जिन खोजा तिन पाया गहरे पानी पैठ
मैं बौरी ढूंडन गई - रही किनारे बैठ
(सद्गुरु कबीर जी)
जो लोग समुद्र की गहराई में गोता लगाते हैं, मोती उन्हीं को मिलते हैं
केवल वो ही इस खज़ाने को प्राप्त कर सकते हैं ।
ढूंढ़ने तो हम भी गए - हम भी असली मोतियों की तलाश में निकले
परन्तु मूर्खतापूर्वक किनारे पर ही बैठे रह गए।
लंबे समय से हम आध्यात्मिकता के सागर के किनारे पर चल रहे हैं -
लेकिन सागर की गहराई में डुबकी नहीं लगा पाते
क्योंकि हम अपने अहंकार रुपी वस्त्रों को गीला नहीं होने देना चाहते। उन्हें भीगने नहीं देते।
अपने अहम को बचाने के लिए प्रतिष्ठा और अहंकार रुपी कवच पहने रखते हैं।
कबीर जी फ़रमाते हैं कि यदि हमें असली खज़ाना प्राप्त करना है तो हमें इस आध्यात्मिकता के सागर की गहराई में जाना होगा -
इस में गहरा उतरना होगा - और नग्न होकर - अर्थात पद प्रतिष्ठा एवं अहंकार रुपी भारी कवच से मुक्त होकर गोता लगाना होगा।
अक़सर हम हर जगह अपनी पद - प्रतिष्ठा, विशिष्टता, और अन्य लोगों से श्रेष्ठ और ऊंचा होने की मिथ्या भावना को साथ ले कर चलते हैं
जहां भी जाते हैं - अपने पद रुपी अहंकार का कवच पहने रहते हैं और अपने मन को विशुद्ध प्रेम रुपी जल से भीगने नहीं देते।
अपने अहम को बचाने के चक्कर में हम प्रभु नाम रुपी सागर में गहरा गोता लगाने से वंचित रह जाते हैं।
' राजन सचदेव '
Very Ture. Thank you always for your guidance.🙏
ReplyDeleteहरदेव बानी ५१-९,१०
ReplyDeleteऊपर ऊपर तैरने वाला हासिल क्या कर पायेगा।
गहराई में जाने वाला मोती चुनकर लायेगा।
Bilkul Satya ji
ReplyDeleteAtti uttam, Uncle ji 🙏
ReplyDelete