Wednesday, August 30, 2023

निगाहों में जो मंज़र हो - What we see may not be all

निगाहों में जो मंज़र हो वही सब कुछ नहीं होता 
बहुत कुछ और भी प्यारे पस-ए-दीवार होता है 
                           " ज़फ़र कमाली "

Nigaahon mein jo manzar ho vahi sab kuchh nahin hota 
Bahut kuchh aur bhee pyaaray pas-e-deevaar hota hai
                                   " Zafar Kamali"

Things may not always be the same as they appear to be.
There is always so much more behind the curtains that we don't see.

Manzar     =.    Scene, Appearance 
Pas-e-diwar  =  Behind the wall 

Monday, August 28, 2023

Letting Go

                              
               Letting Go

We must let go of those hurtful things 
That burn and hiss And bite and sting

That hurt the heart, And clip our wings  
Where we can't fly - And we can't sing

I think it's time To turn the page 
Turn to the light And quiet the rage

Forgive the slights We cannot change 
And spread our wings To escape this cage
                By: Jimmy Osborne 
               (Taken from the web)

Sunday, August 27, 2023

No one is Higher or Lower

Khareednay ko jisay kum thi daulat-e-duniya 
Kisi Kabeer ki mutthi mein vo Ratan dekha 

Badaa na chhotaa koyi farq bas nazar ka hai 
Sabhi pay chaltay samay ek saa kafan dekha 
    
  By:  Padma Bhushan Dr. Gopaldas 'Neeraj' 
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The whole world's wealth was not enough to buy it -
- I saw that jewel in the hand of a Kabeer

There is no one big or small - higher or lower
It's just a matter of outlook - of belief or perception. 
I saw everyone wrapped in the same shroud when they left this world.

बड़ा न छोटा कोई

ख़रीदने को जिसे कम थी दौलत-ए-दुनिया
किसी कबीर की मुट्ठी में वो रतन देखा

बड़ा न छोटा कोई फ़र्क़ बस नज़र का है
सभी पे चलते समय एक सा कफ़न देखा
                         ~ पद्मभूषण डॉ. गोपालदास 'नीरज' ~

Friday, August 25, 2023

सदियों से आता था छत पे हमारी For centuries, it came to our roof

सदियों से आता था छत पे हमारी 
कल चाँद की छत पे हम भी जा उतरे 

चेहरे पे उसके हैं क्यों दाग़ काले 
देखें छुपा है क्या आँचल में उसके 

(ये)जिज्ञासा मानव को ले गई वहां तक 
भारत के सपने हुए 'राजन '  पूरे 
            " राजन सचदेव "

Sadiyon say aataa tha chhat pay hamaari  
Kal Chaand ki chhat pay hum bhi jaa utray

Chehray pay uskay hain kyon daag kaalay
Dekhen chhupaa hai kya aanchal me uskay 

(Ye) Jigyaasa  Maanav ko lay gayi vahaan tak
Bharat  kay sapnay huye 'Rajan' pooray 
                   " Rajan Sachdeva "

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For centuries, it used to come to our roof 
Yesterday, we landed on the roof of the moon

Why are there black spots on its face?
What is there - that is hidden in its garments? 

This curiosity has taken the man up there
 The Dream of India has been fulfilled
                            "Rajan Sachdeva " 

Thursday, August 24, 2023

Clinging to the hollow trees खोखले पेड़ों से लिपट गये

कुछ ऐसे बदहवास हुए ऑधियों से लोग 
जो पेड़ खोखले थे उन्हीं से लिपट गये
                                   ताहिर तिलहरी

Kuchh aesay bad-hawaas huye aandhion say log
Jo ped khokhlay thay - unhin say lipat gaye 
                                       " Tahir Tilhari "
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Some people became so desperate during the storm 
that they started clinging to the dead trees - 
     - that themselves were hollow inside. 

کچھ ایسے بدحواس ہوئے آندھیوں سے لوگ 
جو پیڈ کھوکھلے تھے انہیں سے لپٹ گئے 

Wednesday, August 23, 2023

चंद्रयान 3 - विज्ञान और आध्यात्मिकता

 






































अध्यात्म के क्षेत्र में भारत हमेशा से ही अग्रणी रहा है - 
अब यह नये वैज्ञानिक युग में भी अग्रणी हो रहा है।

जीवन विज्ञान और अध्यात्म दोनों का मिश्रण होना चाहिए।

विज्ञान हमें तर्कसंगत और तर्कपूर्ण तरीके से सोचने में मदद करता है।
यह हमें भौतिक दुनिया में प्रगति करने में मदद करता है - हमारे जीवन को अधिक आरामदायक और आनंददायक बनाने के लिए प्रयत्न करता है ।
अध्यात्म हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर अग्रसर रखता है।

विज्ञान निरंतर हमें लम्बे और स्वस्थ जीवन जीने में मदद करने के लिए नई नई तकनीकों की खोज करने का प्रयास करता रहता है -
आध्यात्मिकता हमें मानवता के मूल्यों को बनाए रखने में मदद करती है।

विज्ञान हमें चंद्रमा और अन्य ग्रहों पर ले जा रहा है -
और आध्यात्मिकता हमें पृथ्वी पर स्थिर रखती है -
न केवल समाज और लोगों के साथ - बल्कि सभी प्राणियों के साथ स्वस्थ संबंध बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

हमारे जीवन में विज्ञान और आध्यात्मिकता - दोनों की महत्वपूर्ण भूमिका है।
और ऐसा लगता है कि अब हम दोनों दिशाओं में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं।
सर्वशक्तिमान ईश्वर हमें इन दोनों क्षेत्रों में प्रगति करने में सहायता करें।
                             " राजन सचदेव " 

Chandrayaan lands on the Moon - Science and Spirituality


For centuries, India has been leading in the field of Spirituality - Aadhyatmikta - 
Now it has entered to explore new scientific adventures as well.

Life should be a combination of both - Science and Spirituality. 

Science helps us think rationally and logically. 
It helps us to make progress in the physical world - to make our lives more comfortable and enjoyable. 
Spirituality keeps us on the path of righteousness.  

Science is constantly striving to discover new technologies to help us live longer and healthier lives.
Spirituality helps us maintain the values of humanity.

While Science is taking us to the moon and other planets - 
Spirituality keeps us grounded on the Earth - 
Inspires us to maintain a healthy relationship - not only with society and people – but with all living beings - including nature as well.

Science and spirituality both have an important role to play in our lives.
And it seems that we're trying to move forward in both these directions now.
May Almighty help us to make progress in both these realms.
                            "Rajan Sachdeva " 

Tuesday, August 22, 2023

पंच मनाये पंच रुसाये - पंच वसाये, पंच गवाये

कुछ दिन पहले गुरबानी का एक सुंदर शब्द पढ़ने का अवसर मिला।  

“पंच मनाये पंच रुसाये - पंच वसाये, पंच गवाये
इन बिधि नगर वुट्ठा मेरे भाई - दुरत गया गुरु ज्ञान द्रिड़ाई 
साच धर्म की कर दीनी वार - फरह-ए-मुहकम गुरु ज्ञान विचार"

अर्थात:
पाँच मना लिए  - पाँच दूर कर दिए 
पाँच को अपने अंदर बसा लिया - और पाँच का त्याग कर दिया 
इस तरह मैंने अपने अस्तित्व रुपी नगर का पुनर्निर्माण किया।
जब गुरु द्वारा दिया गया आध्यात्मिक ज्ञान मन में समाहित हो गया तो सभी विकार दूर हो गए।
चारों ओर सच्चे धर्म की बाड़ का निर्माण कर लिया 
और गुरु ज्ञान पर विचार एवं कर्म करके सच्चे शाश्वत सुख को प्राप्त कर लिया।           
                ~~~~~~~~~~~~~~

यहां चार बार पांच-पांच का ज़िक्र हुआ है।
1. पांच ज्ञान इंद्रियां - 
     आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा।

2. पांच वृत्तियाँ  -   रुप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श
    प्रत्येक ज्ञान-इंद्रिय की अपनी अपनी वृत्ति एवं लालसा होती है -
 आंखों की चाहत सुंदरता देखने की है और जीभ की लालसा है अलग-अलग भोजन और स्वाद। कान का विषय है सुनना और नाक का विषय है सुगंध। त्वचा कोमल मधुर स्पर्श की कामना करती है। 
प्रत्येक इंद्रिय की अपनी अपनी वृत्ति होती है जिन्हें वो प्राप्त करने की कोशिश करती है।
इन पांच ज्ञान इंद्रियों को नियंत्रण में रख कर हम उनसे जुड़ी हुई पांच वृत्तियों को नियंत्रित कर सकते हैं और उनसे उचित तरीके से लाभ उठा सकते हैं।

3. पाँच प्रतिष्ठापित करने - अपनाने योग्य:
     ज्ञान, ध्यान, तप, संतोख और विचार
ज्ञान - अर्थात सत्य का ज्ञान
ध्यान - सत्य का स्मरण एवं कर्म में अवतरण - ज्ञान को कर्म में धारण करना 
तप - अर्थात कठोर अभ्यास - उद्देश्य की दृढ़ता और हर उस चीज़ का त्याग जो धर्म के मार्ग में बाधा बन सकती है।
संतोख - संतोष
विचार - निरंतर चिंतन एवं आत्मनिरीक्षण।

कहीं कहीं इन पाँच गुणों के कुछ भिन्न रुप अथवा संस्करण भी मिलते हैं
जैसे कि -
सत, संतोख, दया, तप, विचार
अथवा - सत, संतोख, दया, धर्म और तप-त्याग आदि।
बेशक शब्द अलग हैं लेकिन उन सभी का अर्थ लगभग एक जैसा ही है।
सत -अथवा सत्य - ज्ञान और ध्यान दोनों का प्रतीक हो सकता है - क्योंकि सत्य का ज्ञान यदि कर्म में न हो तो उसका कोई लाभ नहीं हो सकता।
जब सत्य का बोध हो जाता है तो धर्म, दया और संतोख - स्वतः ही व्यक्ति के स्वभाव का एक अंग बन जाते हैं।

4. पाँच का त्याग:
     काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार 
हालाँकि ये पाँचों मानव स्वभाव के अभिन्न अंग हैं और कुछ हद तक, दैनिक कामकाज में इनकी आवश्यकता भी होती है।
लेकिन इन पर नियंत्रण रखना आवश्यक है। अति हर चीज़ की बुरी होती है.
अगर सही तरीके से उपयोग किया जाए तो ये पांच वृत्तियाँ हमारे लिए लाभदायक हो सकती हैं।
लेकिन यदि इन्हें नियंत्रित न किया जाए, तो ये अवगुण बन जाते हैं और जीवन में आगे बढ़ने में  बाधा बन जाते हैं - हमें  जीवन के किसी भी क्षेत्र में प्रगति नहीं करने देते।

ज्ञान को अपने मन में बसा कर हम इन भावनाओं को नियंत्रित कर सकते हैं और इन की अधिकता को दूर कर सकते हैं।
अपने चारों ओर सच्चे धर्म की बाड़ बनाकर, हम इन अवगुणों को अपने अस्तित्व रुपी नगर से दूर रख सकते हैं।
ज्ञान के निरंतर चिंतन से हम सच्चा सुख और शाश्वत शांति प्राप्त कर सकते हैं।
                                        " राजन सचदेव "

नोट: फरह-ए-मुहकम एक फ़ारसी शब्द है जो आमतौर पर अभिवादन में इस्तेमाल किया जाता है।
फरह = ख़ुशी
मुहकम = स्थायी, शाश्वत आदि।

यदि फ़ारसी में किसी से पूछा जाए - चतोर अस्त? (आप कैसे हैं)
तो सामान्य उत्तर होता है -- फरह-ए-मुहकम - 
अर्थात बहुत खुश हूं - बहुत अच्छा हूं, इत्यादि। 

Panch Manaaye Panch Rusaaye - Reconciled five -Estranged five

A few days ago, I came across this beautiful Shabd in Gurbani:

"Panch Manaaye Panch Rusaaye - Panch Vasaaye, Panch Gavaaye 
In bidhi nagar vuthaa meray bhayi - Durat gayaa Guru Gyaan Dridhaayi
Saach Dharm ki kar deeni Vaar - Farah-e-Muhkam Gur Gyan Vichaar"

Meaning:
Reconciled five - and estranged five 
Enshrined five within - and cast out the five.
This is how I rebuilt the city of my being.
All vices departed when the Gyan - the spiritual wisdom given by the Guru was ingrained in the mind.
Built the fence of the True Dharma around it
and attained true eternal happiness.
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There are four sets of Fives mentioned here.
1. Five senses - the Gyan Indriya - 
    Eyes, Ears, Nose, Tongue, and Skin.

2. Five passions - 
   Each Gyan-indriya - each sense organ has its own cravings - 
   Roop, Ras, Gandh, Shabd, and Sparsh 
   (Vision, Taste, Smell, Sound, and Touch)
The eye's passion is to see beauty, and the tongue's craving is to taste many different foods and flavors. 
Each sense organ has its own desire and passion. 
By reconciling and controlling the five sense organs, we can appropriately manage and regulate the five passions associated with them. 

3. Five things to enshrine - to adopt: 
    Gyan, Dhyan, Tap, Santokh, and Vichar 
Gyan - Wisdom, Knowledge of the Truth
Dhyan - Remembrance and Implementation of the Truth
Tap -  Rigorous practice - tenacity - the persistence of purpose and sacrificing everything that might become an obstacle.
Santokh - Contentment 
Vichar    - Constant contemplation, introspection. 

There are a few different versions of these Five traits 
such as -
Sat, Santokh, Daya, Tap, Vichar 
Or- Sat, Santokh, Daya, Dharm, and Tap-Tyag, etc.
Different words may be used in the different versions but the meaning is pretty much the same in all of them. 
Sat - the ultimate Truth - can symbolize Gyan and Dhyan both - the knowledge as well as the implementation of the Truth. 
When the Truth is realized, Dharm, Daya, and Santokh -  righteousness, kindness, and contentment automatically become a part of one's nature. 

4. Five to cast out:
    Kaam, Krodh, Lobh, Moh, and Ahankar - 
    That is lust, anger, greed, attachment, and ego respectively.

Though these five are an integral part of human nature and to some extent, they are required in day-to-day functioning. But they must be controlled. 
Excess of everything is bad. 
These five traits can be beneficial if used properly.  
However, if not controlled, these instincts and emotions can become evil vices and obstacles - and will not allow us to progress in any field. 

By inculcating the Gyan in our minds, we can control these emotions and overcome their excess.

By building the fence (Vaar) of True Dharma around, we can keep these demerits and vices out of the city of our being. 
By constant contemplation of the Gyan, we can achieve true happiness and everlasting peace. 
                                       " Rajan Sachdeva"

Note: Farah-e-Muhkam is a Persian word commonly used in greetings. 
Farh = Happiness
-e-     = of
Muhkam  = Permamnent, everlasting, etc. 

If asked Chator Ast? (How are you)
The usual reply is Farah-e-Muhkam - meaning I am very happy - I am very good, etc. 

Expectation or Acceptance? अपेक्षा या स्वीकृति?

We will have fewer disappointments & frustrations 
       If we learn to Accept -  rather than Expect 

यदि हम अपेक्षाओं की बजाय परिस्थितियों को स्वीकार करना सीख लें 
तो हमारी निराशाएँ और कुंठाएं कम हो जाएंगी। 

Monday, August 21, 2023

इंसान और हैवान - मनुष्य एवं पशु

एक गाय को कभी इस बात से ईर्ष्या नहीं होती कि उसके साथ की गाएं उससे ज्यादा दूध क्यों  देती हैं ।
एक बिल्ली ये सोच कर दुखी नहीं होती कि वह कुत्ता क्यों न बनी ।
मुर्गा कभी ये सोच कर उदास नहीं होता कि वह चील की तरह ऊँचा नहीं उड़ सकता।
और खरगोश कभी उड़ने के सपने नहीं देखता।

जानवरों की व्यक्तिगत चेतना बहुत सीमित होती है।
हालाँकि जानवरों को अपनी पहचान तो होती है  - 
लेकिन उन्हें अपने बारे में कोई आलोचनात्मक जागरुकता नहीं होती। 
न तो उनमें अपने जीवन को बेहतर बनाने की कोई इच्छा या क्षमता होती है और न ही दूसरों के जीवन या अपने आसपास के वातावरण को बेहतर बनाने की।
यह प्रावधान तो केवल मनुष्य जाति के पास है।

'स्वयं' का ज्ञान - जागरुकता और बदलाव लाने की इच्छा - अपने और दूसरों के जीवन को एवं आस पास के वातावरण और परिवेश को बेहतर बनाने की इच्छा ही मनुष्य को जानवरों से अलग करती है।

प्राचीन संस्कृत साहित्य की पुस्तक हितोपदेश में एक श्लोक है:
         आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च समानमेतत्पशुभिर्नराणाम्
        धर्मोहि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः

अर्थात - खाना, सोना, डरना और संभोग - ये सभी गतिविधियाँ जानवरों और मनुष्यों के बीच एक समान हैं।
केवल धर्म ही एक अतिरिक्त एवं विशेष तत्व है जो इंसान को पशुओं से अलग करता है। 
धर्म विहीन मनुष्य पशु से भिन्न नहीं है।

लगभग ऐसा ही एक श्लोक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ चाणक्य से भी संबंधित है, जिसमें धर्म शब्द को 'विद्या' से बदल दिया गया है। उनके संस्करण की अंतिम दो पंक्तियाँ हैं:
              “विद्या हि तेषाम् अधिको विशेषो
                विद्या विहीनः पशुभिः समानः”

इस श्लोक का एक हिन्दी संस्करण भी काफी लोकप्रिय है ।
                    निद्रा भोजन भोग भय, एह पशु-पुरख समान
                    ज्ञान अधिक इक नरन महि, ज्ञान बिना पशु जान

बेशक धर्म शब्द को विद्या और हिंदी संस्करण में ज्ञान से बदल दिया गया है लेकिन इन सब का अर्थ एक ही है - संदेश वही है - क्योंकि 'धर्म' और 'ज्ञान' दोनों एक दूसरे के पूरक हैं।
धर्म को जानने और उसका पालन करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता होती है। 
और धर्म एवं कर्म के बिना ज्ञान बेकार है।

ज्ञान प्राप्त करना और मानवता के धर्म का पालन करना केवल ग्रंथों का ही नहीं, बल्कि प्रकृति का भी संदेश है - क्योंकि यही एक गुण है जो मनुष्य को अन्य जीवों से अलग करता है।
पशु साम्राज्य में, जो दूसरों से छीन सकता है - जो दूसरों को नियंत्रित कर सकता है वह उनका नेता बन जाता है।
दूसरी ओर - जो दूसरों को देता है - जो दूसरों की खातिर अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं और हितों का त्याग कर देता है - वह मनुष्यों के बीच एक सम्मानित नेता बन जाता है।
लोग स्वयंमेव ही सम्मान पूर्वक उसके पीछे चलने लगते हैं। 
                                       ' राजन सचदेव '

Humans vs Animals

A cow does not become jealous because her sister in the next stall gives more milk than her.
A cat does not become sad because it wants to be a bulldog.
A turkey does not get depressed because it can't fly like an eagle.
A rabbit does not spend hours trying to learn how to fly.

The individual consciousness of the animals is very limited. 
Though the animals know about their own identity, they do not have any critical awareness of it. Neither do they have any desire or capacity to improve their own life nor the life of others or their surroundings.
This faculty belongs to humans only.
Critical awareness of the ‘Self’ and the desire to make a change - to improve the self and the surroundings, is what sets humans apart from animals.

A shloka in ‘Hitopadesh’, a book from ancient Sanskrit literature, says:

       आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च समानमेतत्पशुभिर्नराणाम्
        धर्मोहि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः

Aahaar-Nidraa-Bhaya-Maithunam cha
Samaanam_aitat_Pashubhir_Naraanaam
Dharmo hi teshaam adhiko vishesho
Dharmena heenah pashubhih samaanah

Eating, sleeping, fearing, and mating - all these activities are similar between animals and humans.
Of them, Dharma is the additional and a special element
Without the Dharma, man is no different than an animal.

A quite similar Shloka is also attributed to Chanakya, the most famous politician of ancient India and the Guru of the great King Chandragupta, in which the word Dharma has been replaced with ‘Vidyaa’ (knowledge). So the last two lines of his version are:
             “Vidyaa hi Teshaam Adhiko Vishesho
               Vidyaa Viheenah Pashubhih Samaanah”

Later, the Hindi version of this Shloka, with the exact same meaning, became more popular among the folks.

                  “Nidraa Bhojan Bhog Bhaya, Eh Pashu-Purakh samaan
                    Gyan adhik ik Naran mahi, Gyan binaa pashu jaan”

Though the word Dharma (Righteousness) has been replaced with Vidyaa in Sanskrit and Gyana in Hindi version, (both of them meaning Knowledge), the message remains the same; because ‘Dharma’ and ‘Gyana’ are both complimentary to each other.
One needs Gyana, (knowledge) to know and follow Dharma. And Gyana without Dharma; without its implementation in life, is useless.

To seek and attain Gyana and follow the Dharma of humanity is not a message of the Holy Scriptures only, but of Nature as well, because that is what sets humans apart from the other species.
In the animal kingdom, the one who can seize and snap from others - the one who can control others becomes the leader. 
On the other hand, the one who can give more - the one who can sacrifice personal desires and interests for the sake of others becomes a respectable leader among humans. 
People invariably start following them with respect and reverence on their own.
                                      ‘Rajan Sachdeva’

Wednesday, August 16, 2023

Don't just see the glitter - Chamak damak naa dekh


Chamak damak naa dekh vay sajṇaa - vekha naa sundar mukhday
Har mukhday day pichhay dil hai - dil day andar dukhday
               ~~~~~~~~~~~~~~~~

                             Translation

Don't just see the glitter - don't just look at the beauty of the face.
Behind every face - there is a heart. 
And within every heart, there is despair and sorrow.  

चमक दमक न देख

चमक दमक न देख वे सजना देख न सुंदर मुखड़े 
हर मुखड़े दे पिच्छे दिल है - दिल दे अंदर दुखड़े 
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ਚਮਕ ਦਮਕ ਨਾ ਦੇਖ

ਚਮਕ ਦਮਕ ਨਾ ਦੇਖ ਵੇ ਸੱਜਣਾ - ਵੇਖ ਨਾ ਸੁੰਦਰ ਮੁੱਖੜੇ 
ਹਰ ਮੁੱਖੜੇ ਦੇ ਪਿੱਛੇ  ਦਿਲ ਹੈ - ਦਿਲ ਦੇ ਅੰਦਰ ਦੁੱਖੜੇ 
               ~~~~~~~~~~~~~~~

Tuesday, August 15, 2023

This is called Spirit

                   जब तक है सांस    Jab Tak Hai Saans
















Celebrate the Freedom of Spirit - Happy Independence Day

जो भरा नहीं  है भावों से - बहती  जिसमें  रसधार नहीं                     
वह हृदय नहीं पत्थर है जिसमें मातृभूमि का प्यार नहीं
              स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं 

























चित्त जेथा भयशून्य ,उच्च जेथा शिर 
ज्ञान जेथा मुक्त जेथा गृहेर प्राचीर
आपन प्रांगणतले दिवसशर्वरी
बसुधारे राखे नाइ खण्ड खण्ड क्षुद्रकरि
               Happy Independence Day.
While we celebrate the independence of our country, 
let us also celebrate the spirit of Freedom within us. 
May our minds be free of hatred, narrow-mindedness - 
flawed concepts, and blind faiths. 

Chitta Jethaa Bhaya Shoonya - Uch jethaa Shir
Gyan jethaa Mukt - Jethaa Graher Pracheer 

Where the mind is free from fear 
and the head is held high; 
Where Gyan -the knowledge is free - (free of false concepts, and blind faiths)
Where the world has not been broken up 
into fragments by the domestic walls 

Where words come out from the depth of truth; 
Where tireless striving stretches its arms 
towards perfection
and flow without any hindrance;

Where the clear stream of reason and thoughts 
has not lost its way 
into the dreary desert sand of lowly habits and deeds; 
Where the valor is not divided into hundreds of different pieces;

Where the mind is led forward by thee 
into ever-widening thought and action–
Into that heaven of freedom, 
my Father, let my country awake. 
           Original in Bengali by Rabindranath Tagore 

Friday, August 11, 2023

दूसरों के साथ होने वाले अन्याय का असर हम पर भी हो सकता है




आमतौर पर जब हम दूसरों के साथ - यहां तक कि अपने समुदाय के लोगों के साथ भी अन्याय होते देखते हैं - 
तो हम सोचते हैं कि इससे हमारा कोई लेना-देना नहीं है - क्योंकि यह हमें व्यक्तिगत रुप से प्रभावित नहीं करता।
हम भूल जाते हैं कि हम सभी एक दुसरे के साथ जुड़े हुए हैं - विशेषकर अपने समुदाय के लोगों के साथ ।
हम भूल जाते हैं कि दूसरों के साथ हो रहे अन्याय का असर देर-सबेर हम पर भी होने वाला है। 
इसलिए, हमें अन्याय के खिलाफ बोलना चाहिए और इसे रोकने का प्रयास करना चाहिए।

Injustice to others can affect us too

A great lesson to be learned against injustice

When we see injustice happening to others - or even to the people within our own community - 
we usually think it's none of our business - because it does not affect us personally.
We forget that we are all connected - 
Especially to the communities we belong to. 
The injustice being done to others is sooner or later going to affect us too. 
Therefore, we must speak up and try to prevent it. 


क्या आप प्रार्थना में विश्वास रखते है?

एक आदमी ने एक प्रसिद्ध चर्च के सामने एक नाइट क्लब/बार खोल दिया।
चर्च के पुजारी और वहां आने वाले प्रभु प्रेमियों को ये ठीक नहीं लगा। 
प्रतिदिन - प्रवचन एवं धर्मोपदेश के बाद चर्च का पुजारी और सभी सत्संगी मिल कर उस  नाइट क्लब के खिलाफ प्रार्थना करते - कि भगवान उस बिज़नेस को फेल कर दें -  नाकामयाब कर दें ताकि वे इसे बंद कर दें।

कुछ दिनों के बाद अचानक उस नाइट क्लब पर बिजली गिरी - आग लग गई और वो क्लब पूरी तरह नष्ट हो गया।
 
नाइट क्लब के मालिक ने चर्च अधिकारियों पर मुकदमा दायर कर दिया -  क्योंकि उसकी नज़र में यह उनकी प्रार्थनाओं का परिणाम था। 
इस विनाश के लिए चर्च जिम्मेदार था और ये सब उनकी प्रार्थनाओं की वजह से हुआ। 

चर्च ने अपनी किसी भी जिम्मेदारी से इनकार करते हुए कहा कि वो किसी भी तरह से इस विनाश के लिए जिम्मेदार नहीं हैं।   

जज ने टिप्पणी करते हुए कहा -
"इस केस पर निर्णय लेना और फैसला सुनाना बहुत कठिन है।
एक तरफ तो हमारे सामने एक नाइट क्लब का मालिक है जिसे प्रार्थना की शक्ति में पूर्ण विश्वास है।
और दूसरी तरफ - एक चर्च है जिसे इस पर कोई विश्वास नहीं - 
वो इस बात से इनकार करते हैं कि प्रार्थनाओं का कोई परिणाम हो सकता है या प्रार्थनाओं से कोई तब्दीली आ सकती है। 

Do you Believe in the Power of Prayer?

A businessman opened a Night club/Bar next to a famous Church.
The priest and the people who attended the church did not like it.
Every day after the sermons, the priest and all the devotees prayed against that nightclub business 
- that God should make that business fail - and they close it.

A few days later, the nightclub was struck by lightning - a fire broke out, and the club was completely destroyed.
 
The club owner sued the Church authorities for the cause of its destruction, as it was a result of their Prayers - the church was responsible for the destruction. 
Church denied any responsibility - saying that it was not responsible for the destruction in any way.

The judge commented -
"It's very difficult to decide and pass judgment on this case.
On one side, we have a nightclub owner who has complete faith and sincerely believes in the Power of Prayer.
And on the other side, we have an entire Church that doesn't believe in it and denies that prayers can have any results or they can bring about any change.

Monday, August 7, 2023

Those who dive deep find Treasure - Jin Khoja tin Paayaa

          Jin Khoja tin paayaa gehray paani paith 
          Main bauri dhoondan gayi - rahi kinaaray baith 
                                                (Sadguru Kabeer Ji) 

Those who dive deep into the ocean - find the treasures.
I also went searching - 
but foolishly stayed sitting on the edge of the shore. 

Pearls are found only by those who dive into the depth of the ocean.
Only they can acquire this treasure.

We have been walking the ocean's edge for a long - 
holding up our robes of ego to keep them dry and unwrinkled - 
holding on to our armors of prestige and ego. 

Kabir ji says that if we want real treasure - 
then we must dive deeper
 - and dive naked - free from the heavy armor that we always carry around.

Too often, we carry the armor of our position – prestige, distinction, and power with us.
Wherever we go - we go with a false sense of superiority over others. 
Wearing the armor of ego - we do not allow our minds to be drenched in the waters of pure love.
In order to save our ego, we are deprived of taking a deep dive into the ocean of the spiritual world - in the pure love of Hari Naam - the Lord's name. 
                           "Rajan Sachdeva "

जिन खोजा तिन पाया गहरे पानी पैठ

              जिन खोजा तिन पाया गहरे पानी पैठ
              मैं बौरी ढूंडन गई - रही किनारे बैठ
                                (सद्गुरु कबीर जी)

जो लोग समुद्र की गहराई में गोता लगाते हैं, मोती उन्हीं को मिलते हैं   
केवल वो ही इस खज़ाने को प्राप्त कर सकते हैं । 
ढूंढ़ने तो हम भी गए - हम भी असली मोतियों की तलाश में निकले 
परन्तु मूर्खतापूर्वक किनारे पर ही बैठे रह गए।

लंबे समय से हम आध्यात्मिकता के सागर के किनारे पर चल रहे हैं -
लेकिन सागर की गहराई में डुबकी नहीं लगा पाते 
क्योंकि हम अपने अहंकार रुपी वस्त्रों को गीला नहीं होने देना चाहते। उन्हें भीगने नहीं देते। 
अपने अहम को बचाने के लिए प्रतिष्ठा और अहंकार रुपी कवच पहने रखते हैं। 

कबीर जी फ़रमाते हैं कि यदि हमें असली खज़ाना प्राप्त करना है तो हमें इस आध्यात्मिकता के सागर की गहराई में जाना होगा - 
इस में गहरा उतरना होगा - और नग्न होकर - अर्थात पद प्रतिष्ठा एवं अहंकार रुपी भारी कवच से मुक्त होकर गोता लगाना होगा।
 
अक़सर हम हर जगह अपनी पद - प्रतिष्ठा, विशिष्टता, और अन्य लोगों से श्रेष्ठ और ऊंचा होने की मिथ्या भावना को साथ ले कर चलते हैं 
जहां भी जाते हैं - अपने पद रुपी अहंकार का कवच पहने रहते हैं और अपने मन को विशुद्ध प्रेम रुपी जल से भीगने नहीं देते।  
अपने अहम को बचाने के चक्कर में हम प्रभु नाम रुपी सागर में गहरा गोता लगाने से वंचित रह जाते हैं। 
                                                    ' राजन सचदेव '

Saturday, August 5, 2023

सुलेख साथी जी की याद में

चले जाते हैं जो दुनिया से - लौट कर नहीं आते 
मगर बन के मधुर यादें हमेशा साथ रहते हैं 

जुदाई जिस्म से हो सकती है, दिल से नहीं होती 
ख़यालों में तो वो अक़्सर हमारे पास रहते हैं 

चले जाते हैं बेशक दूर इस दुनिया को छोड़ कर 
मगर दिल के नगर में तो सदा आबाद रहते हैं 

नहीं आते नज़र आँखों के सामने हमें लेकिन 
वो 'साथी" बन के 'राजन" ज़िंदगी भर साथ रहते हैं 
                              " राजन सचदेव " 
                           (सुलेख साथी जी को समर्पित)

Rev. Sulekh Saathi ji

Chalay  jaatay hain jo duniya say - laut kar nahin aatay 
Magar ban kay madhur yaaden hamesha saath rehtay hain

Judaayi jism say ho sakti hai, dil say nahin hoti 
Khayaalon mein to vo aqsar hamaaray paas rehtay hain 

Chalay jaatay hain beshak door is duniya ko chhod kar 
Magar dil kay nagar mein vo sadaa aabaad rehtay hain 

Nahin aatay nazar aankhon kay saamnay hamen lekin 
Vo 'Sathi" ban kay 'Rajan' zindagi bhar saath rehtay hain
                                      " Rajan Sachdeva " 
                                     (Dedicated to Sulekh 'Sathi' ji)

Thursday, August 3, 2023

परिस्थिति और प्रतिक्रिया

परिस्थितियाँ हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकती हैं -
लेकिन हम उन विभिन्न परिस्थितियों में कैसे प्रतिक्रिया करें- यह हमारे नियंत्रण में - हमारे कंट्रोल में है। 
ये हमारे हाथ में है कि हमारी प्रतिक्रिया बिना सोचे समझे आवेग के साथ हो - 
या ज्ञानपूर्वक - सोच समझ कर परिस्थिति का विश्लेषण करने के बाद।
बेशक यह बात इतनी आसान तो नहीं है - 
लेकिन फिर भी हम अगर हम प्रैक्टिस करें तो अभ्यास के साथ अपनी प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करना सीख सकते हैं।
परिस्थितियाँ हमारे नियंत्रण से बाहर हो सकती हैं - 
लेकिन हमारी प्रतिक्रिया - हमारा निर्णय और दृष्टिकोण हमारे अपने नियंत्रण में हैं।
                                                          ' राजन सचदेव '

Reacting with impulse or wisdom

While our circumstances are beyond our control, 
our choices, decisions, and attitudes are not.
It's in our power to choose how to act or react in different situations. 

Reacting with impulse or wisdom is in our hands. 
How to control impulsive reactions can be learned 
and perfected with practice.
                      

Wednesday, August 2, 2023

जो चला जाता है इस दुनिया को छोड़ कर

कांच के टुकड़ों को फिर जुड़ते नहीं देखा 
मुरझाए फूलों को फिर खिलते नहीं देखा 

जो चला जाता है इस दुनिया को छोड़ कर 
फिर उसे वापिस कभी मुड़ते नहीं देखा 

टूट जाता है अगर डाली से कोई फूल 
फिर उसे उस शाख पे लगते नहीं देखा 

जिस्म के ज़ख़्मों को भरते देखा है लेकिन 
दिल के ज़ख़्मों को कभी भरते नहीं देखा 

दुःख बिछड़ने का सभी को होता है लेकिन 
काम दुनिया का कोई रुकते नहीं देखा  

इक मुसाफ़िर के लिए 'राजन कभी हमने 
क़ाफ़िले को राह में रुकते नहीं देखा   
                     " राजन सचदेव " 

Jo chalaa jaata hai - One who leaves this world

Kaanch kay tukdon ko phir judtay nahin dekha 
Murjhaye phoolon ko phir khiltay nahin dekha 

Jo chalaa jaata hai is duniya ko chhod kar 
Phir usay vapis kabhi mudtay nahin dekha 

Toot jaataa hai agar daali say koyi phool 
Phir usay us shaakh pay lagtay nahin dekha 

Jism kay zakhmon ko bhartay dekha hai lekin 
Dil kay zakhmon ko kabhi bhartay nahin dekha 

Duhkh bichhdnay ka sabhi ko hotaa hai lekin 
Kaam duniya ka kabhi ruktay nahin dekha 

Ik musaafir kay liye 'Rajan' kabhi ham nay 
Qaafilay ko raah mein ruktay nahin dekha
                " Rajan Sachdeva "

                        Translation

Never saw the broken pieces of glass rejoin again
Never saw the withered flowers ever bloom again

Those who go away after leaving this world
Never saw them returning back ever again

If a flower gets broken from the branch
Never saw it rejoining back on that branch again

Healing of the body wounds often we have seen 
But - Never saw the wounds of the heart healed again

Everyone feels the pain of separation from their loved ones - but
Never saw the routines of worldly life stop for them.

If one traveler is left behind - says Rajan
Never saw the whole convoy ever stopping for them.
                           "Rajan Sachdeva "

Tuesday, August 1, 2023

दिल के दो कमरे

शेल्फ पे थीं राम और कृष्ण की मूर्तियां
दीवार पे गुरु नानक की तस्वीर टंगी थी 
मेज पे रखी थी बुद्ध की एक प्रतिमा  
बाईबल के साथ वहां गीता भी पड़ी थी 

ताज़े फूलों का गुलदान भी था मेज़ पर 
कोने में एक शेल्फ किताबों से भरी थी 
फर्श पे बिछा था एक रेशमी कालीन 
कमरे की हर चीज़ करीने से सजी थी 

मैंने कहा - भाई साहिब आप धन्य हैं 
कितना सुंदर आपने ये घर बनाया है 
कितने शौक़ कितनी उमंगों से आप ने
कितनी मेहनत से हर इक कोना सजाया है 

एक एक चीज़ है तारीफ़ के क़ाबिल 
दिल तो चाहता है देखते ही जाइए 
लेकिन वक़्त का तक़ाज़ा भी है सामने 
चलिए अब बाकी का घर भी दिखाइये 

सुन के मेरी बात वो थोड़ा सकपका गए  
ऐसा लगा जैसे  हिचकिचा से रहे थे 
किचन, डाइनिंग रुम तो दिखा दिया मगर 
बैड-रुम दिखलाने में शरमा से रहे थे 

झिझकते हुए उन्होंने दरवाज़ा खोला 
दृश्य वहां का देख के मैं चौक सा गया 
बॉलीवुड हीरोईनों की तस्वीरों से था 
कमरा वो सारे का सारा ही भरा हुआ 

सामने था इक बड़ा सा आदमक़द फ्रेम 
जिस में थी इक नारी की उत्तेजक सी तस्वीर 
मेज़ पर इक अर्धनग्न युगल की मूर्ति 
और किताबें लैला-मजनू - रांझा और हीर 

अब समझ में आया राज़ हिचकिचाहट का 
शायद इसलिए ही वो कतरा से रहे थे 
सारा घर दिखा दिया था शौक़ से मगर 
बैडरुम दिखलाने में शरमा से रहे थे 

वापिस आते आते मैं ये सोच रहा था 
लिविंग और बैडरुम में कितना फ़र्क़ होता है 
क्यों ये जीवन में विरोधाभास  रहता है
ज़ाहिर- बातिन में क्यों इतना फ़र्क़ होता है  

सामने तो रख लेते हैं फोटो गुरुओं की 
दिल में होती हैं मगर तस्वीरें कोई और 
गीता और ग्रंथ हैं दिखावे  के लिए 
पढ़ने के लिए हैं पर किताबें कोई और 

चेहरा- जो हम दुनिया को दिखलाते हैं अक़्सर 
वो चेहरा असली चेहरा बन जाए तो अच्छा है 
ज्ञान - जो हम औरों को समझाते हैं अक़्सर 
अपने मन में भी वो बस जाए तो अच्छा है 

केवल फोटो रख लेने से फ़र्क़ नहीं पड़ता 
केवल सजदों से ही जीवन बदल नहीं सकता 
ज़ाहिर और बातिन जब तक एक नहीं होगा 
'राजन ' मन में शांति का प्रवेश नहीं होगा 
                          " राजन सचदेव "

ज़ाहिर  =  प्रत्यक्ष,  नुमायां, जो सामने है 
बातिन   =   अंतर्मन, अंतरंग, अंदरुनी,  भीतरी, जो दिल में है 


Two Chambers of the Heart

Shelf pay theen Ram aur Krishn ki moortiyaan 
Deevaar pay Guru Nanak ki tasveer tangee thi
Maiz pay rakhi thi Buddha ki ek pratimaa 
Bible kay saath vahaan Geeta bhi padi thi

Taazay phoolon ka guldaan bhi tha maiz par 
Konay mein ik shelf kitaabon say bhari thi
Farsh pay bichhaa thaa ek reshmi kaaleen 
Kamray ki har cheez kareenay say sajee thi 

Mainay kahaa - Bhayi Sahib aap dhanya hain 
Kitnaa sundar aap nay ye ghar banaayaa hai 
Kitnay shauq kitni umangon say aap nay 
Kitni mehnat say har ik konaa sajaayaa hai 

Ek ek cheez hai taareef kay qaabil 
Dil to chaahtaa hai dekhtay hee jaaiye 
Lekin vaqt ka taqaaza bhi hai saamnay
Chaliye ab baaki ka ghar bhi dikhaaiye 

Sun kay meri baat vo thoda sakpakaa gaye 
Aesa lagaa jaisay hichkicha say rahay thay 
Kitchen, dinning room to dikha diyaa magar 
Bedroom dikhlaanay mein sharmaa say rahay thay 

Jhijhaktay huye unhon nay darvaaza kholaa
Drishya vahaan ka dekh kay mein chaunk saa gayaa 
Bollywood heroinon ki tasveeron say thaa 
Kamraa vo saaray ka saara hee bharaa huaa

Saamnay tha ik bada saa aadam-qad frame
Jis mein thi ik naari ki uttejak si tasveer 
Maiz par ik ardh-nagn yugal ki moorti 
Aur kitaaben Laila-Majanu - Ranjha aur Heer 

Ab samajh mein aayaa raaz hichkichaahat ka 
Shaayad is liye hee vo katraa say rahay thay 
Saraa ghar dikha diya tha shauq say magar 
Bedroom dikhlaanay mein sharmaa say rahay thay 

Vaapis aatay aatay main ye soch rahaa thaa 
Living aur bedroom mein kitnaa farq hota hai 
Kyon virodhaabhaas banaa rehtaa hai jeevan mein 
Zaahir- Baatin mein kyon itnaa farq hotaa hai?

Saamnay to rakh letay hain photo Guruon kee 
Dil mein hoti hain magar tasveeren koyi aur 
Geeta aur Granth hain dikhaavay kay liye 
Padhnay kay liye hain par kitaaben koyi aur 

Chehraa- jo ham duniya ko dikhlaatay hain aqsar 
Vo chehraa asli chehraa ban jaye to achchha hai 
Gyaan - jo ham auron ko samjhaatay hain aqsar 
Apanay man mein bhi vo bas jaaye to achchha hai 

Keval photo rakh lenay say farq nahin padtaa 
Keval sajdon say hee jeevan badal nahin saktaa 
Zaahir aur Baatin - jab tak ek nahin hoga 
'Rajan' man mein shanti ka pravesh nahin hoga 
                         " Rajan Sachdeva "

Zaahir     =  Obvious, Evident, Apparent, Illustrated, Visual, in front of the eyes
Baatin     =  Inner, Internal, Inside, Interior, etc. 
Ardh-nagn yugal   =  Half-naked couple 

                            English Translation
                     Two chambers of the heart 

Idols of Ram and Krishna were on the shelf
Guru Nanak's picture hung on the wall
A statue of Buddha was placed on the table
Along with the Gita, there was a Bible as well.

There was a vase of fresh flowers on the table 
A shelf in the corner was filled with the books
A silk carpet was spread on the floor
Everything in the room was decorated so neatly.
 
I said - Brother, what a blessed soul you are
What a beautiful house you have made
With so much fondness and passion, with so much enthusiasm - 
With so much effort - every corner you have decorated so well.
 
Every single thing here has to be admired
My heart wants to keep on looking at them.
But the time has to be considered too - you know 
So let's move - now show me the rest of the house too.

Hearing this, he seemed a little nervous 
I could guess that there was some hesitance.
The kitchen and dining room were shown happily - 
But for the bedroom, there was clearly some reluctance.

Hesitatingly, he opened the door, 
I was a little shocked to see the scene therein.
The walls in the room were filled 
with pictures of Bollywood heroines everywhere. 

There was a big life-size frame in the front
in which there was a provocative picture of a woman
Statue of a half-naked couple on the table
along with the Books Laila Majnu - Ranjha and Heer

Now I understand the mystery of his hesitation
That was the reason why he was reluctant 
The whole house was shown with great enthusiasm 
but this is why he was shy to show the bedroom.

On the way back - I kept on thinking 
Why such a difference between the living and the bedroom? 
Why such contradiction persists in life?
Why the difference remains between the apparent appearance and the inner feelings?

The photos of the Gurus are kept in the front -
(on the walls, on the dashboard of cars, in the wallet, etc.)
But the pictures in the heart - are so different.
Gita and holy scriptures are kept for a show
But the books to be read - are so different. 

The face that we show to the world
It would be good - if that becomes our true, genuine face.
Gyan - that we often preach to others 
It would be better if it inhabits our minds too?

Just keeping a picture of the Guru doesn't matter much
Life cannot be changed by prostrations only.
Unless the outside and the inner worlds are one
One can not maintain everlasting peace of mind
                           "Rajan Sachdeva "

What is Moksha?

According to Sanatan Hindu/ Vedantic ideology, Moksha is not a physical location in some other Loka (realm), another plane of existence, or ...