पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं
(राम चरित मानस)
जो दूसरों पर निर्भर है, पराधीन है - वह कभी स्वप्न में भी प्रसन्न नहीं रह सकता।
चाहे हम दूसरों के गुलाम हों या स्वयं अपनी मान्यताओं एवं स्वभाव के आधीन हों - हम विकसित नहीं हो सकते।
पूर्व अधिग्रहित मान्यताएँ हमें प्रतिबंधित और कैद में रखती हैं - हमें विकसित नहीं होने देतीं।
पुरानी धारणाओं से मुक्त हो कर ही हम नए विचारों को अपना सकते हैं और जीवन में आगे बढ़ सकते हैं।
(राम चरित मानस)
जो दूसरों पर निर्भर है, पराधीन है - वह कभी स्वप्न में भी प्रसन्न नहीं रह सकता।
चाहे हम दूसरों के गुलाम हों या स्वयं अपनी मान्यताओं एवं स्वभाव के आधीन हों - हम विकसित नहीं हो सकते।
पूर्व अधिग्रहित मान्यताएँ हमें प्रतिबंधित और कैद में रखती हैं - हमें विकसित नहीं होने देतीं।
पुरानी धारणाओं से मुक्त हो कर ही हम नए विचारों को अपना सकते हैं और जीवन में आगे बढ़ सकते हैं।
Really true
ReplyDelete🙏
ReplyDeleteTrue ji
ReplyDelete