आवश्यक है।  

सत्संग, संत समागम और ऐसे पवित्र धार्मिक पर्व हमें याद दिलाते हैं कि हमें हमेशा सच्चाई और धर्म के मार्ग पर बने रहना चाहिए।  
ये पर्व हमें निरंतर धर्म के मार्ग पर चलने और अपने आध्यात्मिक लक्ष्य पर अडिग रहने की प्रेरणा देते हैं।  
लगभग बीस वर्ष पहले, मैंने नैशविल (टेनेसी) में महाशिवरात्रि के अवसर पर भगवान शिव की छवि में निहित प्रतीकवाद की चर्चा की थी।  
अभी कुछ लोगों ने इसे दोबारा पोस्ट करने का अनुरोध किया है। 

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                              भगवान शिव: आदि योगी तथा आदि गुरु   

भगवान शिव को आदि योगी (प्रथम योगी) और आदि गुरु  (प्रथम एवं सनातन गुरु) माना जाता है।  

योगी और  गुरु शब्द आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं।  
योगी का अर्थ है जिसने आत्मज्ञान प्राप्त कर लिया - परम तत्व के साथ जिसका योग अर्थात मिलाप हो गया।   
गुरु का अर्थ है जो सत्य का ज्ञान प्रदान करके अज्ञानता का अंधकार दूर करता है।

परंतु कोई गुरु - यदि वह स्वयं आत्मज्ञान को प्राप्त योगी न हो तो वह एक सच्चा गुरु नहीं हो सकता।  
जो स्वयं ब्रह्मज्ञानी न हो, वह दूसरों को सही राह नहीं दिखा सकता।  

उसी प्रकार, यदि एक योगी अपने ज्ञान को दूसरों के साथ साझा नहीं करता, तो उसका योग अधूरा है।  
यदि वह अपने ज्ञान को केवल अपने तक सीमित रखता है और दूसरों को मार्ग नहीं दिखाता, तो वह स्वार्थी कहलाएगा।  
शिव दोनों का प्रतीक हैं—वह परम योगी भी हैं और सनातन गुरु भी।   




                   

















                                    भगवान शिव की छवि में निहित प्रतीकवाद

                                    1. परिवेश - ध्यान मुद्रा और शांत वातावरण
भगवान शिव ध्यान मुद्रा में शांत और स्थिर वातावरण में विराजमान हैं।
यह इस तथ्य को दर्शाता है कि ज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति के लिए उपयुक्त वातावरण आवश्यक है।
एक साधक को आत्म ज्ञान एवं आत्म-मंथन के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना चाहिए या ऐसा वातावरण खोजने का प्रयास करना चाहिए।

                                           2. बंधी हुई जटाएं
शिव के शीश पर बंधी हुई जटाएँ अनुशासन और मानसिक नियंत्रण का प्रतीक हैं।
बिखरे हुए बाल अनियंत्रित विचारों और इच्छाओं का प्रतीक होते हैं
जबकि सिर पर बंधी हुई जटाएँ अनुशासन और संयम का प्रतीक हैं जो मन और बुद्धि पर प्राप्त नियंत्रण को दर्शाती हैं।

                                          3. शीश पर बहती गंगा की धारा
पुराणों के अनुसार, जब गंगा स्वर्ग से धरती पर उतरी, तो शिव ने उसे अपनी जटाओं में धारण कर धीरे-धीरे धरती पर प्रवाहित किया।
गंगा ज्ञान की उस दिव्य धारा का प्रतीक है, जिसे शिव ने उच्च लोक अर्थात विकसित आत्म शक्ति के द्वारा प्राप्त किया - उसे अपने भीतर आत्मसात किया और फिर संसार के कल्याण के लिए बाँटा।

                                            4. अर्ध चंद्र
चंद्रमा शीतलता, धैर्य और मानसिक संतुलन का प्रतीक है।
यह हमें सिखाता है कि आध्यात्मिक यात्रा में मन का शांत और संतुलित रहना आवश्यक है।
आध्यात्मिक उन्नति के लिए मन को शांत और स्थिर रखना ज़रुरी है।

                                           5. मस्तक पर तीसरा नेत्र
शिव के मस्तक पर तीसरा नेत्र - तीसरी आँख - विवेक, अंतर्दृष्टि और परम सत्य को देखने की शक्ति का प्रतीक है।
यह समझाता है कि सत्य को केवल भौतिक आँखों से नहीं, बल्कि तीसरे नेत्र अर्थात ज्ञान चक्षु से देखने की आवश्यकता है।

                                                6. कंठ में लिपटा नाग (सर्प)
सर्प नकारात्मकता, अहंकार और भय का प्रतीक है।
शिव इसे अपने गले में धारण करके यह समझा रहे हैं कि नकारात्मक शक्तियों से डरने या भागने की बजाय हमें उन पर नियंत्रण रखने की कोशिश करनी चाहिए।

                                                        7. नीलकंठ (नीला गला)
समुद्र मंथन के दौरान, जब अमृत और विष उत्पन्न हुए, तो सभी ने विष को ग्रहण करने से इंकार कर दिया।
शिव ने इसे स्वेच्छा से ग्रहण किया, लेकिन उसे अपने कंठ में ही रोक लिया - गले से नीचे नहीं उतरने दिया
अर्थात् नकारात्मकता के अस्तित्व को स्वीकार तो किया, परंतु उसे अपने भीतर उतरने नहीं दिया।
यह हमें सिखाता है कि जीवन में नकारात्मकता और विषमताएँ तो आएँगी, लेकिन उन पर नियंत्रण रखते हुए उन्हें अपने मन-मस्तिष्क पर प्रभावी नहीं होने देना चाहिए।
अगर कहीं नकारात्मकता दिखाई दे या सुनाई दे तो उसे आत्मसात करने की बजाए नज़रअंदाज़ कर देना चाहिए - गले से नीचे अर्थात पेट में न जाने दिया जाए।

                                    8. शरीर पर भस्म अर्थात राख का लेप
शिव का शरीर भस्म से ढका हुआ है, जो हमें यह याद दिलाता है कि शरीर नश्वर है और अंततः मिट्टी में मिल जाएगा। केवल आत्मा ही सत्य है, जो शाश्वत और अमर है।
इससे हमें भौतिक शरीर के अहंकार को त्यागकर शाश्वत जीवन की सच्चाई को समझने की प्रेरणा मिलती है।

                                         9. त्रिशूल
त्रिशूल तीन गुणों - सत्व, रजस और तमस का प्रतीक है।
ध्यान मुद्रा में, शिव का त्रिशूल थोड़ी दूरी पर भूमि में गड़ा होता है - जो यह बताता है कि वह तीनों गुणों से परे हैं। त्रिगुणातीत हैं।
परंतु आवश्यकता पड़ने पर अन्याय और अधर्म का नाश करने के लिए वह इसे धारण भी कर सकते हैं।

                                             10. डमरु
प्राचीन समय में भारतीय गाँवों में यदि कोई घोषणा करनी हो तो लोगों को इकट्ठा करने के लिए डमरु का प्रयोग किया जाता था। डमरु बजा कर लोगों को एकत्रित होने का संदेश दिया जाता था।
शिव के हाथ में डमरु यह संकेत देता है कि एक सच्चा गुरु अपने ज्ञान को अपने तक ही सीमित नहीं रखता, बल्कि सभी साधकों को ज्ञान प्राप्ति के लिए आमंत्रित करता है।
डमरु ज्ञान के प्रसार और गुरु के आमंत्रण का प्रतीक है।

                                            11. कमंडल
शिव के सामने रखा एक छोटा सा कमंडल सादगी और संतोष का प्रतीक है।
उनकी आवश्यकताएँ इतनी सीमित हैं कि वे एक छोटे से पात्र में ही समा जाती हैं।
अर्थात सच्चा योगी या गुरु धन-संपत्ति इकट्ठा करने की बजाए संतोष, त्याग और सरलता में जीवन व्यतीत करता है।
ये बताता है कि एक सच्चे योगी या गुरु को धन संचय में नहीं, बल्कि त्याग और संतोष में जीवन बिताना चाहिए।
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                                           आध्यात्मिक संदेश
भगवान शिव की प्रत्येक प्रतीकात्मक छवि अपने अंदर गहरे अर्थ समेटे हुए है, जो साधकों को ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग पर अग्रसर करती है।
ये प्रतीक हमें ज्ञान, अनुशासन और आत्म-साक्षात्कार का संदेश देते हैं।
इन प्रतीकों के सही अर्थ हमें अपने आध्यात्मिक पथ को स्पष्टता और उद्देश्य के साथ समझने और जीवन में सही दिशा अपनाने में सहायक हो सकते हैं।
सत्संग, संत समागम, और पवित्र त्योहारों का उत्सव हमें धर्म के मार्ग पर बनाए रखने और अपने लक्ष्य से न भटकने की निरंतर प्रेरणा देते हैं।
इसलिए, हमें इन पावन पर्वों को केवल एक परंपरा के रुप में नहीं, बल्कि इनमें निहित गूढ़ संदेश को समझकर श्रद्धा भाव के साथ मनाना चाहिए। क्योंकि शिवरात्रि तथा अन्य पर्व मनाने का वास्तविक उद्देश्य स्वयं को और सभी साथियों को सत्य के पथ की ओर प्रेरित करना है।
इसलिए - इस शुभ महाशिवरात्रि के अवसर पर हम सभी सत्य, धर्म और न्याय के मार्ग पर चलने का संकल्प लें।
                                                          "राजन सचदेव "

9 comments:

  1. जहर को पिनेवालें ही शिव होतें है, उसे उगलने वाले तो साँप होते है।

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  2. 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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  3. Deeply and Beautifully explained

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  4. As usual your thorough explanation uplifts our mind and spirit. 🙏🙏🙏

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    1. Thank you, Dr. Sudha ji - You are always very kind and generous

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  5. बहोत खूब excellent description.

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  6. Very logical and knowledgeable view!

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  7. Beautiful and enlightening. Thank you as always 🙏

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  8. Thanks Rajanjee for explaining the meaning so beautifully and clearly 🙏

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