Tuesday, August 22, 2023

पंच मनाये पंच रुसाये - पंच वसाये, पंच गवाये

कुछ दिन पहले गुरबानी का एक सुंदर शब्द पढ़ने का अवसर मिला।  

“पंच मनाये पंच रुसाये - पंच वसाये, पंच गवाये
इन बिधि नगर वुट्ठा मेरे भाई - दुरत गया गुरु ज्ञान द्रिड़ाई 
साच धर्म की कर दीनी वार - फरह-ए-मुहकम गुरु ज्ञान विचार"

अर्थात:
पाँच मना लिए  - पाँच दूर कर दिए 
पाँच को अपने अंदर बसा लिया - और पाँच का त्याग कर दिया 
इस तरह मैंने अपने अस्तित्व रुपी नगर का पुनर्निर्माण किया।
जब गुरु द्वारा दिया गया आध्यात्मिक ज्ञान मन में समाहित हो गया तो सभी विकार दूर हो गए।
चारों ओर सच्चे धर्म की बाड़ का निर्माण कर लिया 
और गुरु ज्ञान पर विचार एवं कर्म करके सच्चे शाश्वत सुख को प्राप्त कर लिया।           
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यहां चार बार पांच-पांच का ज़िक्र हुआ है।
1. पांच ज्ञान इंद्रियां - 
     आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा।

2. पांच वृत्तियाँ  -   रुप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श
    प्रत्येक ज्ञान-इंद्रिय की अपनी अपनी वृत्ति एवं लालसा होती है -
 आंखों की चाहत सुंदरता देखने की है और जीभ की लालसा है अलग-अलग भोजन और स्वाद। कान का विषय है सुनना और नाक का विषय है सुगंध। त्वचा कोमल मधुर स्पर्श की कामना करती है। 
प्रत्येक इंद्रिय की अपनी अपनी वृत्ति होती है जिन्हें वो प्राप्त करने की कोशिश करती है।
इन पांच ज्ञान इंद्रियों को नियंत्रण में रख कर हम उनसे जुड़ी हुई पांच वृत्तियों को नियंत्रित कर सकते हैं और उनसे उचित तरीके से लाभ उठा सकते हैं।

3. पाँच प्रतिष्ठापित करने - अपनाने योग्य:
     ज्ञान, ध्यान, तप, संतोख और विचार
ज्ञान - अर्थात सत्य का ज्ञान
ध्यान - सत्य का स्मरण एवं कर्म में अवतरण - ज्ञान को कर्म में धारण करना 
तप - अर्थात कठोर अभ्यास - उद्देश्य की दृढ़ता और हर उस चीज़ का त्याग जो धर्म के मार्ग में बाधा बन सकती है।
संतोख - संतोष
विचार - निरंतर चिंतन एवं आत्मनिरीक्षण।

कहीं कहीं इन पाँच गुणों के कुछ भिन्न रुप अथवा संस्करण भी मिलते हैं
जैसे कि -
सत, संतोख, दया, तप, विचार
अथवा - सत, संतोख, दया, धर्म और तप-त्याग आदि।
बेशक शब्द अलग हैं लेकिन उन सभी का अर्थ लगभग एक जैसा ही है।
सत -अथवा सत्य - ज्ञान और ध्यान दोनों का प्रतीक हो सकता है - क्योंकि सत्य का ज्ञान यदि कर्म में न हो तो उसका कोई लाभ नहीं हो सकता।
जब सत्य का बोध हो जाता है तो धर्म, दया और संतोख - स्वतः ही व्यक्ति के स्वभाव का एक अंग बन जाते हैं।

4. पाँच का त्याग:
     काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार 
हालाँकि ये पाँचों मानव स्वभाव के अभिन्न अंग हैं और कुछ हद तक, दैनिक कामकाज में इनकी आवश्यकता भी होती है।
लेकिन इन पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। अति हर चीज़ की बुरी होती है.
अगर सही तरीके से उपयोग किया जाए तो ये पांच वृत्तियाँ हमारे लिए लाभदायक हो सकती हैं।
लेकिन यदि इन्हें नियंत्रित न किया जाए, तो ये अवगुण बन जाते हैं और जीवन में आगे बढ़ने में  बाधा बन जाते हैं - हमें  जीवन के किसी भी क्षेत्र में प्रगति नहीं करने देते।

ज्ञान को अपने मन में बसा कर हम इन भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं और इन की अधिकता को दूर कर सकते हैं।
अपने चारों ओर सच्चे धर्म की बाड़ बनाकर, हम इन अवगुणों को अपने अस्तित्व रुपी नगर से दूर रख सकते हैं।
ज्ञान के निरंतर चिंतन से हम सच्चा सुख और शाश्वत शांति प्राप्त कर सकते हैं।
                                        " राजन सचदेव "

नोट: फरह-ए-मुहकम एक फ़ारसी शब्द है जो आमतौर पर अभिवादन में इस्तेमाल किया जाता है।
फरह = ख़ुशी
मुहकम = स्थायी, शाश्वत आदि।

यदि फ़ारसी में किसी से पूछा जाए - चतोर अस्त? (आप कैसे हैं)
तो सामान्य उत्तर होता है -- फरह-ए-मुहकम - 
अर्थात बहुत खुश हूं - बहुत अच्छा हूं, इत्यादि। 

4 comments:

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